परिवार ही समाज और राष्ट्र का केन्द्र बिन्दु : – श्रीमती चिटनिस

परिवार ही समाज और राष्ट्र का केन्द्र बिन्दु : – श्रीमती चिटनिस

महेश दुबे——–लोक-मंथन में ‘महिला-शक्ति-भारत तथा पश्चिम में (अतीत से वर्तमान पाश्चात्य महिला विमर्श एवं परिवार की संकल्पना)” सत्र की अध्यक्षता करते हुए महिला-बाल विकास मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस ने कहा कि महिला परिवार की धुरी है और परिवार समाज और राष्ट्र का केन्द्र-बिंदु है। श्रीमती चिटनिस ने कहा कि आज सामाजिक-स्तर पर व्याप्त समस्याओं का मूल कारण कहीं न कहीं अपनी सनातनी परम्पराओं से कटना है। श्रीमती चिटनिस ने कहा कि भारतीय महिलाएँ अपने परिवार को छोड़ने की कीमत पर किसी भी तरह की व्यक्तिगत उपलब्धि के बारे में कल्पना भी नहीं करना चाहती।

सुश्री ज़ाकिया सोमन ने कहा कि हमारे देश में सेक्यूलरिज्‍म की जो परिभाषा लंबे समय से चली आ रही है उसमें समस्या है। उसे सुधारने की आवश्यकता है। सुश्री ज़ाकिया ने कहा कि कुरान में मानव सभ्यता के विकास के लिये एक जोड़े को भेजने की बात कही गई है लेकिन इस पर कई तरह की भ्रांतियाँ फैला रखी गई हैं। आज यह सोचने की जरूरत है कि मुस्लिम महिला समाज का नेतृत्व क्यों नहीं कर सकती। नई सोच समझ कर युवाओं को मुस्लिम समाज का लीडर क्यों नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने बताया कि कुरान के सिद्धांत जस्टिस, काइंडनेस, कम्पेशन और विज्डम के आधार पर भारतीय महिलाओं को भी बराबरी का हक़ मिलना चाहिये।

सुश्री ज़ाकिया सोमन ने बताया कि वह भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन के माध्यम से पिछले दस साल से मुसलमान महिलाओं को बराबरी का हक़ दिलाने के लिये संघर्ष कर रही हैं। उनका संगठन पन्द्रह राज्य में काम कर रहा है। वर्ष 2014 में उन्होंने मुस्लिम फैमिली लॉ का ड्राफ्ट तैयार कर प्रस्तुत किया है।

सुश्री ज़ाकिया ने बताया कि देश का साठ से सत्तर फीसदी मुसलमान तीन तलाक पर रोक चाहता है। उन्‍होंने मुस्लिम फैमिली एक्ट बनाने की मांग उठाते हुए कहा कि तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह का प्रावधान खत्म होना चाहिये और इसे दंडात्मक बनाया जाना चाहिये।

सुश्री नयना सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि भारतीय सनातन परम्परा में शक्ति अपने आप में स्त्री का प्रतीक है। मौजूदा दौर में हम अपनी परम्पराओं से कटते चले गए जिसके फलस्वरूप आदर्श और व्यवहार में अंतर साफ दिखाई देता है, इसे कम करना ज़रूरी है।

उन्होंने कहा कि वैदिक काल में स्त्रियों का स्थान सर्वोपरि था लेकिन बाद के काल में महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय हो गई। लेकिन यह मान लेना कि महिला मुक्ति का आंदोलन पश्चिम की देन है सही नहीं है। हमारे देश में भी अलग-अलग कालखण्डों में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिये काम किये गये।

सुश्री सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि धर्म-सत्ता या राज-सत्ता जब भी महिला पर हावी हो जाती है तो उसका जीवन मुश्किलों से भर जाता है। पश्चिम में जहाँ एकलवाद पर ज़ोर दिया गया वहीं भारतीय संस्कृति सामूहिकता पर आधारित है। उन्होंने कहा कि न्याय, नैतिकता और आध्यात्मिकता का विचार देश में ज़ोर पकड़ रहा है।

ऐसी अनुकूल परिस्थितियों में भारतीय स्त्रीवाद के विचार को आगे बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय परिवार की परिकल्पना बहुत व्यापक है। यह न केवल स्त्री या पुरूष बल्कि पूरे परिवार और समाज को साथ लेकर आगे बढ़ने की बात कहती है।

सुश्री प्रज्ञा तिवारी ने कहा कि भारत का समाज बहुरंगी है, जबकि पश्चिम में फैमिनिज्म की सोच बिलकुल अलग है। हमारे देश में लोकतंत्र की स्थापना के साथ ही महिलाओं को मताधिकार मिल गया वहीं पश्चिमी देशों में वोट देने का हक़ पाने के लिये महिलाओं को लंबा संघर्ष करना पड़ा। उन्‍होंने भारतीय महिलाओं की बेहतरी के लिये बनाई जाने वाली नीतियों की चर्चा करते हुए कहा कि हमारे देश के सामाजिक, सांस्कृतिक ढाँचे को समझे बिना बनाई जाने वाली नीतियाँ कभी भी महिलाओं के लिये लाभकारी साबित नहीं हो सकती।

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