- July 12, 2015
पाकिस्तान से आए शरणार्थी के लिये बाधक अनुच्छेद 35 ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती :- जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र
जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र (जेकेएससी) संविधान में निहित अनुच्छेद 35 ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। जेकेएससी की माने तो आर्टिकल 35 ए यहां राज्य में रह रहे पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी, बाल्मीकी, गोरखा सहित लाखों लोगों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित कर रहा है।
छह दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी ये न तो सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं और न ही इनके बच्चे यहां व्यावसायिक शिक्षा में दाखिला ले सकते हैं। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर का गैर स्थायी नागरिक (नॉन पीआरसी) लोकसभा में तो वोट दे सकता है, लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में वोट नहीं दे सकता।
राजधानी के कांस्टीट्यूशन क्लब में जम्मू-कश्मीर से आए अलग-अलग वर्गों से जुड़े लगभग दो दर्जन से अधिक पीड़ितों ने अपना दर्द बयां किया। केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर और पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीप धनखड़ समेत कई वक्ताओं ने भी अपनी बात रखी। अध्यक्षता केंद्र के अध्यक्ष जवाहर लाल कौल ने की।
कार्यक्रम में अनुच्छेद 35 ए के वैधानिक पक्ष को रखते हुए जम्मू विश्वविद्यालय के विधि विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर सीमा निगरोत्रा ने बताया कि यह भारतीय संविधान के साथ एक धोखा है। बिना संसद में लाए कोई अनुच्छेद कैसे पास हो सकता है, ऐसा धोखा 1954 में हुआ जिसका भुगतान जम्मू-कश्मीर के पीड़ित आज तक कर रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर से आई रश्मी ने बताया कि उनकी स्थिति इस तरह है कि उनके पति के पास राज्य का पीआरसी नहीं है तो शादी के बाद उनका भी स्थायी निवासी प्रमाण पत्र रद्द कर दिया गया। इस धारा 35 ए के अनुसार अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसकी स्थायी निवासी प्रमाण भी रद्द हो जाता है।
साथ ही उसके बच्चों के भी अधिकार समाप्त हो जाते हैं और उन्हें जम्मू-कश्मीर के संविधान में दिया कोई भी अधिकार नहीं मिलता।