पेड्रो कैस्टिलो पेरू में एक नए राष्ट्रपति —.संजय पांडे

पेड्रो कैस्टिलो  पेरू में एक नए राष्ट्रपति —.संजय पांडे

पेरू में समाजवादी पेड्रो कैस्टिलो की विजय और कठिन चुनौतियाँ
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कोरोना महामारी से तबाही झेल रहे पेरू का स्पेनिश उपनिवेशवाद से मुक्ति के बाद से 200 साल का इतिहास है, वहां पिछले 20 वर्षों से में लोकतंत्र जड़ पकड़ रहा है. 1985 के बाद से सत्ता में आने वाले पेरू के सभी राष्ट्रपति भ्रष्टाचार में उलझे हुए हैं, पिछले साल नौ दिनों में तीन राष्ट्रपति देश में आए. पेरू के तीन राष्ट्रपति भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किए गए हैं. एक का ट्रायल चल रहा है. एक अन्य, एलन गार्सिया ने 2019 में पुलिस को गिरफ्तार करने की कोशिश करते हुए आत्महत्या कर ली. एक तीसरे पूर्व राष्ट्रपति, मार्टिन विज़कारा को भ्रष्टाचार के आरोपों में कांग्रेस द्वारा 10 साल के लिए सार्वजनिक पद पर रहने से प्रतिबंधित कर दिया गया है. स्थापित पूंजीवादी पार्टियों में लोगों का विश्वास कम हो गया था और वे निराशा में थे. पेरू में पिछले महीने कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या दुनिया में प्रति व्यक्ति मौत के मामले में सबसे ज्यादा थी. भ्रष्ट राजनीतिक वर्ग के प्रति घृणा बढ़ रही थी, लेकिन आर्थिक ध्रुवीकरण भी ऐसा ही था.

राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे दौर के लगभग एक माह बाद 21 जुलाई, 2021 को चुनाव आयोग ने 51 वर्षीय पेड्रो कैस्टिलो को राष्ट्रपति घोषित किया. काफी सूक्ष्म अंतर से, उन्होंने दक्षिणपंथी विचारधारा के पूर्व राष्ट्र अध्यक्ष अल्बर्टो फुजीमोरी की बेटी और खुद को शक्तिशाली पेरूवियन अभिजात वर्ग का प्रतीक समझने वाली किको फुजीमोरी को हराया. राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट के समय में गरीबी और असमानता को कम करने में विश्वास रखने वाले 51 वर्षीय किसान और शिक्षक पेड्रो कैस्टिलो की जीत हुई है.

कौन हैं पेड्रो कैस्टिलो?

पेड्रो कैस्टिलो का जन्म और पालन-पोषण पेरू के उत्तरी पहाड़ों में हुआ था. उनके माता-पिता अनपढ़ किसान थे. बचपन में उन्हें दूरतक २-३ घंटे पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता था. उन्होंने अपने परिवार के साथ खेतिहर मजदूर पर काम किया. किराए का भुगतान करने में असमर्थ, होने पर अच्छी खासी फसल को जमींदार को उठा ले जाते देखकर रोए. उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए कई काम किए, जब वे छोटे थे तब लीमा में होटल के कमरों की सफाई की. उत्तरी पेरू के एक शहर में विश्वविद्यालय में पढाई पूरी करके, वह अपने उसी पहाड़ी प्रदेश में लौट आए, जहाँ ४० प्रतिशत बच्चे कुपोषित थे और पानी या स्वच्छता का आभाव था. शिक्षक बनने के बाद उन्होंने उसी क्षेत्र में एक स्कूल शुरू किया. उन्होंने अपने उत्तरी काजमार्का के सुदूर गाँव और गृहनगर सैन लुइस डी प्युना में पिछले 25 वर्षों से प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के रूप में काम किया. वहीँ स्कूल शिक्षक संगठन के कार्यकर्ता बने और 2017 के वेतन वृद्धि के लिए पिछले 30 वर्षों में सबसे बड़ी राष्ट्रव्यापी हड़ताल ने बड़ी संख्या में शिक्षकों को लामबंद किया. उन्होंने मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी में काम करना शुरू किया और अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में पार्टी का विश्वास और समर्थन हासिल किया.

चुनावी मुद्दे:

किको फुजीमोरी की पार्टी ‘पोपुलर फ्रंट’ जिसका प्रतिक भगवा रंग का है बीच में उनका ही नाम K बड़े सफ़ेद रंग से लिखा है एक घोर दक्षिणपंथी संकिर्तावादी और पूंजीवाद की समर्थक पार्टी है. किको फुजीमोरी ने “साम्यवाद” के उदय डर दिखा कर आक्रामक प्रचार किया, अतीत का कम्युनिज्म का भूत लौटा तो वेनेजुएला की तरह में इस देश का भी पतन निश्चित होने की भविष्यवानियाँ की. उनका नारा था- “अपने भविष्य के बारे में सोचें, साम्यवाद को अस्वीकार करें”- ये उनका नारा था. उनकी “पॉपुलर फोर्स” पार्टी को हाई-प्रोफाइल व्यापारिक समूहों के साथ-साथ पूर्व सैन्य अधिकारीयों का भी समर्थन प्राप्त था. पूरे चुनाव अभियान के दौरान, उन्होंने पेड्रो के अतिवामपंथी कम्युनिस्ट विद्रोही समूह ‘शाइनिंग पाथ’ से जुड़े होने का झूठा प्रचार भी धड़ल्ले से किया. उन्होंने लैटिन अमेरिका केवामपंथी नेताओं पर आलोचनाओं की बौछार कर दी. उन्होंने साम्यवादी अत्याचार (रेड-बाईटिंग का) का प्रोपगंडा, लोगों में बेबुनियाद भय फैलाना जिसे फियर मोङ्ग्रिंग रहे हैं, यदि किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र के निवासियों को राजनीतिक समर्थन मिलता है तो उन्हें सरकारी खर्चों में लाभ पहुँचाने का लालच जिसे वहां की राजनितिक जुबान में पोर्क बैरल पॉलिटिक्स कहते हैं ये सब बडे आक्रामक ढंग से वहां की निजी मीडिया में भारी विज्ञापन लागतों से किया. “हाँ लोकतंत्र के लिए! साम्यवाद नहीं! ” और “हम एक और वेनेजुएला नहीं बनना चाहते!” जैसे उद्घोष उनके चुनावी नारों का प्रमुख हिस्सा थे. किको फुजीमोरी ने इस 2021 के राष्ट्रपति चुनाव को ‘मार्केट और मार्क्सवाद’ के बीच का चुनाव बताते हुए उनके प्रतिद्वंदी पेड्रो कैस्टिलो को कम्युनिस्ट के चित्रित किया.

ये चुनाव किको फुजीमोरी के लिए काफी ज्यादा अहम थे. 46 वर्षीय फुजीमोरी, जो चुनाव हार गईं, पेरू के पूर्व राष्ट्रपति अल्बर्टो फुजीमोरी की बेटी हैं. जापानी-पेरू के किको फुजीमोरी पर कपड़ों के गबन, विदेशों में अवैध रूप से पैसा लगाने, 2013 में कैलाओ के बंदरगाह में ड्रग-विरोधी पुलिस ने अपनी संपत्ति कंपनी की दुकान में 100 किलोग्राम कोकीन खोजने, कोकीन माफिया के साथ मिलीभगत, मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार. वह जेल में थी और 5 मई, 2020 को जमानत पर रिहा हुई थी. पेरू की अदालतों में दोषी ठहराए जाने पर किको को अपहरण और चुनावी धोखाधड़ी सहित कई आरोपों में 30 साल तक की जेल हो सकती है. भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं रही किको ने दावा किया था कि अगर वह राष्ट्रपति पद जीतती हैं, तो 30 से अधिक सह-प्रतिवादियों के खिलाफ मुकदमे जारी रहेंगे, लेकिन उन्हें पांच साल के लिए बरी कर दिया जाएगा.

फुजीमोरिज्म और नवउदारवादी मॉडल पिछले तीस वर्षों से पेरू पर हावी हैं. किको के जापानी मूल के पिता, अल्बर्टो फुजीमोरी को उनके बनाए निजी सैनिक समूह ग्रुपो कॉलिना डेथ स्क्वाड द्वारा हजारों लोगों के नरसंहार की घटनाएँ प्रकाश में आईं हैं. उनके २० वर्षीय कार्यकाल सामाजिक कार्यकर्ताओं और ट्रेड यूनियनवादियों के लापता होने, उनकी हत्याएं होने, २५ लाख से अधिक स्थानीय आदिवासी महिलाओं की जबरन नसबंदी, राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों का निजीकरण और सैकड़ों अरबों डॉलर की कर चोरी जैसे गंभीर मामलों में सजा हो चुकी है. अल्बर्टो को अपराधों के लिए 25 साल जेल की सजा सुनाई गई थी. किको के अनुसार वे राष्ट्रपति बनते ही अपने अधिकारों के इस्तेमाल से उन्हें सजा माफ़ी देने वालीं थीं. पिछले तीस वर्षों में बड़े व्यापारी और अमीर हुए हैं और गरीब और गरीब हुए हैं.

वहीँ दूसरी ओर पेड्रो कैस्टिलो समाजवादी विचारधारा का समर्थन करने वाली पेरू लिब्रे (मुक्त पेरू) से हैं. उन्होंने अपने पहाड़ी प्रदेश के लोगों द्वारा पहनी जाने वाली चौड़ी-चौड़ी स्ट्रॉ टोपी पहनकर एक किसान की तरह प्रचार किया. उन्होंने बैठक में कहा कि वह सार्वजनिक कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक गैस जैसे कुछ संसाधनों का राष्ट्रीयकरण करेंगे और खनन कंपनियाँ जो पेरू की अर्थव्यवस्था का इंजन हैं उनके के साथ नए कर समझौते करेंगे. उनकी फ्री पेरू पार्टी ने चुनाव अभियान के दौरान वेनेजुएला में अमेरिकी हस्तक्षेप का विरोध किया और “लीमा ग्रुप” को बाहर करने की कसम खाई, जिसमें निकोलस मादुरो को उखाड़ फेंकने की मांग करने वाली दक्षिणपंथी सरकारें शामिल हैं. दूसरी ओर, कैस्टिलो की कानूनी टीम ने भी कथित धोखाधड़ी के बारे में फुजीमोरी के अधिकांश दावों को खारिज करने और अधिकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस बीच, राष्ट्रपति पद को औपचारिक रूप से मान्यता दिए जाने से पहले, उनकी आर्थिक टीम ने एक ओर ट्रेड यूनियनों और सामाजिक आंदोलनों के साथ बातचीत शुरू की, और दूसरी ओर आर्थिक और व्यावसायिक अभिजात वर्ग और प्रतिनिधियों के साथ. कैस्टिलो ने खुद देश के दौरे पर सक्रिय रूप से महापौरों, राज्यपालों और प्रांतीय प्रतिनिधियों के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, ओएएस और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की.

चुनाव परिणामों की व्याख्या:

पेरू के सबसे अमीर भाग सैन इसिड्रो में, 88% निवासियों ने फुजीमोरी के लिए मतदान किया, जबकि पेरू के सबसे गरीब एंडियन प्रांत, हुआंकावेलिका में, 85% ने कास्टेलो का समर्थन किया. पिछले कुछ दशकों में अमीर और गरीब के बीच इस चरम ध्रुवीकरण को देखा गया है. पेड्रो कैस्टेलो को कुल ८,८३६,२८० वोट मिले, जो फुजीमोरीचे के ८,७९२,११७ से सिर्फ ४४,१६३ अधिक है. वोट इतने पारदर्शी तरीके से गिने गए कि संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और 14 चुनाव अभियानों ने पुष्टि की कि मतदान निष्पक्ष था. संयुक्त राज्य अमेरिका को इस चुनाव को क्षेत्र के लिए “लोकतंत्र का मॉडल” कहना पड़ा. राजधानी लिमा के धनाढ्य तबकों के राजनीतिक एकाधिकार और वर्चस्व को चुनौती देते हुए पेड्रो को ग्रामीण क्षेत्रों से 80 प्रतिशत से अधिक वोट मिले. करीब 2 लाख वोट पाने के लिए फुजीमोरी ने डोनाल्ड ट्रंप की तरह काफी हो हल्ला मचाया. अंत में, चुनाव अधिकारियों ने किको के सभी अनुरोधों को खारिज कर दिया. फुजीमोरी ने परिणाम को उलटने के लिए इसे धोखाधड़ी बताते हुए कानूनी लड़ाई शुरू कर दी है.

किको अब तक तीन बार 2011, 2016 और 2021 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ और हार चुकी हैं. तीनों चुनावों में, उन्हें व्यापारिक समुदाय, रूढ़िवादियों, बहुसंख्यक प्रेस, उदार व्यापारियों, छोटे व्यवसायों, चर्चों और लीमा मध्यम वर्ग का समर्थन प्राप्त था. पेरू में हमेशा सत्ता में जो भी रहा है उसे अरबपति उद्योगपतियों, बड़े व्यापारियों , प्रभावशाली आर्थिक वर्ग, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और सैन्य अधिकारीयों का समर्थन रहा है. उनके हितों में निर्णय लेने वाले ही पिछले ४० सालों में अदल बदल कर राष्ट्रपति पद पर बैठे हैं, वहां की वामपंथी पार्टियों के लिए उनके प्रचारतंत्र और पैसों के खर्चे की स्पर्धा संभव ही नहीं. पेड्रो उन्ही पिछड़े इन्डियन आदिवासियों के तबके से हैं जहाँ आज भी ख़राब सार्वजनिक सेवाओं के भरोसे लोग गुजर बसर कर रहे हैं. विचारों की पैरोकार पार्टी के पेड्रो, पेरू के राष्ट्रपति बनने वाले पहले आदिवासी किसान हैं. हालांकि जीत का अंतर कम है, लेकिन पेरू पिछले 30 वर्षों के इतिहास में एक गरीब एंडियन प्रांत में “कैंपिसिनो” या किसान के रूप में रहने वाला पहला वामपंथी राष्ट्रपति होगा, इस बात से उन भागों में उल्हास का वातावरण है.

पेरू के आम और गरीब लोगों ने पेड्रो को गरीबी में धकेलने वाली नव-उदारवादी नीतियों को बदलने के लिए चुना है. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण पेरू में प्रति व्यक्ति मृत्यु दर दुनिया में सबसे अधिक है. कैस्टिलो ने शिक्षा और स्वास्थ्य सहित सार्वजनिक सेवाओं में सुधार के लिए खनन राजस्व का उपयोग करने का वादा किया है. अपने विजय भाषण में, पेड्रो कैस्टिलो ने कहा, “एक अमीर देश में, अब कोई गरीब नहीं रहना चाहिए. जिनके पास कार नहीं है उनके पास कम से कम एक साइकिल तो होनी ही चाहिए. मजदूरों, किसान नेताओं या शिक्षकों का मजाक बनाना बंद करें. हमें युवाओं, बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि कानून के सामने हम सभी समान हैं.” उन्होंने गरीबी और असमानता को मिटाने के लिए राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था को बदलने और अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका बढ़ाने के लिए वर्तमान संविधान को बदलने का वादा किया है.

सोशल मीडिया की भूमिका:

यह चुनाव सोशल मीडिया का शक्तिपरिक्षण था. कीको का विषैला प्रचार और ट्रोल आर्मी सोशल मीडिया पर जोर-शोर से सक्रिय थे. इसने मध्यम वर्ग को काफी प्रभावित भी किया. सोशल मीडिया पर ‘गंवई किसान’ देश का नेतृत्व नहीं कर सकता, जैसे आशयों की मजाक उड़ाने वाली पोस्ट्स ने हंगामा मचा रखा था. इसके विपरीत, पहले दौर का मतदान शुरू होने तक कास्टेलो का ट्विटर या इंस्टाग्राम अकाउंट भी नहीं था. उन्होंने सोशल मीडिया को बहुत ज्यादा तवज्जो न देते हुए और अपनी मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए नजरअंदाज कर पारंपरिक तरीके से ही ज्यादातर प्रचार किया.

वोट में हेराफेरी के मिथक को कायम रखने के लिए कीको ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना अब भी जारी रखा है. पेरू में सूचना परिदृश्य उनके राष्ट्रपति पद के चुनाव के दौरान इतना जहरीला हो गया है कि पेरू के कई लोग अब यह नहीं जानते हैं कि किस मीडिया पर भरोसा किया जाए. पेरू में सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा फैलाई गई फेक न्यूज के खिलाफ एक फैक्ट-चेकिंग ग्रुप अमा लूला ने अपना एक तरीका निकाला है. वो ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और फेसबुक पर फैली फर्जी वायरल पोस्ट के खिलाफ दिन भर की खबरों के आसपास फैक्ट-चेकिंग मीम्स डालकर और लाइव या रिकॉर्डेड ऑडियो चर्चाओं द्वारा प्रतिरोध कर रहे हैं. फैक्टर चेकर्स में से एक, एल फिल्टो के संस्थापक, पेट्रीसियो ओर्टेगा, मानते हैं कि उनकी शक्ति झूठी सूचनाओं की ट्रोल सेना की तुलना में बहुत कम है. अगर फर्जी पोस्ट को गंभीरता से लेकर उनके खिलाफ करवायाँ की गईं तो फेसबुक और किको लोकतंत्र की हत्या किये जाने का प्रोपगंडा शुरू कर देंगी. इसलिए पेड्रो ने फेसबुक और अन्य को सोशल नेटवर्क पर पोस्ट की गई पोस्ट की फैक्ट-चेक करने का निर्देश भर दिया है.

पेड्रो के मुश्किल राह:

वहां की संसद जिसे कांग्रेस कहा जाता है उसमे में आवश्यक समर्थन की कमी के कारण पेड्रो की सरकार बहुत अस्थिर है. उनकी स्थिति वामपंथी राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे के समान है, जो 1970 में चिली में सत्ता में आए और वामपंथी जो गौलार्ट, जो 1962 में ब्राजील के राष्ट्रपति बने. लगभग पूरा लीमा उनके खिलाफ है. इसलिए पेड्रो सतर्क कदम उठा रहे हैं. उन्होंने बहुराष्ट्रीय खानों और प्राकृतिक गैस कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने के अपने प्रस्ताव पर नरमी बरती और राजस्व बढ़ाने के लिए तांबे की ऊंची कीमतों के कारण मुनाफे पर कर बढ़ाने पर विचार किया.

80 सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों ने पेरू के सशस्त्र बलों से पेड्रो कैस्टेलो को राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार नहीं करने का आग्रह किया है. उन्होंने कई सैन्य अधिकारीयों को पत्र भेजकर ताकीद दी है कि यदि पेड्रो विजेता घोषित होते हैं तो सैन्य अधिकारियों को सख्त कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए. सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए सेना कभी भी हस्तक्षेप कर सकती है.

पेड्रो कैस्टिलोने कभी कोई सार्वजनिक पद नहीं संभाला है, उनके पास ऐसा राजनीतिक अनुभव और लोकप्रियता नहीं है जैसा कि दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप पर सत्ता में आने वाले अन्य वामपंथी नेताओं के साथ हुआ था. 1998 में वेनेज़ुएला में ह्यूगो चाज़वेज़, 2002 में ब्राज़ील में लुइज़ इनोसियो लूला दा सिल्वा, और उसी वर्ष इक्वाडोर में राफेल कोरिया, और 2005 में बोलीविया में, इवो मोरालेस के पास विशाल बहुमत नहीं था, और वे राजनीतिक में बहुत लोकप्रिय नहीं हैं. उन्हें इसे अपने काम से अर्जित करना होगा.

एक समाजवादी विचारधारा वाले शिक्षक द्वारा राष्ट्रपति पद का चुनाव जीते जाने की खबर फैलते ही पश्चिमी मीडिया ने राजधानी लीमा और देश भर में छोटे लेकिन अमीर शहरी अभिजात वर्ग की भयावह प्रतिक्रियाओं को प्रकाशित किया है, वो पढ़ के जान पड़ता है जैसे किको के प्रचारतंत्र की चपेट मे आए इन कुलीन तबकों में उनकी संपत्ति, व्यवसाय और पैसों को लेकर भयंकर असुरक्षा की भावना मास हिस्टीरिया या जन उन्माद की तरह फैली है. वो अपना पैसा पेरू के बाहर भेज रहे हैं.

चुनाव इस बार वामपंथ और धुर पूंजीवाद के बीच की वैचारिक लड़ाई था, जिसमे पिछले ४० सालों में पहली बार वामपंथ एक मजबूत और निर्णायक स्थिति तक पहुंचा. पेरू के चुनाव के आसपास ही सरकार विरोधी असंतोष की लपटें कई लैटिन अमेरिकी देशों तक पहुंच चुकी थीं. विशेष रूप से, कोलंबिया हिंसक विरोधों के हफ्तों से हिल गया था. चिली में दीर्घकालिक मुक्त बाजार मॉडल का विरोध जारी है. वहाँ, लोगों ने एक कम्युनिस्ट नेता को सैंटियागो के मेयर के रूप में चुना. पेरू के चुनाव को नव-उदारवादी और क्रोनी कैपिटलिज्म के खिलाफ जनमत की जीत और समाजवादी आंदोलनों की आशा की जीत के रूप में देखा जाना चाहिए.

संपर्क :
-एड. संजय पांडेय
9221633267
adv.sanjaypande@gmail.com

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