• December 7, 2015

न रोएं अभावों का झूठा रोना – डॉ. दीपक आचार्य

न रोएं  अभावों का झूठा रोना  – डॉ. दीपक आचार्य

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 हमारे पास किसी चीज की भगवान ने कोई कमी नहीं रखी है इसके बावजूद हममें से अधिकांश लोग हमेशा अपनी समस्याओं और अभावों का रोना रोते हैं, दुखड़ा सुनाते हैं और जो मिलता है उसके आगे अपनी समस्याओं का रोना शुरू कर देते हैं।

हो सकता है कि कुछ प्रतिशत लोगों के जीवन में वास्तविक समस्याओं और अभावों का माहौल हो, लेकिन अधिकांश के साथ ऎसा नहीं होता। बहुत सारे लोग हर दृष्टि से सम्पन्न और सक्षम होने के बावजूद अपनी समस्याओं पर चिन्ता जताते हैं।

इनमें से अधिकांश लोग झूठ-मूठ का रोना रोते हैं, केवल औरों के दिखाने और सहानुभूति पानेके लिए नौटंकियां करते हैंं, अपने आपको गरीब, विपन्न, लाचार और अक्षम बताते हैं।

बहुत सारे लोग काम-काज से जी चुराने के लिए ऎसा करते हैं। इनका विश्वास होता है कि दूसरों के सामने दुखड़ा रोते रहने से हमारे कामों का बोझ हल्का हो जाएगा और मुक्ति पा जाएंगे ताकि काम-काज को धत्ता दिखाकर तफरी कर सकें और अपने आनंद में रह सकेंं।

इस किस्म के लोग मिथ्या भाषी, झूठे, धूर्त और मक्कार होते हैं जिनके पास सम्मानजनक और स्वाभिमानी जिन्दगी देने के लिए भगवान ने सब कुछ दिया है मगर संतोष, धैर्य और शांति नसीब में नहीं दी है।

हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में बहुत सारे लोग हमारे सामने ऎसे आते हैं, बहुत से ऎसे लोगों के बीच हम काम करते हैं, जिन्हें हम आजीविका से लेकर सभी प्रकार से सम्पन्न मान सकते हैं लेकिन ये लोग जहाँ कहीं जिन गलियारों और बाड़ों में रहेंगे, वहाँ अपनी किस्मत का रोना रोएंगे, काम के बोझ के मारे परेशानी की चर्चा करेंगे, अपने शरीर के अक्षम होने, बीमारियों का घर होने तथा किसी न किसी पारिवारिक और सामाजिक समस्या का जिक्र करते हुए अपने आपको दीन-हीन बताएंगे, और ऊपर से यह प्रयास करेंगे कि दूसरे लोग उनकी बातें अपना समय खराब कर भी धैर्य से सुनें और उनके प्रति गहरी सहानुभूति जताते हुए उन्हें राहत प्रदान करें।

ऎसे दोहरे-तिहरे चरित्र वाले झूठे लोग हर जगह अपनी लाचारी, बेबसी और बीमारी का जिक्र करते हुए अपने दायित्वों से बचते रहने के हरसंभव प्रयास करते रहते हैं। यह इन लोगों की रोजमर्रा की आदत में शुमार होता है।

इनके सम्पर्क में आने वाला कोई भी इंसान ऎसा नहीं बचता जिसके सामने इन्होंने अपनी जिन्दगी की मामूली से मामूली समस्याओं तक का जिक्र न किया हो, अपनी ढेरों बीमारियों के बारे में न बताया हो।

ऎसे लोग पूरी जिन्दगी अपनी बीमारियों, काम के बोझ और झूठी बातों के सहारे निकाल देते हैं। अक्सर लोग इनके झाँसों में आ जाते हैं और इनके प्रति गहन सहानुभूति जताते हुए इन्हें काम-काज से बरी कर मुक्त कर दिया करते हैं।

लोगों की इस सहृदयता, सहानुभूति, मानवीय संवेदनाओं और दया का उपयोग करते हुए ये अपने निजी स्वार्थ भरे घरेलू या दूसरे व्यववसायिक काम-धंधों और लोक व्यवहारों में रमे रहते हैं।  अपनी बीमारियों और लाचारियों का करीब-करीब रोजाना दिन में कई-कई बार जिक्र करने वाले ये लोग अपने निजी कामों के प्रति लापरवाही नहीं करते, वे सारे काम-काज सामान्य तौर पर किया करते हैं जो एक आम इंसान स्वाभाविक रूप से कर लिया करता है।

लेकिन जहां सार्वजनिक और रोजी-रोटी वाले स्थानों के लिए काम करने की बात आती है वहीं इनका आधे से अधिक समय अपनी बीमारियों और विवशताओं तथा काम के बोझ की चर्चा में बीत जाता है।

ऎसे बहुत से लोगों से हमारा रोजाना पाला पड़ता है जो मिलने पर ऎसा व्यवहार करेंगे जैसे कि कई दिनों के भूखे और बीमार हों, किसी ने मारपीट कर अधमरा कर दिया हो या कैद से छूटकर आए हों। मुँह से आवाज भी नहीं निकलेगी, कुछ-कुछ क्षण बीतने पर अपने मुँह से लाचारों और बीमारों जैसी आवाजें निकालेंगे और यह जताएंगे कि वे अत्यन्त बीमार और विवश होने के बावजूद कर्तव्य पर आएं हैं, जैसे कि कर्तव्य स्थल वालों को निहाल करने आए हों और अहसास कर रहे हों।

 इस किस्म के लोगों से आजकल खूब सारे बाड़े भरे पड़े हैं। इन बाड़ों में बीमारी तथा शिथिलता का स्वाँग रचने वाले लोगाेंं की इतनी सारी संख्या को देखकर लगता है जैसे कि ये बाड़े नहीं मानसिक रोगियों के अस्पताल ही हों।

इन लोगों को शायद पता नहीं है कि जो बार-बार अपने आपको बीमार, आत्महीन, विवश, लाचार और नीच मानता है उसकी मानसिकता वैसी ही हो जाती है और कुछ ही वर्ष में उसके जीवन में रचे गए बीमारी और आत्महीनता के स्वाँग आकार ले लिया करते हैं।

इसलिए  जीवन में हर क्षण उत्साह से भरे रहें, काम से जी चुराने तथा छुट्टियाँ पाने के लिए लाचारी और बीमारी के बहाने न बनाएँ, बिना कारण के अपने आपको असाध्य शारीरिक और मानसिक रोगी के रूप में पेश न करें अन्यथा आने वाला समय हमारे लिए आईसीयू या पागलखानों के चक्कर काटने से कम नहीं रहेगा।

इन लोगों को यह भी समझ जाना चाहिए कि बार-बार जो कुछ कहा जाता है, किसी विशिष्ट क्षण में वह वाणी को सत्य भी करता है। इंसान के सामने बेबसी दिखाकर न गिड़गिड़ाएं, न बीमारी या लाचारी का जिक्र करें।

यदि वास्तविक तौर पर कोई दुःख या समस्या है भी, तो भगवान के समक्ष एकान्त में उपस्थित होकर कारुण्य भाव से प्रार्थना करें। लेकिन जो लोग झूठे और बहानेबाज हैं वे  भगवान के सामने जाने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं?

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