निक्षेपकों के हितों का संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2015 पारित

निक्षेपकों के हितों का संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2015 पारित

छत्तीसगढ़ (रायपुर) –             विधानसभा में आज सर्वसम्मति से राज्य के निक्षेपकों के हितों का संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2015 पारित किया गया। मुख्यमंत्री और वित्त विभाग के भारसाधक मंत्री डॉ. रमन सिंह ने विधानसभा में यह संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया।

पारित विधेयक में आम जनता से धनराशि जमा कर कपटपूर्ण तरीके से उक्त राशि को गायब करने तथा वापिस न करने वाले व्यक्तियों, कम्पनियों एवं वित्तीय स्थापनाओं पर दण्डात्मक कार्रवाई के प्रावधान हैं। इसमें कड़े प्रावघान करते हुए दोषी व्यक्तियों व कम्पनियों को न केवल समय-सीमा के भीतर सख्त दंड दिया जा सके तथा आम जनता की धनराशि की वापसी हो, बल्कि उक्त क्षेत्र में कार्यरत वित्तीय स्थापनाओं पर प्रभावी रूप से निरंतर नजर रखी जा सके।

संशोधन विधेयक में मुख्य रूप से प्रस्तावित प्रावधान के अनुसार इस तरह के अपराधों को संज्ञेय तथा गैर-जमानती घोषित किया गया है तथा दोष साबित होने पर दिये जाने वाले अर्थदण्ड में बढ़ोत्तरी की गई है। प्रकरण में विशेष न्यायालय द्वारा 240 दिवस के भीतर कार्रवाई पूर्ण करने का प्रावधान रखा गया है।

सक्षम प्राधिकारी (जिला मजिस्ट्रेट) को जब्ती, वित्तीय स्थापनाओं से जानकारी प्राप्त करने, उनकी आस्तियों का निर्धारण करने तथा पुलिस व अन्य संबंधित कार्यालयों से जानकारी मंगाने और सहायता लेने के लिए शक्तियां प्रदान की जा रही हैं। वित्तीय स्थापनाओं को सक्षम प्राधिकारी (जिला मजिस्ट्रेट) को नियमित रूप से संपूर्ण जानकारी देना अनिवार्य होगा, जिसमें वित्तीय स्थापनाओं के मालिक, संचालक सम्पत्ति एवं जमा राशि का विवरण तथा जिले में उनके द्वारा चलाई जा रही जमा राशि योजनाओं की जानकारी होगी। इससे संबंधित जानकारी नहीं दिये जाने पर अर्थदंड को बढ़ाने का प्रावधान रखा गया है।

सक्षम प्राधिकारी (जिला मजिस्टेªट) को किसी वित्तीय स्थापना के द्वारा निक्षेपकों की राशि पूर्व में तय अवधि पर वापस न करने अथवा धोखाधड़ी की प्रथम दृष्टया जानकारी होने पर संबंधित वित्तीय स्थापना व उसके मालिको अथवा अंशधारको की सम्पत्ति को जब्त करने हेतु स्पष्ट अधिकार व प्रक्रिया स्थापित की गयी है। वित्तीय स्थापनाओं द्वारा दिये जाने वाले भ्रामक विज्ञापनों को दंडनीय बनाया गया है।

विशेष न्यायालय में कुर्की, नीलामी व भुगतान की कार्रवाई को सिविल मामले के बजाय क्रिमिनल मामले के रूप में चलाया जाएगा। डिपॉजिट की परिभाषा में बदलाव कर आर.बी.आई. एक्ट का संदर्भ हटा दिया गया है व व्यापारिक प्रकृति के डिपाजिट भी परिभाषा से हटाए गए है ताकि दिन-प्रतिदिन व्यवसायिक व अन्य व्यापारिक गतिविधियों में होने वाले धन के आदान-प्रदान पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े। इसके अतिरिक्त अन्य परिभाषाओं को स्पष्ट करने हेतु प्रावधान किये गये है।

इस प्रकार छत्तीसगढ़ के निक्षेपकों के हितों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक के माध्यम से प्रदेश के निक्षेपकों को छलकपट से हानि पहुचाने वाले व्यक्तियों व वित्तीय स्थापनाओं से बचाने के लिए अधिक प्रभावी प्रशासकीय एवं न्यायिक व्यवस्था का निर्माण किया जा सकेगा।

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