- May 18, 2019
निजी स्वार्थ के कारण विपक्ष हुआ धड़ाम— सज्जाद हैदर
वाह! अजब रूप और गजब कहानी। वाह रे सियासत तेरे रूप हजार। देश की चिंता किसे है आज के समय में यह समझ पाना अत्यंत जटिल हो गया है। इसलिए कि आज देश की सियासी पार्टियां अपना जो रूप दिखा रही हैं वह अत्यंत जटिल एवं मस्तिष्क को चकरा देने वाला दृश्य है। सबसे से जटिल प्रश्न यह है कि सबकी भाषा लगभग एक समान है। फिर भी सभी सियासी पार्टियां अपने आपको जनता के हितों के लिए संघर्ष करने का दावा ठोकती हुई दिखाई दे रही हैं।
सभी विपक्षी दल एक ही भाषा बोल रहे हैं, सब अपने आपको जनता के हितों के लिए न्याय हेतु जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसा सभी राजनीतिक पार्टियों का कहना है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने मंचो से एक बात कहती हुई दिखाई दे रही हैं, कि जनता को अबतक न्याय नहीं मिला, जनता को उसका हक नहीं मिला, जनता को उसका अधिकार नहीं मिला, जनता के साथ न्याय नहीं हुआ।
जनता के लिए कोई भी योजना सरकार ने नहीं चलाई, कोई भी योजना देश की गरीब जनता के उत्थान के लिए सरकार ने धरातल पर नहीं उतारी, जितनी भी योजनाएं वर्तमान सरकार लेकर आई है वह सभी योजनाएं मात्र कागज पर ही सीमित हैं। यह वर्तमान सरकार गरीबों के हित की लड़ाई नहीं लड़ती, अपितु वर्तमान सरकार पूँजीपतियों की सरकार है, मात्र मुट्ठीभर लोगों की यह सरकार है इसे गरीबों से कुछ भी लेना देना नहीं है। ऐसा सभी विपक्षी पार्टियां सरकार पर आरोप लगाती हैं। सरकार को घेरना विपक्षी पार्टियों का अधिकार है यह सत्य है।
परन्तु, जनता के सामने झूठ बोलना एवं मनगढ़न्त आरोप लगाना, जनता को गुमराह करना, जनता को वर्गलाना, क्या यह सही है, इसे गंभीरतापूर्वक सोचने एवं समझने की आवश्यक्ता है। क्योंकि, सरकार का खुलकर विरोध करना यह तो विपक्ष का कार्य है, यह तो उचित है कि सरकार पर नकेल लगाई जाए, सरकार के कार्यों पर ध्यान दिया जाए, किसी भी प्रकार की जनविरोधी नीतियों का खुलकर विरोध किया जाए, देश का संविधान देश की विपक्षी पार्टियों को इस बात की इजाजत देता है कि वह सरकार की जनविरोधी नीतियों का खुलकर विरोध करें, और देश की जनता को अवगत कराएं, साथ ही देश में देश हित एवं जनहित हेतु जनसमर्थन जुटाएं, इस बात की इजाजत देश का संविधान विपक्षी पार्टियों को प्रदान करता है।
परन्तु, क्या इस नियम के आड़ में देश की जनता को वर्गलाना सही एवं न्याय संगत है। इसलिए कि जब सभी विपक्षी पार्टियां सरकार पर आरोप लगाती हैं और सरकार की घोर आलोचना करती हैं, सभी विपक्षी दल जब एक ही भाषा का प्रयोग करते हैं, सभी विपक्षी दल जनता के हित हेतु संघर्ष करने की बात करते हैं, सभी विपक्षी दल जनता को न्याय दिलाने की बात करते हैं। जब सभी विपक्षी दलों का एक ही उद्देश्य है तो यह सभी विपक्षी दल एकजुट क्यों नहीं होते? क्योंकि, चुनाव से ठीक पहले सभी विपक्षी पार्टियां एक पायदान पर खड़े होने की बात कर रही थीं।
परन्तु, चुनाव के आते ही ऐसा क्या हो गया कि सभी पार्टियां बिखरी हुई दिखाई दे रही हैं, और अपना-अपना मंच सजाए हुए अलग-अलग खड़ी हुई दिखाई दे रही हैं। जबकि, सभी विपक्षी पार्टियों कथनों एवं भाषणों के अनुसार सभी का एक ही उद्देश्य एवं एक ही मकसद है। तो प्रश्न यह उठता है कि जब एक ही मखसद है तो यह बिखराव क्यों? इस बिखराव का कारण क्या है? आज विपक्ष एक जुट क्यों नहीं है। जबकि, सभी अपने आपको जनता के सबसे बड़े हितैषी दल के रूप में देश एवं जनता के बीच प्रस्तुत करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। तो आज लगभग सभी विपक्षी दल अपनी-अपनी टोलियों में क्यों बंटे हुए दिखाई दे रहे हैं।
यह प्रश्न अत्यंत जटिल एवं गंभीर है———
जिसे बहुत ही गंभीरता पूर्वक समझने की आवश्यकता है। इसलिए कि जब उद्देश्य एवं मकसद वास्तव में एक ही होता है तो शायद बिखराव की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं, और एक उद्देश्य एवं एक मकसद के लोग एक साथ एक ही पायदान पर खड़े नजर आते हैं। क्योंकि, ऐसा सदैव देखा गया है। इतिहात इस बात का साक्षी है कि जब-जब विश्व में कहीं भी किसी भी प्रकार का सत्यता के साथ हृदय से कहीं भी आंदोलन हुआ तो वह देश दो विचारधाराओं के बीच बंटकर एक जुट हो गया। यह सत्य है किसी देश के अतीत एवं वर्तमान के पन्नों को यदि आप पलटकर अवलोकन करेंगे तो आपको स्पष्ट रूप से विचारधाराओं के बीच की लड़ाई दिखाई देगी।
परन्तु, आज भारत की राजनीति ने अपना जिस तरीके चेहरा जनता के बीच प्रस्तुत किया है वह अत्यंत दुखःद एवं चिंताजनक है।
इतिहास साक्षी है जब-जब विश्व के किसी भी देश में जनता ने आंदोलन आरम्भ किया और जनहित हेतु आंदोलन आरम्भ हुआ तो उसका मुख्य कारण था की जनता में उपजा हुआ असंतोष। जिसके परिणाम स्वरूप उस देश की जनता ने आंदोलन किया और अपने अधिकारों की रक्षा हेतु उस देश की जनता अपने-अपने घरों से निकलकर सड़कों पर आ खड़ी हुई। मात्र सड़कों पर आ जाने से आंदोलन सफल एवं सिद्ध हो जाए ऐसा कदापि नहीं हो सकता। क्योंकि, किसी भी आंदोलन को सफल एवं सिद्ध करने के लिए उस देश की जनता को बड़ी से बड़ी कुर्बानी देनी पड़ती है जिसमें देश का हर तबका मुख्य रूप से उस आंदोलन का भागीदार होता है। तब जाकर किसी भी देश का आंदोलन सफल एवं कामयाब होता है। क्योंकि, उस देश की जनता स्वयं अपना नेता चुनती है। जो कि उसके दुख दर्दों को समझे और उस दुख दर्द का निराकरण करने की क्षमता रखता हो।
यह भी अडिग सत्य है कि किसी भी देश में आंदोलन तभी हुआ जब उस देश में शासन के प्रति पनपा हुआ आक्रोश एवं शासक के प्रति दूसरा विकल्प जनता को प्राप्त हो गया हो। जबतक किसी भी देश की जनता को दूसरा विकल्प नहीं मिल जाता तबतक आंदोलन कदापि नहीं होता। क्योंकि, किसी भी आंदोलन के सफल होने के लिए नेतृत्व का होना अत्यंत आवश्यक है।
जब किसी भी देश में जनता को अपना दूसरा विकल्प दिखाई देता है कि यह व्यक्ति देश की सत्ता पर विराजमान होकर हम जनता की समस्याओं का निराकरण निश्चित ही कर देगा तभी उस देश में आंदोलन का बिगुल बजता है। और तब देश की जनता सड़कों पर उतर जाती है। क्योंकि, किसी भी आंदोलन में जान माल की भी भारी क्षति पहुंचती है। परन्तु, उस देश की जनता इस बात की परवाह न करते हुए आंदोलन के लिए एक जुट होती चली जाती है। और आंदोलन को सफल बनाकर ही शांत होती है। उसके बाद अपने संघर्षशील व्यक्ति को देश की गद्दी पर बैठा करके देश का नेता बना देती है। जिसे देश की जनता अपनी जिम्मेदारी सौंप देती है। लोकतंत्र का यही मुख्य रूप है। इसे ही लोकतंत्र कहते हैं। जनता के लिए जनता हेतु जनता की सरकार दिन रात कार्य करे लोकतंत्र का यही मुख्य मंत्र है।
दूसरा सबसे अहम बिंदु यह है कि नेतृत्व क्षमता। किसी भी देश में आंदोलन नेतृत्व क्षमता के कारण ही हुआ है न कि इससे इतर। किसी भी नेता के नेतृत्व से फैला हुआ असंतोष ही आंदोलन का मुख्य कारण बना है।
राजनीति का यही मुख्य मूल उद्देश्य है। सफल एवं दृढ़ तथा जनता के प्रति समर्पित नेता को ही देश की कमान सौंपी जाती है कि वह देश की जनता की समस्याओं का निराकरण कर सके। जोकि जनता की समस्याओं से भलिभांति अवगत हो, साथ ही जनता की समस्याओं के निराकरण की प्रबल क्षमता रखता हो। ऐसे ही व्यक्ति को सदैव किसी भी देश की सत्ता की बागडोर दी जाती है। जोकि सेवाभाव से अपने कुशल अनुभव के साथ देश की सेवा कर सके। किसी भी देश की राजनीति का मुख्य आधार यही होता है।
ऐसा कदापि नहीं होता कि किसी भी देश की सत्ता पर अअनुभवी एवं अप्रतिबद्ध तथा अप्रबल व्यक्ति को सत्ता की कुर्सी पर बैठाकर देश की जनता के ऊपर थोप दिया जाए और देश की जनता उस थोपे हुए व्यक्ति को स्वीकार्य करले। ऐसा कदापि नहीं होता।
किसी भी देश की राजनीतिक व्यवस्था फैमिली कैरियर अथवा किसी भी व्यक्ति को राजनीति सिखाने की प्रयोगशाला के रूप में कभी भी प्रयोग नहीं की जाती क्योंकि, ऐसा करना देशहित एवं जनहित के लिए कदापि शुभ संकेत नहीं है। इसलिए किसी भी देश में राजनीति को प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग करना संभव नहीं है। क्योंकि, यह संपूर्ण देश एवं देश की जनता के हित की बात होती है। क्योंकि, किसी भी देश का विकास उसके नेतृत्व के विवेक पर ही निर्भर करता है।
यदि नेतृत्व क्षमत प्रबल एवं कुशल है तो देश विश्वस्तर पर अपनी पहचान बनाने में सफल एवं कामयाब होता है। किसी भी देश का नेतृत्व यदि सफल एवं दूरगामी सोच वाले नेता के हाथों में है तो वह देश विश्व की कूटनीति एवं राजनीति में सफल होकर संपूर्ण विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए आगे बढ़ता चला जाता है। और एक दिन जाकर वह देश विश्व की पहली पंक्ति में खड़ा हो जाता है।
ऐसा इसलिए होता है कि उस देश के नेता ने संपूर्ण विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा और विश्व की कूटनीति एवं राजनीति में वह नेता सफल हो गया। जिससे कि संबन्धित देश की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति होती है। इसी के ठीक विपरीत यदि किसी भी देश के नेतृत्व में यदि तनिक भी विश्व स्तर के नेतृत्व शक्ति का आभाव है तो वह देश कितना ही बलवान क्यों न हो परन्तु, अपने नेता की अक्षमताओं के कारण विश्व स्तर की राजनीति में सफल कदापि नहीं हो सकता। यह सत्य है।
अतः किसी भी देश की राजनीति में परिवारवाद एवं कैरियरवाद को बढ़ावा देना उस देश के राजनीतिक भविष्य के लिए बहुत ही बड़ा खतरा है जोकि, अत्यंत घातक है। क्योंकि, किसी भी देश की राजनीति परिवारवाद एवं कैरियरवाद के लिए नहीं होती। क्योंकि, राजनीति का मुख्य उद्देश्य देशहित एवं जनहित पर ही आधारित होता है। न कि इससे इतर।
परिवारवाद एवं कैरियरवाद की राजनीति किसी भी देश के लिए एक कैंसर है जोकि देश को धीरे-धीरे खोखला करके एक दिन समाप्त कर देती है। यह भी सत्य है कि आज किसी भी राजनीतिक पार्टी में योग्य व्यक्ति की कमी नहीं है। अनेकों ऐसे व्यक्ति हैं जोकि सुधार एवं परिवर्तन की क्षमता रखते हैं लेकिन वह ऐसी राजनीतिक पार्टियों में हैं कि वह आगे आ ही नहीं सकते। क्योंकि, वंशवाद की राजनीति हावी होने के कारण योग्य व्यक्ति को अपनी राजनीतिक पार्टी में देश की सेवा का अवसर नहीं प्राप्त होता।
यह सत्य है जिसे बड़ी ही सरलता के साथ देश की राजनीति में देखा जा सकता है। क्योंकि, शीर्ष नेतृत्व की सीट किसी दूसरे व्यक्ति के लिए रिजर्व है। जोकि वंशवाद एवं परिवारवाद पर आधारित है। तो क्या ऐसा करना उचित एवं न्यायसंगत है। क्या इससे देश एवं जनता की समस्याओं का निराकरण हो पाएगा। इसे सोचने और समझने की आवश्यकता है। इस बिंदु पर चिंतन तथा मनन करने की आवश्यकता है।
क्योंकि, भारत की राजनीति में आज जो कुछ हो रहा है वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। आज के समय में भारत की राजनीति को फैमिली कैरियर के रूप में ढ़ालने खाका खींचा जा रहा है। यह अत्यंत चिंताजनक है। इससे अधिक यह और भी चिंताजनक है कि आज देश की राजनीति को ट्रेनिंग स्कूल के रूप में ढ़ालने की कोशिश हो रही है। किसी भी चर्चित परिवार एवं किसी भी चर्चित वंश में जन्मे हुए व्यक्ति को देश के ऊपर थोपने का प्रयास किया जा रहा है। क्या यह न्यायसंगत है? क्या यह सही एवं उचित है? क्या ऐसा किया जाना चाहिए? इसलिए कि यह देश, देश के प्रत्येक नागरिक का है। न कि कुछ चर्चित परिवार एवं वंशवाद की औधोगिक फैक्ट्री।
इसलिए देश एवं देश की जनता के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना अत्यंत गलत एवं अन्याय पूर्ण है। ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए। देश की प्रत्येक जनता को इस संदर्भ में गंभीरता पूर्वक विचार एवं आत्म मंथन करना चाहिए कि क्या सत्य है अथवा क्या असत्य। क्योंकि यह देश के प्रत्येक नागरिक के भविष्य की बात है।