- October 7, 2018
नोटा दबाने वाले उसी तरह नासमझ है जैसे दलित और मुस्लिम
नोटा दबाने वाले उसी तरह नासमझ है जैसे दलित और मुस्लिम।
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बारिकी से गौर करें।
भाजपा कमजोर क्यों ?
— मतदाताओं को इस नाजुक स्थिति को समझना जरुरी है।
संविधान में धन विधेयक छोड़ कर कोई भी विधेयक पास करने के लिए दोनों सदन में 2 / 3 बहुमत चाहिए।
राज्य सभा की सींटें राज्य के विधान सभा की सींटों पर तय किया गया है। इस आधार पर राज्य में कोई और पार्टी हो और केंद्र में कोई और पार्टी हो तो विधेयक पास होना असंभव है यही कारण था की अटल की सरकार ने गठबंधन में कोई साहसिक कदम नहीं उठाई और सिर्फ सत्ताधर्म का पालन कियाा ।
2014 में जनता ने बीजेपी को ठोक- ठाक कर सत्ता समर्पित किया तथा अपने प्रतिनिधि को मजबूत आधार दिया। लेकिन अप्रत्यक्ष प्रतिनिधि सभा के सदस्यों के चुनाव में जनता की सीधा भागीदारी नहीं होने से लोकसभा की स्थिति कमजोर हो जाती है।
राज्य सभा के महत्व को आज भी 80 % आम जनता या मतदाता नहीं समज रहें हैँ , जैसे विश्वविद्यालय में सिंडिकेट के चुनाव में आम छात्रों की कोई भूमिका नहीं होती है उसी प्रकार राज्य सभा के सदस्यों के चुनाव में आम मतदाताओं की प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होती है।
संविधान में राज्य सभा और लोकसभा को सामान अधिकार दिया गया है सिर्फ धन विधयेक को छोड़ कर। हाँ ! लोक सभा द्वारा पारित कोई विधेयक को राज्य सभा 6 महीने तक विलम्ब कर सकती है। यह विलम्ब राज्य सभा के लिए अमोघ अस्त्र है। यहां लोक सभा कमजोर हो जाती है।
विधेयक पास होने के लिए दोनों का अधिकार बराबर है।
समस्या यह है की अप्रत्यक्ष प्रतिनिधि सभा (राज्य सभा ) के सदस्य 6 वर्षों के लिए चुने जाते है और लोकसभा के सदस्य सिर्फ 5 वर्षों के लिए चयनित होते है। यहाँ भी लोक सभा एक वर्ष के लिए कमजोर है।
संघीय राज्यों में सत्ता का विकेन्द्रीयकरण किया गया है। इस विकेन्द्रीयकरण के कारण राज्य में कोई और पार्टी तथा केंद्र में कोई और पार्टी सरकारें चला रही होती हैं । देश में 1984 के बाद यही उपक्रम जारी है। फलत: केंद्र की सरकार राज्य सरकारों के साथ आवंटन राशि में कटौती करती है , परियोजनाएं नहीं देती है — जैसे बिहार राज्य के साथ केंद्रीय कांग्रेस का सौतेलापन रवैया जगजाहिर है क्योंकि 1980 के बाद बिहार के मतदाताओं ने केंद्रीय पार्टी के विरुद्ध अपनी क्षेत्रीय पार्टी को राज्य समर्पित किया है जिसके कारण केंद्र सरकार (कांग्रेस ) ने बिहार को बर्बाद करने की रणनीति अपनाई और बर्बाद कर दिया।
उदाहरण देना जरुरी है क्योंकि केंद्र और राज्य में पृथक पार्टी की सरकारें होने से परिणाम क्या होता है , मतदाताओं के लिए यह समझना जरुरी है।
इस आधार पर जब अप्रत्यक्ष प्रतिनिधि सभा (राज्य सभा ) का चुनाव होता है तो राज्य में जो सत्तासीन होता है वह पार्टी अपना प्रतिनिधि को सांसद बनाती है और यह सांसद केंद्र की नीति में खलल डालती है।
सारी जड़ों की समस्या संविधान है , जब तक इसमें वर्तमान मांग के अनुसार संशोधन नहीं होगा तब तक कोई राजनीतिक दल देश की समस्या को हल नहीं कर सकता है। इसलिए अगर समस्या का पूर्ण हल चाहते हैं तो बीजपी को राज्य से लेकर केंद्र तक पूर्ण बहुमत दें।
कांग्रेस की 67 वर्षों की समस्या को सिर्फ चार वर्ष में हल करने की अपेक्षा पागलों जैसा है।
अब देखिये , हरियाणा जिसे जाटलैंड कहा जाता है , इस प्रदेश पर मुस्टंड जाटों की पार्टी (इंडियन नेशनल लोक दल ) और कांग्रेस ने आधिपत्य जमाई। इस काल में ठीकेदारी प्रथा पर कार्यरत कर्मचारियों को पक्का करने की समस्याओं पर किसी ने मुँह तक नहीं खोला और आज सिर्फ 4 वर्षों में ही ये दोनों पार्टी जनता से छाती पीट्वा रही है — हाय -हाय !! ये हाय -हाय !! उस वक्त क्यों नहीं किया गया।
पूर्व कांग्रेस की केंद्रीय सरकार देश की विकास , राष्ट्रीय समस्या को चौक कर सिर्फ — मुस्लिमवाद को बढ़ावा देकर सपा , बसपा, राजद तृणमूल कांग्रेस (ममता ) जिसे सर्प को पाल कर सरकार चलाई।
सवर्णों ने इस काल में एसी / एसटी एक्ट , आरक्षण जैसे विषमवाद को लेकर सड़क पर क्यों नहीं उतरा। 67 वर्षों से चल रही दमनकारी नीति को पेंचीदा संविधान के कारण सिर्फ मूल जड़ को समाप्त किये , हल करने की आशा मृगमारीचिका है, मंडल आयोग को लागू करने पर देशव्यापी दुष्परिणाम को सामने रखकर सवर्णों को वर्तमान में कदम उठाना होगा क्योंकि वोट राजनीति के अनुसार सत्ता निर्णायक नहीं है। जहाँ तलवार नहीं, वहाँ कलम समाधान है.
राजनीतिक दलों की बीमार मानसिकता के कारण सरल काम भी जटिल हो रहा है क्योंकि वह काम कम और ढिंढोरा ज्यादा पीटती है। अर्थात खोदा पहाड़ निकली चुहिया। नेता तो नेता , चपरासी तक लोगों को राजनीतिक धमकी देकर काम करने से पल्ला झाड़ लेते है।
नोटा दबाने वाले बंधुओ से यही कहना चाहता हूँ की वे बीजपी को राज्य से लेकर केंद्र तक सशक्त करें। 67 वर्षों तक केंद्र में और 15 -15 वर्षों तक राज्य में दुष्टों के हाथों अपने को समर्पित करने की साहसिक और धैर्यवान मतदाता को बधाई देता हूँ।
अगर सवर्णों ने नोटा पर पोटा किया तो हिन्दू विरोधी दलों का जमावड़ा होगा जिसके कारण देश और राज्य का हर कोना मुस्लिम घाटी होगा और हिन्दू शरणार्थी। हिन्दू विरोधी पार्टी के करतूतों से भविष्य को सावधान करें।