• March 12, 2016

दोष न दें इन बेचारों को – डॉ. दीपक आचार्य

दोष न दें  इन बेचारों को  – डॉ. दीपक आचार्य

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 कई बार हम उन लोगों से कुछ न कुछ अपेक्षाएं पाल लिया करते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि ये बड़े और प्रभावशाली लोग हैं या प्रभावशालियों की अनुचरी में लगे हुए हैं अथवा आगे-पीछे घूमने वाले हैं।

ये लोग किसी ओहदे पर भी हो सकते हैं, बिना ओहदेदार भी हो सकते हैं, गृहस्थ भी हो सकते हैं और किसी न किसी प्रकार के दारुण दुःखों को प्राप्त संसार त्याग कर वैराग्य धारण कर चुके बाबाजी भी।

औरों को किसी न किसी रूप से स्थापित करने में धन, श्रम और समय की मदद करने वाले हो सकते हैं अथवा भेड़ों की रेवड़ में शामिल भेड़ अथवा खरीदी हुई भीड़ के रूप में साथ रहते हुए शक्ति परीक्षण में कामयाबी दिलाने वाले भी।

और भी कई किस्मों के प्रभावशाली या पाश्र्व प्रभावशाली हो सकते हैं। प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी भी प्रकार के प्रभावशाली हों, आंशिक असरकारी हों या फिर आधे-अधूरे या छद्म प्रभावशाली या बड़े आदमी, इन सभी के प्रति सामान्यजन हमेशा आशा भरी निगाहों से देखते हैं और यह भ्रम पाले रहते हैं कि ये लोग किसी न किसी मुकाम पर जब आवश्यकता पड़ जाए, काम आने वाले हैं, इसलिए इन्हें आदर-सम्मान देने में कहीं कोई कमी नहीं रखी जाए।

आम जन के इसी शाश्वत और अखण्ड विश्वास का बेजा फायदा उठाकर बहुत सारे अपूज्य लोग पूजे जा रहे हैं, अव्वल दर्जे के तिरस्कार योग्य लोग सम्मान पा रहे हैं और अभावों में जीने के लिए पैदा हुए लोग पराए माल पर मौज उड़ा रहे हैं।

हर जगह आजकल प्रभावशालियों या उनके पीछे चलने वाले अथवा उनके इशारों पर बंदरिया उछलकूद करने वालों का बोलबाला है। हर आदमी अपनी प्रतिष्ठा चाहता है। जो आत्म प्रतिभा सम्पन्न होते हैं वे ग्रहों की तरह स्वयं दैदीप्यमान रहते हैं, बाकी सारे लोग उपग्रहों और निहारिकाओं की तरह इनके चक्कर काटते रहते हैं।

एक दूसरों को प्रकाशित करने वाले होते हैं और अन्य लोग परायों से प्रकाशित होते रहते हैं। हम सभी के जीवन में उन लोगों का बड़ा महत्व है जिनके बारे में वास्तविकता अथवा भ्रम से हम यह मानते हैं ये बड़े हैं अथवा बड़ों के साथ रहने, खाने-पीने, सोने, उठने-बैठने या घूमने-फिरने अथवा घुमाने-फिराने वाले हैं इसलिए ये कभी न कभी को काम आएंगे ही।

फिर ऎसे लोग हर काल में अपने आपको प्रतिष्ठित बनाए रखने के सारे गुर जानते हैं इसलिए देश, काल और परिस्थितियां कैसी भी हों, कोई सा पाला हो, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। ये अमरबेल से भी मजबूत जींस को लेकर पैदा होते हैं जो कहीं भी चिपक, लिपट और चढ़ जाने के सारे तिलस्मों और टोनों-टोटकों में माहिर होते हैं।

और यही खासियत है जो लोगों को इनसे बांधे रखती है और इनका आकर्षण जनमानस पर हमेशा छाया रहता है। हम सभी इन लोगों को हमेशा प्रभावशाली के रूप में ही देखते हैं और इसी आशा में इन्हें आदर-सम्मान और सुख-सुविधाएं प्रदान करते रहते हैं कि ये हमारे किसी न किसी काम आएंगे।

जमाने की हवाओं को देख कर लगता है कि हम इन लोगों से आशा से कई गुना अधिक अपेक्षाएं रखने लग जाते हैं और इस कारण हमें दुःखी होना पड़ता है, निराशा और हताशा पैदा होती है और पछतावा होता है।

हम सभी को यह समझना चाहिए कि जिन लोगों को हम बड़ा मान बैठे होते हैं। वे हमारे लिए बड़े हैं न कि उनके लिए जिनके कि साथ वे रहते हैं या जिनके लिए काम करते हैं।  उनके लिए तो वे एक अनुचर, अंधभक्त, दास या नौकर-चाकर से ज्यादा अहमियत नहीं रखते।

ये लोग अपने आपकी छवि चमकाए रखने, खुद को प्रतिष्ठित दिखाए रखने और खुद के स्वार्थ भरे कामों की फेहरिश्त को ही पूरा कराने के फेर में रमे रहते हैं और इस कारण ये न किसी अच्छे, सच्चे और श्रेष्ठ इंसान की मदद कर सकते हैं और न ही उसके लिए वकालात।

असल में इन बेचारे लोगों की विवशता भी हमें समझनी चाहिए कि ये लोग चाहते हुए भी कोई काम कर पाने की स्थिति में नहीं हुआ करते। इन बड़े लोगों को यह भी खतरा सताये रहता है कि दूसरों के काम आने पर उनके अपने कामों के वक्त प्रभावहीनता कहीं न आ धमके, इसलिए अपने स्वार्थ का कोई सा काम आने का इंतजार करते रहते हैं और उसी के लिए कहने या कराने में विश्वास रखते हैं।

जैसे-तैसे जोड़-तोड़ और समीकरण बिठाए और बनाए रखने की जद्दोजहद और भविष्य की आशंकाओं से घिरे ये बेचारे किसी काम के नहीं होते। ये लोग किसी स्वर्ण या रजत आभूषण की तरह देखने-दिखाने लायक होते हैं अथवा किसी मॉल में आकर्षण के लिए रखे मॉडल्स या फिर पुरातत्व संग्रहालय की किसी उम्दा और सुन्दर मूर्ति की तरह, जहां केवल ये दर्शनीय ही होते हैं, और किसी काम के नहीं।

ये लोग हमारे किसी काम न आ सकें, तो इन्हें उलाहना न दें, इन बेचारों की विवशता को समझें।  जो अपने ही वजूद के लिए दिन-रात मरते जा रहे हैं, उनसे किसी भी प्रकार की  उम्मीद रखना अपनी मूर्खता ही है।अ

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