पर्यावरण संरक्षण चुनौती – मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल

पर्यावरण संरक्षण  चुनौती – मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल

ऊर्जा एवं जनसम्पर्क मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल ने कहा है कि सामाजिक परिवेश में विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है। श्री शुक्ल ने पर्यावरण संरक्षण विशेष रूप से नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए जन-आंदोलन का रूप दिए जाने की आवश्यकता बताई। ऊर्जा मंत्री श्री शुक्ल आज मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद द्वारा ‘टिकाऊ खेती के माध्यम से नर्मदा नदी के संरक्षण में स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका‘ विषय पर एक दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर प्रख्यात पर्यावरणविद्, जल संरक्षण विशेषज्ञ एवं मेग साय साय पुरस्कार प्राप्त श्री राजेन्द्र सिंह भी मौजूद थे।

ऊर्जा मंत्री श्री शुक्ल ने कहा कि नर्मदा नदी मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी मानी जाती है। नर्मदा का अस्तित्व प्रदेश के अस्तित्व के साथ गहरे से जुड़ा है। श्री शुक्ल ने जल तथा ऊर्जा संरक्षण के संदेश को व्यवहारिक रूप में जीवन में उतारने पर जोर दिया। श्री शुक्ल ने कहा कि हाल ही के वर्षों में मध्यप्रदेश में जैविक खेती के क्षेत्र में सारे देश में विशिष्ट पहचान बनाई है। देश की कुल जैविक खेती में मध्यप्रदेश का योगदान करीब 40 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि नर्मदा नदी के किनारे के गाँवों में जैविक खेती को विशेष रूप से बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है। ऊर्जा मंत्री श्री शुक्ल ने कहा कि नर्मदा की सहायक नदियों के संरक्षण की भी आवश्यकता है। उन्होंने परिषद से जुड़े स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों से इसके लिए जन जागरण करने पर भी बल दिया।

प्रख्यात पर्यावरणविद् श्री राजेन्द्र सिंह ने कहा कि नदियों का संरक्षण भारत की प्राचीन परम्परा का प्रमुख आधार रहा है। भारत में जब तक नीर, नारी और नदी का सम्मान हुआ है तब तक भारत की पहचान विश्व गुरू के रूप में होती रही है। उन्होंने कहा कि नर्मदा नदी के कारण मध्यप्रदेश की पहचान सारे देश में प्राकृतिक रूप से सम्पन्न राज्यों के रूप में होती है। श्री सिंह ने कहा कि प्रत्येक प्रदेशवासी को यह संकल्प लेना होगा कि वे नर्मदा नदी के साथ-साथ अन्य नदियों में गंदे प्रवाहों को जाने से रोकेंगे। ऐसा होने पर ही प्रदेश की नदियाँ साफ-सुथरी और संरक्षित होगी। उन्होंने विकास के नाम पर नदियों पर बनाये जाने वाले बड़े बाँधों की आलोचना की। उन्होंने कहा कि हमें नदियों के प्राकृतिक विज्ञान को समझना होगा। यदि हम प्रकृति के साथ मिलकर विकास करेंगे, तो यह विकास विनाश रहित दीर्घकालीन होगा। श्री सिंह ने समाज को जागरूक तथा संगठित होकर नदियों के संरक्षण के लिए काम करने की जरूरत बताई। नदियों को पुनर्जीवित करने में सरकार, समाज तथा संतों की भूमिका भी प्रतिपादित की।

परिषद के उपाध्यक्ष श्री प्रदीप पाण्डेय ने कहा कि रचनात्मक मूल्यों से ही समाज में समरसता पैदा की जा सकती है। उन्होंने नर्मदा नदी के संरक्षण के क्षेत्र में भविष्य में किये जाने वाले कार्यों की जानकारी दी।

प्रारंभ में परिषद के कार्यपालक निदेशक श्री उमेश शर्मा ने बताया कि परिषद वर्ष 2009 से नर्मदा नदी के संरक्षण में कार्य कर रही है। नर्मदा नदी प्रदेश के 16 जिले एवं 51 विकासखण्ड से होकर बहती है। नर्मदा नदी के किनारे 1107 घाट, 766 नाले, 263 आश्रम और 290 मंदिर है।

कार्यशाला में जन अभियान परिषद जिला समन्वयक एवं स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद थे।

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