- May 17, 2019
पिछले 20 वर्षों से रोजा रखते आ रहे हैं — लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव
रमजान में आपने अक्सर सुना होगा कि मुस्लिम समुदाय के लोग इस पूरे महीने रोजा रखते हैं। लेकिन कई हिंदू भी बड़े प्यार से रोजा रखते हैं।
आज हम ऐसे ही एक रोजेदार के बारे में बताते हैं। बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव के रहने वाले लेखक सह वरिष्ठ पत्रकार मुरली मनोहर श्रीवास्तव पिछले 20 वर्षों से रोजा करते आ रहे हैं। इन्हें रोजा पर आस्था और विश्वास है। हिंदु धर्म के प्रति आस्था रखने वाले इस भक्त की खासियत ये हैं कि नवरात्रि से लेकर रोजा रखने तक में अपनी आस्था को रखते हैं।
मुरली मनोहर श्रीवास्तव पेशे से लेखक और पत्रकार हैं। इन्होंने बिस्मिल्लाह खां पर पुस्तक को लिख चुके हैं तथा कई पुस्तकें अभी और इनकी आने वाली है। इसके अलावे दर्जनों डॉक्यूमेंट्री भी बना चुके हैं। इसके अलावे बिस्मिल्लाह खां पर विश्वविद्यालय खोलने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं। इन्हें पूरा भरोसा है कि एक न एक दिन अल्लाह ताला इनकी हसरत को जरुर पूरा करेंगे।
इस संदर्भ में पूछे जाने पर बताते हैं कि रोजा करने के लिए किसी ने इन्हें कहा या दबाव नहीं बनाया बल्कि एक बार अचानक लगा कि कोई इन्हें रोजा करने के लिए कह रहा है। मगर आज तक पता नहीं चला कि वो कौन था और अचानक से कहां चला गया। फिर क्या मुरली ने रोजा रखना शुरु कर दिया।
शहनाई नवाज भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के साथ लंबा समय गुजारने वाले मुरली मनोहर श्रीवास्तव कई बार तो रमजान के महीने में उनके पास भी पहुंचकर रोजा रखा था। हां, ये बात अलग है कि तीस रोजा रख पाना अब इनके लिए मुमकिन नहीं हो पाता है, जबकि अलविदा शुक्रवार को करना कभी नहीं भूलते हैं। हलांकि कोशिश करते हैं कि शुक्रवार को कभी न छोड़ें।
कहते हैं जहां आस्था है वहीं भगवान है। जहां विश्वास है वहीं संपूर्ण ब्रह्मांड है। चाहे कोई भी धर्म हो लेकिन खुदा की इबादत बस यही सीखाती है कि मानवता में विश्वास रखो। हर इंसान की कदर करना सीखो।
रमजान में रोजे को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोजा यानी तमाम बुराइयों से परहेज करना। रोजे में दिन भर भूखा व प्यासा ही रहा जाता है। इसी तरह यदि किसी जगह लोग किसी की बुराई कर रहे हैं तो रोजेदार के लिए ऐसे स्थान पर खड़ा होना मना है। रोजा झूठ, हिंसा, बुराई, रिश्वत तथा अन्य तमाम गलत कामों से बचने की प्रेरणा देता है।