पिता प्रेम है, प्यार है — राहुल गढ़वाल

पिता प्रेम है, प्यार है — राहुल गढ़वाल

पिता प्रेम है, प्यार है…

पिता प्रेम है, प्यार है,
जीवन का आधार है।

पिता वो वृक्ष है,
जो छाया देता संतान को,
खड़ा रहता है हर-पल।


पिता वो आसमां है,
जो छत बना रहता है,
बच्चों के लिए ताउम्र।

पिता वो डोर है,
जो बांधती है, उन नन्हें हाथों को,
दुनिया की कशमकश से।

पिता वो समंदर है,
जो देता है हर नायाब मोती,
संतान को प्रेम से।

लेकिन आज,
मुझे तरस आता है पिता पर,
उन औलादों को देखकर।

जिस वृक्ष की छाया में पनपे,
वो आज तरसता है थोड़ी-सी,
छांव के लिए।

जिस आसमां के नीचे,
बना इनका जहां, उसमें घाव कर दिए,
अपने कर्मों से।

उस डोर की इन्होंने, कीमत न समझी,
जिसने रूबरू किया,
दुनिया से जोड़ा था इनको।
उसे तोड़, छोड़ दिया,
कशमकश में उसे।

समंदर से मोती चुनने के बाद,
किनारा कर लिया उससे,
खारा जल समझकर।

लेकिन आज भी,
पिता के वात्सल्य के मायने नहीं बदले,
अपनी औलाद के लिए।

वो आज भी खड़ा है, अपने अंश के लिए,
खुद के लिए बेपरवाह,
संतान को आशीष देने के लिए।

शायद इसलिए,
पिता प्रेम है, प्यार है,
जीवन का आधार है।

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