• July 22, 2015

पेरिस : जलवायु परिवर्तन : विशि‍ष्‍टता को कमजोर बनाने के प्रयास नहीं होने चाहिए- राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री प्रकाश जावड़ेकर

पेरिस : जलवायु परिवर्तन : विशि‍ष्‍टता को कमजोर बनाने के प्रयास नहीं होने चाहिए- राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री प्रकाश जावड़ेकर
पेसूका (नई दिल्ली) –  भारत ने अपना मत दोहराते हुए कहा है कि विश्‍व ने जलवायु परिवर्तन पर नई जागरुकता के साथ स्‍वैच्‍छा से कदम उठाने का फैसला किया है, इसलिए उसके इस संकल्‍प का स्‍वागत किया जाना चाहिए और उसे सराहा जाना चाहिए तथा उसे उसके न्‍यायसंगत अंत तक पहुंचाया जाना चाहिए।
पेरिस में मंत्रिस्‍तरीय अनौपचारिक विचार-विमर्श में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ” इसलिए हम सभी इस बात का स्‍वागत करना चाहिए कि सभी देश कदम उठा रहे हैं और हमें पेरिस को उस तक सीमित रखना चाहिए। ” श्री जावड़ेकर ने यह भी कहा कि विशिष्‍टीकरण की अवधारणा यूएनएफसीसीसी के उद्देश्‍य का आधार है और इसलिए इस विशि‍ष्‍टता को कमजोर बनाने के प्रयास नहीं होने चाहिए।
नए समझौते के सभी घटकों में यह परिलक्षित होना चाहिए। परिशिष्‍ट महत्‍वपूर्ण अंग और विशिष्‍टीकरण की मौलि‍क संरचना हैं और इसलिए हमें इन मौलिक अवधारणाओं और स्‍तम्‍भों के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए, जिन पर जलवायु परिवर्तन की यूएनएफसीसीसी संरचना आधारित है। ”

श्री जावड़ेकर ने कहा कि वर्तमान में प्रति व्‍यक्ति उत्‍सर्जन और संचयी प्रति व्‍यक्ति उत्‍सर्जन 2012 तक बेहद महत्‍वपूर्ण संकेतक हैं। उन्होंने कहा, ” कार्यसूची 21 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विकसित देश वित्तीय और तकनीकी सहायता उत्तरदायित्व स्वीकार करे। हम 1992 से पहले के दिनों वाली स्थिति में नहीं लौट सकते, जहां कोई विशिष्टीकरण नहीं था। और तो और मॉन्ट्रील प्रोटोकॉल में वृद्धिशील लागत की अवधारणा है। यूएनईपी और आईपीसीसी रिपोर्टों में उत्सर्जन में अंतर की ओर संकेत किया गया है।

विशिष्टीकरण को कमजोर करते हुए विश्व अतिरिक्ता, यूएनएफसीसीसी, कार्यसूची 21 के सिद्धांत को नष्ट कर देगा और जैव विविधता संबंधी समझौते, विश्व पर्यावरण सुविधा और बहुत सी अन्य अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर इसका प्रभाव पड़ेगा। वित्त की अतिरिक्ता का प्रावधान स्पष्ट रूप से बताता है कि ये सामान्य कारोबार के माध्यमों से ऊपर है और ये ओडीए से भी ऊपर है। ”

भारत की विशिष्ट स्थिति की ओर संकेत करते हुए श्री जावड़ेकर ने कहा, ” जी हां, हम एक प्रमुख अर्थव्यवस्था हैं। जी हां, हम विकास के पथ पर हैं, लेकिन हम एक गरीब देश भी हैं। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी और मवेशियों की 17 प्रतिशत आबादी हमारे यहां है। इन दोनों को जमीन, पानी और भोजन की जरूरत है। हमारे पास दुनिया का सिर्फ 2.5 प्रतिशत भूभाग और केवल 4 प्रतिशत पानी है और इसलिए हमारे सामने चुनौतियां हैं, लेकिन हम उन चुनौतियों से अपने तरीके से और सफलतापूर्वक निपट रहे हैं।

प्रत्येक मापदंड पर हम विकासशील देश हैं और गरीबी उन्मूलन हमारी प्रमुख चुनौती है और हम थोड़े से समय में ही इससे निपटने के लिए प्रतिबद्ध हैं। गरीबी उन्मूलन हमारे प्रमुख लक्ष्य है। हमारे यहां 50 प्रतिशत ग्रामीण घर हैं, यानी 9 करोड़ मकान ‘पक्के’ न होकर ‘कच्चे’ हैं। 9 करोड़ घर वंचित हैं, क्योंकि उनमें बुनियादी विकास संकेतकों में से एक का अभाव है।

13 करोड़ परिवारों का प्रमुख रोजी-रोटी कमाने वाला व्यक्ति दिन में 3 डॉलर से भी कम राशि कमाता है। 6 करोड़ घरों में शौचालय नहीं है। 30 करोड़ लोगों के घर में बिजली नहीं है। 80 प्रतिशत लोगों के पास मोटर वाहन नहीं है। 90 प्रतिशत लोगों के पास रैफ्रिजरेटर नहीं है।

तो इस पृष्ठभूमि में, भारत, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सराहनीय कार्य कर रहा है। हमारा सबसे पहला लक्ष्य गरीबी का उन्मूलन है और हमारे आईएनडीसी इस संबंध में कार्रवाई की ओर संकेत करेंगे। इस पृष्ठभूमि के बावजूद मोदी सरकार अतिरिक्त समय में भी काम कर रही है और जलवायु के संबंध में दृढ़ विश्वास के साथ कार्रवाई कर रही है, अपनी इच्छा शक्ति के साथ, अपने संसाधनों के साथ।

हम ऊर्जा दक्षता के पथ पर तेजी से चल रहे हैं और हम अपने उत्सर्जन की प्रबलता के स्तर में कमी लाएंगे। लेकिन ये कार्य भारत अपने आप कर रहा है। विकासशील देशों को इसे प्रबलता से करने की जरूरत है। ”

श्री जावड़ेकर ने कहा, ” हमने 175 जीडब्ल्यू वाले विश्व के एक विशालतम नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम का प्रारंभ किया है और यह अनिवार्य तौर पर 2020-पूर्व की कार्रवाई है। हमने पहली बार 8.5 प्रतिशत वनरोपण को बल दिया है और 14वें वित्त आयोग में इसके लिए 9 अरब डॉलर की राशि रखी गई है तथा 6 अरब डॉलर की राशि वनरोपण के लिए क्षतिपूर्ति वनरोपण कोष विधेयक के माध्यम से जारी की जाएगी। हमने शहरी वानिकी, स्कूल-नर्सरी, गंगा के किनारे वनरोपण, उत्पादकता की क्षमता खो चुकी भूमि के लिए योजना शुरू की है और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने 90 हजार किलोमीटर राजमार्गों के किनारे पेड़ लगाने का फैसला किया है।

भारत ने स्वच्छ वायु गुणवत्ता सूचकांक प्रारंभ किया है और अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की चौबीसों घंटे निगरानी की जा रही है। स्वच्छ जल हमारी प्राथमिकता है और गंगा एवं अन्य नदियों की सफाई एक प्रमुख कदम है। स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए हम इलेक्ट्रिकल वाहनों को सब्सिडी दे रहे हैं। हमने ई-रिक्शा के लिए कानून बनाया है।

हम स्वच्छ कोयले का उपयोग कर रहे हैं। हमने कोयले पर उपकर चौगुना कर दिया है। कचरा प्रबंधन के नियमों में बदलाव किया गया है, जिससे मीथेन का उचित रूप से प्रबंधन किया जा सकेगा। स्मार्ट सिटीज में बिल्डिंग कोड, किफायती घर, रेलवे, सोलर टॉप और एलपीजी सब्सिडी छोड़ने जैसी नई पहल की गई हैं। “

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