- October 7, 2015
निष्काम सेवा ही परोपकार – डॉ. दीपक आचार्य
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सेवा का क्षेत्र अब सारी सीमाओं को लाँघ चुका है। यह देशज से लेकर वैश्विक स्तर पर ऎसा शब्द हो गया है जो आम आदमी से लेकर धनाढ्य वर्ग तक के लोगों में लोकप्रिय है।
सेवा, सहिष्णुता, सदाचार, संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों के संस्कार भारतीय संस्कृति और परंपराओं का अहम् हिस्सा रहे हैं जो अपने आप में इंसानियत का सार्वजनीन पैमाना भी हैं और हर इंसान के व्यक्तित्व को नापने का मापदण्ड भी।
जिस किसी इंसान में जितने अनुपात में इन मूल्यों का घनत्व होता है वह इंसान श्रेष्ठ माना जाता है। सेवा शब्द आज के माहौल में हर किसी को पसंद है।
यह सेवा ही है जिसके सहारे बहुत कुछ प्राप्त होता है। और कुछ नहीं तो आत्मतोष और जीवन व्यवहार की सीख देने में सेवा का कोई मुकाबला नहीं है। सेवा आजकल साफ-साफ दो भागों में विभक्त है। एक सेवा वह है जिसमें सेवा करने वाले की सेवा पाने वालों से किसी भी प्रकार की कोई अपेक्षा, इच्छा या प्रतिफल की कामना नहीं होती।
ये सेवा मानवीय मूल्यों और संवेदनशीलता से भरी हुई होती है जिसमें सेवा पाने वाला जरूरतमन्द संतुष्ट होकर अपने जीवन को आसान मानकर दिल से दुआएं देता है।
दूसरी ओर सेवा करने वाला बिना किसी इच्छा या अपेक्षा के सेवा करने के बाद आत्मिक शांति और सकून पाता है और इस सुख का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। यह अनिर्वचनीय सुख केवल अनुभव ही किया जा सकता है। और अनुभव भी वही कर सकता है जो निष्काम सेवा करता है।
इस प्रकार की सेवा का प्रतिफल इंसान की बजाय ईश्वर की ओर से प्राप्त होता है। कोई भी निष्काम कर्मयोगी कितनी ही अधिक से अधिक सेवा करता रहे, किसी से कोई आशा-अपेक्षा न रखें, तब भी उसकी सेवा का फल देने के लिए भगवान हमेशा तैयार रहते हैं।
ऎसे लोगों को अनचाहे ही कोई न कोई ईश्वरीय वरदान प्राप्त होते ही रहते हैं। साथ ही मृत्यु के उपरान्त उस जीवात्मा के खाते में उसके द्वारा की गई सेवा का पुण्य दर्ज हो जाता है।
इस प्रकार निष्काम सेवाव्रतियों के सेवा कर्म का उन्हें दोहरा लाभ प्राप्त होता है। एक तो उनके जीते जी भगवान सेवा का किसी न किसी प्रकार से प्रतिफल दे ही देता है, दूसरा मरने के बाद उन्हें सेवा का पुण्य भी प्राप्त होता है जो उनके आने वाले जन्म को और अधिक पावन, समृद्ध और सुकूनदायी बनाने में मददगार सिद्ध होता है।
इससे भी ज्यादा लाभ इन लोगों को यह होता है कि इनके द्वारा की जाने वाली निरपेक्ष सेवा और इनके कर्म को कोई कलंकित नहीं कर सकता, क्योंकि ये लोग अपेक्षा, लोभ-लालच और सेवा के बदले कुछ न कुछ पाने की लपक दौड़ से दूर रहते हैं।
इन लोगों को हमेशा यश ही प्राप्त होता है, अपयश से ये बचे रहते हैं। यह संभव है कि कुछ असामाजिक, नुगरे और नालायक लोग इनके पीछे पड़े रहकर इनकी प्रतिष्ठा हानि करने की कोशिश करते रहें, मगर इन विघ्नसंतोषी लोगों की कारगुजारियां ज्यादा समय तक नहीं चल पाती, कुछ समय बाद इन लोगों को हताशा ही हाथ लगती है जब इनकी स्थिति ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ जैसी हो जाती है।
झूठ, फरेब और मिथ्याचार ज्यादा दिनों तक कभी नहीं चल सकता। इसके विपरीत बहुत सारी संस्थाएं और लोग सेवा कही जाने वाली ढेरों गतिविधियों में जुटे रहते हैं।
इन लोगों में सेवा करने वालों के कई प्रकार हैं। कुछ को बहुत कम काम करते हुए अधिक से अधिक लोकप्रियता की दरकार होती है, कुछ को अपने काम-धंधों से परिचित कराने के लिए बहुत सारे लोगों को जोड़ने की मंशा होती है।
कुछ को सेवा कार्यों से कुछ न कुछ परोक्ष-अपरोक्ष लाभ पाने की कामना हुआ करती है, कुछ के लिए सेवा ही अपने आप में रोजगार देने-दिलाने का बहुत बड़ा जरिया बनकर उभर जाती है।
बहुत सारे लोगों के लिए सेवा किसी न किसी इच्छित को प्राप्त करने का माध्यम है और इन लोगों को लगता है कि यह सेवा आने वाले समय में कभी न कभी काम आएगी ही, भविष्य के इन्हीं कामों को देखकर लोग सेवा के किसी न किसी माध्यम से जुड़ जाते हैं।
निष्काम सेवाव्रतियों की संख्या के मुकाबले सकाम सेवा करने वाले लोगों की भीड़ सर्वत्र छायी हुई है। इनके द्वारा किए जाने वाले कामों को सेवा के रूप में प्रचारित भले ही किया जाए लेकिन यह तथ्य और सत्य ही है कि जो लोग सेवा के बदले कुछ भी चाहत रखते हैं, उनके द्वारा जो कुछ किया जाता है वह सेवा या परोपकार की श्रेणी में नहीं है।
असली सेवा और परोपकार वही है जो निरपेक्ष और निष्काम भाव से हो, जिसमें न सेवा करने का कोई अहंकार व्याप्त हो, और न ही सेवा के बदले किंचित मात्र भी पाने का भाव।
जो पैसे या उपहार लेकर किसी की मदद करते हैं उनकी तथाकथित सेवा कारोबार से कम नहीं है जिसमें मानवीय मूल्यों का गला घोंट कर सामने वाले की मजबूरी का फायदा उठाकर या अपने किसी लाभ के लिए जो कुछ किया जाता है वह लेन-देन से ज्यादा कुछ नहीं होता। यह कोरा व्यापार ही है, सेवा नहीं।