प्रधानमंत्री कार्यालय : सामरिक परिकल्पना: परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल

प्रधानमंत्री कार्यालय : सामरिक परिकल्पना: परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल
भारतीय गणराज्य और रूसी परिसंघ के बीच परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए सहयोग को मजबूत करने की सामरिक परिकल्पना
1. प्रस्तावना

 1(1). जनवरी 28, 1993 को रूसी परिसंघ और भारतीय गणराज्य के बीच मित्रता और सहयोग के लिए संधि पर हस्ताक्षर के बाद से दोनों देशों के बीच सहयोग के लिए मजबूत और दीर्घकालीन आधार स्थापित हुआ है।

 1(2). रूसी परिसंघ और भारतीय गणराज्य (यहां के बाद “दोनों पक्ष” पढ़ें) की सरकारों और यहां के लोगों के बीच मित्रतापूर्ण रिश्तों का आधार परंपरागत रूप से चला आ रहा है। दोनों देश परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए सक्रिय रूप से हितकर आपसी सहयोग विकसित करना चाहते हैं। इस दिशा में दोनों पक्ष विशेषतौर पर निम्न दस्तावेज के महत्व को मान्यता देते हैं जिस पर उनकी सरकारों के बीच हस्ताक्षर हुए हैः

 ·        दिसंबर 5, 2008 को रूसी परिसंघ की सरकार और भारतीय गणराज्य की सरकार के बीच कुडनकुलम में अतिरिक्त नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र इकाई के निर्माण, साथ ही साथ भारत में नए स्थान पर रूसी डिजाइन के नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र के निर्माण के लिए सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर हुए (यहां के बाद इसे “2008 का समझौता” पढ़े), और

 ·        मार्च 12, 2010 को रूसी परिसंघ की सरकार और भारतीय गणराज्य की सरकार के बीच परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर हुए (यहां के बाद इसे “2010 का समझौता” पढ़ें)

 1(3). दोनों पक्ष, मार्च 12, 2010 को “भारतीय गणराज्य में रूसी डिजाइन के नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों के श्रृंखलाबद्ध निर्माण का खाका” पर हस्ताक्षर के महत्व को स्वीकार करते हैं (यहां के बाद इसे “खाका” पढ़ें)

 1(4). दोनों पक्ष, राज्य परमाणु ऊर्जा निगम “रोसतोम” (रूस) व परमाणु ऊर्जा विभाग, भारत सरकार के बीच इन दो सहमति पत्रों के महत्व को स्वीकार करते हैः (i) परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के क्षेत्र में व्यापक वैज्ञानिक व तकनीकी सहयोग के बारे में दिसंबर 21, 2010 को हस्ताक्षरित सहमति पत्र (ii) भारत के नाभिकीय ऊर्जा साझेदारी के लिए वैश्विक केंद्र के साथ सहयोग के लिए जून 20, 2011 को हस्ताक्षरित सहमति पत्र।

 1(5). दोनों पक्ष, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के क्षेत्र व इसमें हासिल महत्वपूर्ण उपलब्धियों के लिए अपने उच्चस्तरीय द्विपक्षीय सहयोग का स्वागत करते हैं। साथ ही साथ, दोनों पक्ष नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में, नाभिकीय ऊर्जा में शोध व विकास तथा परमाणु ईंधन के गैर-ऊर्जा अनुप्रयोग और इंजीनियरिंग के काम में उनके बीच सहयोग को और अधिक मजबूत व व्यापक करने अहम संभावनाओं को भी स्वीकार करते हैं।

 1(6).  दोनों पक्षों के बीच हाल की उच्चस्तरीय राजनीतिक वार्ताओं जिसमें रूसी परिसंघ के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन व भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच जुलाई 15, 2014 को ब्राजील के फोर्टलेज में ब्रिक्स समिट के दौरान अलग से मुलाकात भी शामिल है, में इन संभावनाओं पर जोर दिया गया।

 1(7). मौजूदा सहयोग के महत्व को स्वीकार कर और इसी क्रम में भविष्य के सहयोग के लिए दिशानिर्देश मुहैया करते हुए, परमाणु ऊर्जा निगम “रोसतोम” (रूस) व परमाणु ऊर्जा विभाग, भारत सरकार ने यह दस्तावेज तैयार किया है जिसका शीर्षक है “भारतीय गणराज्य और रूसी परिसंघ के बीच परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए सहयोग को मजबूत करने की सामरिक परिकल्पना”। यह इस नजरिये से तैयार किया गया है कि परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल में सहयोग को मजबूत करने के लिए इससे सामरिक दिशा मिल सकेगी।

 2. सहयोग की वर्तमान स्थिति

 2 (1). दोनों पक्ष असैन्य नाभिकीय ईंधन क्षेत्र में अपने मौजूदा सहयोग पर संतोष प्रकट करते हैं और सामरिक साझेदारी के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में सहयोग को आगे और बढ़ाने व मजबूत करने की अपनी इच्छाओं पर दृढ़ हैं।

 2 (2).  दोनों पक्ष, कुडनकुलम नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र (केकेएनपीपी) की इकाई-1 के वाणिज्यिक संचालन जिसने जुलाई 2014 में पूर्ण ऊर्जा हासिल किया, की प्रगति पर संतोष प्रकट करते हैं। वे केकेएनपीपी की इकाई-2 की जल्दी शुरुआत के लिए जरूरी कदम उठाने पर भी सहमत हैं। दोनों पक्ष केकेएनपीपी इकाई 3 व 4 के लिए अप्रैल 10, 2014 के सामान्य ढांचा सहमति (जीएफए) के संशोधन नंबर 1 पर हस्ताक्षर के साथ लागू होने व साथ ही साथ केकेएनपीपी ईकाई 3 व 4 परियोजना को क्रियान्वित करने के लिए रूसी परिसंघ से दीर्घकालीन निर्माण चक्र के लिए उपकरणों की आपूर्ति के लिए ठेके पर हस्ताक्षर का भी स्वागत करते हैं।

 3. आगामी विकास

 3 (1). दोनों पक्ष स्वीकार करते हैं कि नाभिकीय ऊर्जा क्षेत्र में उनके द्विपक्षीय सहयोग, वैश्विक स्तर पर दो देशों के बीच सबसे विशाल मुद्दे में से एक है। वे भारत में रूसी डिजाइन के नाभिकीय ऊर्जा इकाइयों के अतिरिक्त निर्माण, उन्नतशील नाभिकीय ऊर्जा इकाइयों के लिए शोध व विकास में सहयोग और उपकरणों व ईंधन समायोजन का भारत में स्थानीय उत्पादन शुरू करने को अपने आगामी सहयोग कार्य के लक्ष्य के रूप में देखते हैं, जिसका ब्यौरा नीचे दिया गया है।

 3.1 नाभिकीय ऊर्जा

 3.1(1). भारत की महत्वाकांक्षी आर्थिक विकास रणनीति के लिए ऊर्जा उत्पादन क्षमता को काफी मजबूत करने की जरूरत होगी, दोनों पक्षों ने नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र की सहयोग परियोजनाओं को तेजी से क्रियान्वित करने का फैसला किया है। दोनों पक्ष 2008 के समझौते के अनुसार अगले दो दशक में कम से कम 12 इकाइयों के निर्माण को पूरा करने व उन्हें चालू करने के लिए कठिन प्रयत्न करेंगे। इस उद्देश्य की दिशा में भारतीय पक्ष कुडनकुलम के अतिरिक्त भारत में रूसी डिजाइन के नाभिकीय ऊर्जा इकाई के लिए अविलंब दूसरी जगह की पहचान करने पर सहमत है। दोनों पक्ष नाभिकीय ऊर्जा इकाइयों के निर्माण की लागत व समय को कम से कम करने के लिए अपने विशेषज्ञ व संसाधन लगाएंगे।

 3.1(2). दोनों पक्षों का विचार है कि पैरा 3.1(1) में उल्लिखित के अलावा भारत में आगामी रूसी डिजाइन के नाभिकीय ऊर्जा इकाइयों के निर्माण के मामले को भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए, तत्कालीन नाभिकीय तकनीकों जिसमें कि साझे रूप में आपसी स्वीकार्य तकनीकी व वाणिज्यिक शर्तों के साथ विकसित तकनीक भी शामिल हो सकती है, और प्रचलित बिजली की दरों पर विचार किया जाएगा।

 3.1(3). दोनों पक्ष आगे अपने स्वस्थ सहयोग की निरंतरता को स्वीकार करते हैं। वे भारतीय आपूर्तिकर्ताओं द्वारा सामग्री व उपकरणों की मांग की संभावना को लगातार व महत्वपूर्ण रूप से समृद्ध करेंगे और आपसी सहमति के आधार पर तकनीक के आदान-प्रदान के साथ संयुक्त उपक्रम स्थापित करेंगे। इसमें भारत में रूसी डिजाइन के नाभिकीय ऊर्जा इकाइयों के लिए मुख्य उपकरण व उसके पूर्जों व खासतौर पर पूर्जों को विशेष प्राथमिकता के साथ उत्पादित किया जाएगा। नाभिकीय ऊर्जा पर संयुक्त कार्यदल इस संबंध में दोनों पक्षों के प्रस्ताव पर विचार करेगा।

 3.1(4). दोनों पक्ष तीसरे देशों में रूसी डिजाइन की नाभिकीय ऊर्जा इकाइयों के निर्माण के लिए भारतीय उद्योग से मूल सामग्री, उपकरण व सेवाओं की संभावनाएं तलाश करेंगे।

 3.1(5). दोनों पक्ष, नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों के निर्बाध संचालन के लिए रखरखाव के महत्व को स्वीकार करते हुए, नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र का तकनीकी रखरखाव व मरम्मत, आधुनिकीकरण व कर्मियों का पुनर्प्रशिक्षण जैसे क्षेत्र में सहयोग के विकास के लिए अधिकतम प्रयास करेंगे।

 3.1(6). दोनों पक्ष दीर्घकालीन दृष्टि को ध्यान में रखते हुए नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों पर अपने सहयोग पर रोक लगाने की भी कल्पना करते हैं।

 3.2 नाभिकीय ईंधन चक्र

 3.2(1). इस दस्तावेज के पैरा 3.1(1) में उल्लिखित भारत में रूसी डिजाइन की नाभिकीय ऊर्जा इकाइयों के निर्माण की दिशा में दोनों पक्ष, नाभिकीय ईंधन के संयोजन का भारत में निर्माण करने के लिए जरूरी व्यवस्था को प्राथमिकता देने पर कार्य करेंगे और इनके तत्वों को रूसी डिजाइन की इकाइयों में इस्तेमाल किया जाएगा जैसा कि 2008 के समझौते में उल्लेख है। दोनों पक्ष 2010 के समझौते के अनुच्छेद 6.3 के क्रियान्वयन पर काम करेंगे।

 3.2(2). दोनों पक्ष अपने-अपने इलाके में खनन गतिविधियों में तकनीकी सहयोग की संभावनाओं की तलाश करेंगे। वे तीसरे देशों में भी खोज व खनन गतिविधियों में सहयोग कार्य करेंगे।

 3.2(3). दोनों पक्ष रेडियोधर्मी कचरे के प्रबंधन के क्षेत्र में ढांचा तैयार करने पर सहयोग करेंगे।

 3.2(4). इस दस्तावेज के धारा 5 के अंतर्गत नाभिकीय ईंधन चक्र पर संयुक्त कार्यदल का गठन होगा जो उपरोक्त क्षेत्रों के साथ क्षीण ईंधन प्रबंधन की सुविधा की संभावना तलाश करेगा।

 3.3 वैज्ञानिक व तकनीकी सहयोग और विकिरण तकनीक

 3.3(1). दोनों पक्ष वैज्ञानिक व तकनीकी सहयोग और विकिरण तकनीकों के क्षेत्र में सक्रिय रूप से सहयोग की इच्छा रखते हैं।

 3.3(2). दोनों पक्ष तीव्र रियेक्टर, थोरियम ईंधन चक्र, एक्सिलिरेटर-ब्लैंकेट सिस्टम, हाई करंट प्रोटॉन व लौह उत्प्रेरक और नियंत्रित थर्मो-न्यूक्लियर फ्यूजन के क्षेत्र में शोध को अपने आगामी सामरिक सहयोग के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। दोनों पक्ष विकिरण तकनीकों के गैर-ऊर्जा अनुप्रयोग का उद्योग, दवा, सुरक्षा व कृषि जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग के लिए महत्वपूर्ण संभावनाओं को स्वीकार करते हैं।

 3.3(3). दोनों पक्ष परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा निगम “रोसतोम” (रूस) व परमाणु ऊर्जा विभाग, भारत सरकार के बीच तकनीकी आंकड़ों व सूचनाओं को उजागर नहीं करने के प्रावधानों पर हो रहे समझौते का स्वागत करते हैं। वे इस बात पर सहमत हैं कि इन प्रावधानों से परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल करने के उनके वैज्ञानिक व तकनीकी सहयोग को नई गति मिलेगी।

 4. जनजागरुकता व शैक्षिक गतिविधि

 4(1). दोनों पक्ष असैन्य नाभिकीय क्षेत्र के सभी पहलुओं को महत्वपूर्ण तत्व मानते हुए अपने देशों व साथ साथ तीसरे देशों में उन्नत प्रशिक्षण के जरिये मानव संसाधन के विकास पर सहयोग कार्य को द्विपक्षीय सहयोग के रूप में विचार करेंगे।

 4(2).  दोनों पक्ष नाभिकीय ऊर्जा के प्रति समझदारी को बढ़ाने के लिए व सकारात्मक समझ बनाने के लिए शैक्षिक गतिविधियों के महत्व को स्वीकार करते हैं। अपने साझे सकारात्मक अनुभवों के आधार पर दोनों पक्ष एकीकृत सूचना केंद्र के लिए पायलट कार्यक्रम की योजना तैयार करेंगे जिसे इसके परिणामों का मूल्यांकन करने के बाद बदला भी जा सकेगा।

 5. क्रियान्वयन के तरीके

 5(1). दोनों पक्ष परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल पर सहयोग के लिए समन्वय समिति स्थापित करने पर राजी हैं (यहां के बाद से “समिति” पढ़ें) जो पूरे द्विपक्षीय सहयोग जिसमें इस दस्तावेज में उल्लिखित उद्देश्यों में उपलब्धि भी शामिल है, पर नजर रखेगी। समिति की अगुवाई परमाणु ऊर्जा विभाग (भारत) के सचिव और रोसतोम (रूस) के महानिदेशक करेंगे। समिति की साल में एक बार बैठक होगी।

 5(2).  समिति के इस काम में तीन संयुक्त कार्यदल सहयोग करेंगे जिसमें (i) नाभिकीय ऊर्जा (ii) नाभिकीय ईंधन चक्र और (iii) वैज्ञानिक व तकनीकी सहयोग, पर कार्यदल होंगे। इसमें अंतिम संयुक्त कार्यदल अपने से पहले वाले का स्थान लेगा ताकि परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए व्यापक वैज्ञानिक व तकनीक सहयोग के लिए परमाणु ऊर्जा निगम “रोसतोम” (रूस) व परमाणु ऊर्जा विभाग, भारत सरकार के बीच दिसंबर 21, 2010 को हस्ताक्षरित सहमति पत्र लागू किया जा सके।

 5(3) दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि यह दस्तावेज अपने-अपने पक्ष में किसी तरह का वैधानिक या वित्तीय हित निर्मित नहीं करता है।

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