- April 15, 2021
प्रदूषण मुक्त स्वास्थ्य व्यवस्था के लिये जारी हुआ वैश्विक रोड मैप
लखनऊ (निशांत) — स्वास्थ्य क्षेत्र को पैरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के अनुरूप बनाने के लिये अपनी तरह के पहले मार्गदर्शक निर्देश
प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त स्वास्थ्य व्यवस्था के लिये, हेल्थ केयर विदआउट हार्म और अरूप नामक संस्थाओं ने एक रोड मैप जारी किया है। यह रोड मैप 2021 स्कोल वर्ल्ड फोरम में जलवायु सततता और स्वास्थ्य समानता के साथ शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के लिहाज से एक नेविगेशनल टूल है।
हेल्थ केयर विदआउट हार्म पूरी दुनिया में मरीजों की सुरक्षा या देखभाल से समझौता किये बगैर स्वास्थ्य क्षेत्र के रूपांतरण को सम्भव बनाने की दिशा में काम कर रहा है, ताकि वह पारिस्थितिकीय रूप से सतत बनने के साथ-साथ पर्यावरणीय स्वास्थ्य एवं न्याय का अग्रणी पैरोकार बन सके।
यह रोड मैप वर्ष 2050 तक वैश्विक स्वास्थ्य सेवाक्षेत्र को शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनी तरह का पहला खाका है। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का जलवायु फुटप्रिंट पहले से ही ज्यादा है और यह वैश्विक उत्सर्जन के 4.4% के बराबर है। स्वास्थ्य क्षेत्र के अंदर और बाहर जलवायु संबंधी कदम नहीं उठाये जाने से इस क्षेत्र द्वारा उत्सर्जित किए जाने वाले प्रदूषण की मात्रा वर्ष 2050 तक तीन गुने से ज्यादा बढ़कर प्रतिवर्ष छह गीगाटन से अधिक हो जाएगी। यह कोयले से चलने वाले 770 बिजली घरों द्वारा सालाना उत्सर्जित किए जाने वाले प्रदूषण के बराबर होगा।
अगर विभिन्न देश पेरिस समझौते के प्रति अपनी संकल्पबद्धता को पूरा करते हैं, तो भी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन में 70% की अनुमानित गिरावट आएगी, लेकिन शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य के मुकाबले यह भी काफी ज्यादा है। हेल्थ केयर विदाउट हार्म और अरूप के रोड मैप से जाहिर होता है कि स्वास्थ्य सेवाएं किस तरह उच्च प्रभाव वाली सात गतिविधियों को लागू कर सकती हैं ताकि 36 वर्षों के दौरान स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र द्वारा किए जाने वाले उत्सर्जन में 44 गीगाटन की और कमी लाई जा सके। इसका असर हर साल 2.7 बिलियन बैरल तेल का उत्खनन न करने के बराबर होगा।
रोड मैप में विभिन्न देशों द्वारा अपने अपने यहां स्वास्थ्य क्षेत्र को कार्बन से मुक्त करने के प्रयासों की वास्तविक स्थिति की पहचान भी की गई है। बड़े स्वास्थ्य क्षेत्र वाले देशों में ग्रीन हाउस गैसों के फुटप्रिंट में सबसे तेजी और मजबूती से कमी लाए जाने की जरूरत है। साथ ही साथ प्रदूषण उत्सर्जन के लिए कम जिम्मेदार निम्न एवं मध्यम आय वाले देश शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की दिशा में अपेक्षाकृत कम मजबूत रास्ते का पालन करने के दौरान अपने यहां स्वास्थ ढांचा विकसित करने के लिए जलवायु के प्रति स्मार्ट समाधान लागू कर सकते हैं। नए ग्लोबल रोड मैप में यह पाया गया है कि स्वास्थ्य क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण का 84% हिस्सा जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से उत्पन्न होता है। इस ईंधन का इस्तेमाल स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की विभिन्न संचालनात्मक गतिविधियों, आपूर्ति श्रृंखला तथा व्यापक अर्थव्यवस्था में किया जाता है। इस ईंधन के प्रयोग में अस्पतालों में बिजली व्यवस्था, स्वास्थ्य संबंधी यात्रा तथा स्वास्थ्य से जुड़े उत्पादों के निर्माण और परिवहन में कोयले, तेल तथा गैस का इस्तेमाल भी शामिल है।
हेल्थ केयर विदाउट हार्म में प्रोग्राम एवं स्ट्रेटजी के इंटरनेशनल डायरेक्टर और रोड मैप के सह लेखक जोश कारलिनर ने कहा “हम इस वक्त जलवायु और स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों को महसूस कर रहे हैं। जीवाश्म ईंधन जलाए जाने और जंगलों में लगने वाली आग जैसे कठिन जलवायु संबंधी प्रभावों के कारण सांस से जुड़ी बीमारियों में इजाफा हो रहा है। स्वास्थ्य क्षेत्र इन दो संकटों के घाव झेल रहा है। वहीं यह भी विडंबना है कि वह अपने द्वारा उत्सर्जित किए जाने वाले प्रदूषण के जरिए उन घावों पर नमक छिड़क रहा है। ऐसे में स्वास्थ्य क्षेत्र के नेतृत्वकर्ताओं के लिए यह जरूरी है कि वे आगे आकर उदाहरण पेश करें और वर्ष 2050 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में अभी से जुट जाएं। द रोड मैप में इस दिशा में आगे बढ़ने के रास्ते सुझाए गए हैं।”
रोड मैप में दुनिया के 68 देशों में स्वास्थ्य क्षेत्र द्वारा किए जाने वाले प्रदूषण उत्सर्जन के बारे में विस्तृत लेखा-जोखा पेश किया गया है। साथ ही सरकारों, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, निजी क्षेत्र तथा सिविल सोसायटी को डीकार्बनाइजेशन के लक्ष्य को हासिल करने और बेहतर तथा अधिक समानता पूर्ण स्वास्थ्य परिणाम तैयार करने में मदद के लिए सुझाव भी दिए गए हैं। सरकारों को दिए गए सुझावों में पेरिस समझौते के अनुरूप अपने नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन संकल्प में स्वास्थ्य क्षेत्र के डीकार्बनाइजेशन को शामिल करने और मजबूत क्षेत्रव्यापी ऐसी जलवायु नीतियां विकसित करने के सुझाव भी शामिल है, जो स्वास्थ्य क्षेत्र के डीकार्बनाइजेशन और सततता में सहयोग करने के दौरान जनस्वास्थ्य को जलवायु परिवर्तन से सुरक्षित रखें।
हेल्थ केयर विदाउट हार्म में इंटरनेशनल प्राइवेट पॉलिसी डायरेक्टर और रोड मैप की सह लेखिका सोनिया रोशनिक ने कहा “सभी देशों की स्वास्थ्य प्रणालियों को वर्ष 2050 तक पूरी तरह प्रदूषण मुक्त करने की जरूरत होगी। साथ ही साथ वैश्विक स्वास्थ्य लक्ष्यों को भी हासिल करना होगा। निम्न तथा मध्यम आय वाले देशों में अनेक स्वास्थ्य प्रणालियों को इस रूपांतरण के दौरान जरूरी समाधान हासिल करने के लिए विकसित अर्थव्यवस्थाओं के सहयोग की जरूरत होगी।”
आईजीएचआई इंपीरियल कॉलेज लंदन के सह निदेशक, विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोविड-19 विशेष दूत और ग्लोबल हेल्थ के चेयरमैन डॉक्टर डेविड नबेरो ने कहा “कोविड-19 महामारी ने यह दिखाया है कि किस प्रकार स्वास्थ्य क्षेत्र पर्याप्त रूप से केंद्रित होकर तथा समर्थन मिलने पर भारी चुनौतियों से जबरदस्त तेजी से निपट सकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का हल निकालने के लिए अधिक बड़े प्रयास करने की जरूरत है।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन में पर्यावरण जलवायु एवं स्वास्थ्य विभाग की निदेशक डॉक्टर मारिया नीरा ने कहा “जिस तरह हम कोविड-19 से उबरने में सफल रहे। उसी तरह स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े ये नायक जलवायु परिवर्तन के संकट से जन स्वास्थ्य की सुरक्षा करने की दिशा में अपने क्षेत्र में नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभा सकते हैं। जैसे कि उन्होंने कोविड-19 से हमारा बचाव करते वक्त निभाई थी। रूपांतरणकारी जलवायु समाधान से ही क्षतिपूर्ति की प्रक्रिया शुरू होती है।”
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉक्टर के. श्रीनाथ रेड्डी ने कहा “शून्य उत्सर्जन की होड़ में आपदा की तैयारी संबंधी रणनीति के रूप में स्वास्थ्य क्षेत्र की जलवायु के प्रति संकल्पबद्धता स्थापित करने को जलवायु संरक्षण संबंधी गतिविधियों में शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास और देशों के बीच और उनके अंदर उसकी उपलब्धता में व्याप्त खामियों को खत्म करना होगा।”