दृष्टिहीनता के मामले कम करने के लिए एआईओएस ने कोर्निया दान का जागरूकता अभियान चलाया

दृष्टिहीनता के मामले कम करने के लिए एआईओएस ने कोर्निया दान का जागरूकता अभियान चलाया

नई दिल्ली : जीवन जीने के तौर तरीकों में बदलाव और डिजिटल स्क्रीन का अत्यधिक इस्तेमाल के कारण सभी उम्र के बहुत सारे लोगों में दृष्टि की मामूली से लेकर गंभीर समस्या बढ़ रही है। हालांकि इससे बचा या छुटकारा पाया जा सकता है, बशर्ते कि लोग नेत्रदान यानी कोर्निया के दान के लिए आगे आएं। इलाज योग्य दृष्टिहीनता के मामले कम करने के मकसद से ऑल इंडिया ऑप्थैल्मोलॉजी सोसायटी (एआईओएस) इस बारे में जानकारी को लेकर जागरूकता अभियान शुरू किया है और राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े के तहत लोगों को दृष्टि/कोर्निया दान के लिए प्रोत्साहित किया।

एआईओएस के अध्यक्ष और सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ हास्पिटल्स के चेयरमैन डॉ. महिपाल सिंह सचदेव ने कहा, कोविड 19 महामारी का असर इस साल भारत में नेत्रदान मुहिम पर भी पड़ा है। नेत्र बैंक में तीन महीने बाद कामकाज जून 2020 में शुरू भी हुआ तो नेत्रदान करने वालों की संख्या बहुत कम रही। इस वजह से देश में कोर्निया के कारण दृष्टि गंवा देने वाले मरीजों की तादाद बहुत ज्यादा हो चुकी है। भारत में दृष्टिहीनता की समस्या कम करने के लिए तत्काल सुरक्षा के उपाय लागू करना बहुत जरूरी हो गया है।

हाल के आंकड़े बताते हैं कि देश में अभी कोर्निया के कारण दृष्टिहीनता के शिकार लगभग 11 लाख मरीज कोर्निया प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे हैं। पिछले साल ऐसे 26000 मरीजों की सर्जरी का कोर्निया प्रत्यारोपण किया गया था। पिछले साल के मार्च से लेकर जून 2019 के दौरान 6991 कोर्निया एकत्रित किए गए थे और इनमें से 2374 मामलों की सफल सर्जरी हुई। लेकिन इस साल इसी अवधि में सिर्फ 1125 कोर्निया दान किए गए जबकि सिर्फ 515 मरीजों को ही इसका लाभ मिल पाया।

ये आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल के मुकाबले इस साल कोर्निया दान में 84 फीसदी की गिरावट आई है।

यदि किसी व्यक्ति को कोई चीज देखने में धुंधला नजर आता है तो इसका मतलब है कि उसकी आंखों के ऊपर की परत यानी टिश्यू उसके कोर्निया को घेर लेती है। यह किसी बीमारी, चोट, संक्रमण या खराब खानपान के कारण होता है, जो आगे चलकर दृष्टिहीनता की स्थिति तक पहुंच जाती है। इसका इलाज संभव है यदि किसी स्वस्थ व्यक्ति का कोर्निया उसे प्रत्यारोपित किया जाए। समय से ऐसे मरीजों का इलाज होता रहे, तो देश से दृष्टिहीनता के मामले बहुत कम हो जाएंगे। यही वजह है कि कोर्निया दान करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जाता है।

एआईओएस की महासचिव डॉ. नम्रता शर्मा बताती हैं कि देश में नेत्रदान के मामले बहुत कम हैं इसलिए दृष्टिहीनता की समस्या भी बढ़ती जा रही है। कोर्निया दान को महादान की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि इस दुनिया को छोडक़र जाने वाला भी कोर्निया दान कर दुनिया देखता रहता है।

नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में तरक्की के कारण लेजर एब्लेशन और कोर्निया प्रत्यारोपण की तकनीकी में क्रांति आ गई है और मरीज को बहुत जल्द ही बेहतर दृष्टि मिल जाती है। अन्य देशों में 80 फीसदी से अधिक लोग अपने अंग, नेत्र आदि दान कर देते हैं लेकिन भारत में सिर्फ एक फीसदी आबादी अपनी मृत्यु के बाद उपयोगी अंगों का दान करने के लिए आगे आती है।

एक मिथक यह है कि दृष्टिहीन व्यक्ति नेत्रदान नहीं कर सकता है लेकिन डॉक्टरों का शोध बताता है कि यदि ऐसे व्यक्ति कोर्निया के कारण दृष्टिहीनता के शिकार नहीं हैं तो वे भी नेत्रदान कर सकते हैं।

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