दुनिया के आधे से ज़्यादा देश नेट ज़ीरो होने के लिए तैयार

दुनिया के आधे से ज़्यादा देश नेट ज़ीरो होने के लिए तैयार

लखनऊ (निशांत) —– दुनिया के 61 प्रतिशत देश, दुनिया के सबसे ज़्यादा प्रदूषण करने वाले देशों में 9 प्रतिशत राज्य और 50 लाख की आबादी से अधिक वाले 13 प्रतिशत शहर अब नेट जीरो कार्बन एमिशन के लिए प्रतिबद्ध हैं। यही नहीं, लगभग 14 ट्रिलियन डॉलर का कारोबार करने वाली दुनिया की 2,000 सबसे बड़ी सार्वजनिक कंपनियों में से हर पांचवी कम्पनी (21% कंपनियां) ने भी नेट ज़ीरो कार्बन एमिशन का लक्ष्य हासिल करने का इरादा कर लिया है।

इन बातों का ख़ुलासा हुआ ऊर्जा और जलवायु इंटेलिजेंस यूनिट (ECIU) और ऑक्सफोर्ड नेट ज़ीरो की एक ताज़ा रिपोर्ट से।

इतना ही नहीं, इनमें से ज़्यादातर कंपनियों के पास न सिर्फ़ एक अंतरिम लक्ष्य है बल्कि एक प्रकाशित योजना और एक रिपोर्टिंग तंत्र भी है। बड़ी जल्दी ही इन सबने एक ‘जबरदस्त मानदंड’ का पूरा सेट भी तैयार कर लिया है। लेकिन इस रिपोर्ट के लेखक ये चेतावनी भी देते है कि यदि एक अच्छी गवर्नेंस, पारदर्शिता और एक भरोसेमंद ऑफ़सेटिंग को प्राथमिकता न दी गयी तो इन देशों और संस्थानों पर लापरवाही के आरोप भी लग सकते हैं।

टेकिंग स्टॉक: अ ग्लोबल असेसमेंट ऑफ़ नेट जीरो टारगेट्स शीर्षक की यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट तमाम देशों, सब-नेशनल सरकारों और प्रमुख कंपनियों में नेट जीरो की ज़िम्मेदारी का पहला व्यवस्थित विश्लेषण करती है।

इस रिपोर्ट के ज़रिये इस बात को भी ठीक से बताया गया है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित किए गए ‘रेस टू जीरो’ अभियान में इन नेट जीरो लक्ष्यों का एक न्यूनतम निर्धारित मानदंड क्या है, या शुरुआती लाइन क्या है जो इसे लक्ष्य तक पहुंचाती है, इस सबका भी उल्लेख है।

फ़िलहाल 20 फ़ीसद ही मौजूदा नेट जीरो लक्ष्यों का को हासिल कर पाए हैं और ऐसे में COP 26 के पहले करने को बहुत कुछ बच जाता है।

ECIU (ऊर्जा और जलवायु इंटेलिजेंस यूनिट) में वरिष्ठ सहयोगी और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक रिचर्ड ब्लैक कहते हैं, “हालांकि अब तक नेट जीरो कार्बन एमिशन की अवधारणा अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही है, और इनकी नीतियों में बदलाव भी हो रहा है। लेकिन स्पष्ट रूप से दुनिया के ग्लोबल जलवायु लक्ष्यों को पटरी पर रखने के लिए हमें अधिक से अधिक देशों, राज्यों, क्षेत्रों और कंपनियों को साइन अप करना होगा और मौजूदा वायदों और नीतियों में सुधार करना होगा।

वो आगे कहते हैं,“एक लक्ष्य निर्धारित करने और फिर उसको प्राप्त करने के लिए एक योजना और रिपोर्टिंग मेकनिज़्म्स बनाने की ज़रुरत है, लेकिन कंपनियों और देशों को समान रूप से COP के साथ साथ गति बनाये रखने के लिए लगातार कार्य करने की भी आवश्यकता होगी। जापान और अमेरिका जैसे देशों को 2030 तक नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने की अपनी महत्वाकांक्षाओं बनाये रखने के वायदे पर कायम रहने की ज़रुरत होगी। ”

रिपोर्ट में इस स्पष्टता की कमी की भी पहचान की गई है कि किस तरह से देश और कंपनियां लक्ष्य को पूरा करने के लिए ऑफसेटिंग का इस्तेमाल या दुरूपयोग कर रहे हैं। साथ ही, इसमें यह चेतावनी भी दी गयी है कि प्रकृति-आधारित ऑफसेट की एक सीमा होती है इसलिए इस पर पूरी तरह से निर्भर नहीं रह सकते।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड के ब्लावात्निक स्कूल के सह-लेखक डा थॉमस हेल बताते हैं, “हालाँकि नेट जीरो कार्बन एम्मिशन लक्ष्यों में तेजी से वृद्धि होना उत्साहजनक है, लेकिन हमें इस कार्य को करने वालों से बहुत अधिक स्पष्टता की ज़रुरत है कि वे कैसे अपने लक्ष्य तक पहुंचने की योजना बनाते हैं।

यह विशेष रूप से ज़रूरी है कि इस कार्य को करने वाले ऑफसेट करने के लिए अपने दृष्टिकोण को साफ़ करें । हालांकि कुछ क्षेत्रों में तथाकथित “अवशिष्ट उत्सर्जन” के लिए कुछ ऑफसेट की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन सबसे ज़्यादा ज़रुरत है कि जल्द से जल्द उत्सर्जन में कमी की जाये । अगर हर कंपनी और देश ऑफसेट पर ही निर्भर करते हैं बजाय इसके कि वास्तविक उत्सर्जन में कटौती कि जाए, तो हम ग्लोबल स्तर पर इसे प्राप्त नहीं कर पाएंगे। ”

नेट जीरो लक्ष्य वाले देशों के कुल 61% ग्लोबल उत्सर्जन में से 68% ग्लोबल सकल घरेलू उत्पाद का (पीपीपी के संबंध में) और ग्लोबल जनसंख्या का 52% हिस्सा हैं। सरकारों को यह भी जाहिर करना चाहिए कि रिपोर्ट लेखक, रिपोर्टिंग तंत्र, प्रकाशित योजनाओं और विश्वसनीय अंतरिम लक्ष्यों के द्वारा अपने वायदों का समर्थन करें। अब 124 देश जो समर्पित हैं या नेट जीरो कार्बन एम्मिशन का विचार करते हैं, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश जो इस तरह के लक्ष्य नहीं रखते वो माइनॉरिटी में हैं और अलग-थलग से दिखते हैं, ऐसा देखा गया है।

ग्लासगो में COP 26 जलवायु शिखर सम्मेलन की अगुवाई में, नेट जीरो कार्बन एम्मिशन लक्ष्य प्राप्त करने वाली संस्थाओं की संख्या पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा और पेरिस समझौते के तहत 2030 तक जलवायु परिवर्तन को ‘सुरक्षित’ सीमा के भीतर रखने में मदद करने की उनकी क्षमता पर ध्यान दिया जाएगा। (जिसे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या एनडीसी के रूप में जाना जाता है)। हालांकि रिपोर्ट में यह भी रिकॉर्ड किया गया है कि यदि देशों

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