- August 20, 2017
दिल्ली में एक रात फैक्ट्री के नाम :–लक्ष्य 350 से अधिक का !!!—शैलेश कुमार
मुझे एक उद्योगपति से काम था , शाम होने पर ,मैंने उनसे कहा की जाने की देरी हो रही है, उन्होंने कहा- कोई बात नहीं, फैक्ट्री में ठहर जाना। मैंने कहा- वहाँ कोई और लोग रहते है, उन्होंने कहा- हाँ और सब रहते हैं ।
मुझे 8 बजे रात में फैक्ट्री में पहुँचाया गया। एक लड़का के साथ दरवान ने मुझे ऊपर भेज दिया। मुझे काफी डर लग रहा था की कही पांव फिसला तो खैर नहीं। छत लोहे की कबाड़ से भरा पड़ा है।
दुर्गन्ध युक्त खुले छत, एक लोहे के चादर शायद उसका भी टांग सलामत था या नहीं, मुझे पता नहीं, उस पर मैंने थैला रखा। दुर्गन्ध वायु में दम घूँट- घूँट कर साँसे लेकर सारी रात तारे गिनता रहा।
पौ फटते ही नीचे आकर रात के मजदूरों को जगाते हुए कहा -भई ! दरबाजा खोलो, मुझे बाहर निकलना है। लेकिन नियम के पक्के दरवान ने दरबाजा नहीं खोला।
मैने कहा -छत पर इतनी दुर्गंध क्यों है ?
मजदूरों ने कहा — तेजाब का है , लोहे का चद्दर साफ होता है .
मैंने उन मजदूरों की हालात और चेहरा देखा तो ट्यूडर राज वंश की इतिहासकार मेटकाफ की चित्रण चित्रित होने लगा।
पुनर्जागरण (रीनंसां) से पूर्व इंग्लॅण्ड के फ़ैक्टरियो में कार्यरत मजदूरों की दयनीयता से रूंह काँप उठा। एक शब्दों में –सैकड़ों के मजदूर और मजदूरिनों को फटे -चिट्टे , तंग और नग्न बदन रहना पड़ता था।
इस संबंध में हम इंगलैंड का उदाहरण देना पसंद नहीं करेंगे क्योंकि हम भारतीय है।
1990 में सरस सलिल पत्रिका में एक घटना प्रकाशित हुआ —
महाराष्ट्र में एक लोहा गलाने वाले कम्पनी के मालिक गिरफ्तार हुआ। वह बच्चे को काम पर रखता था और लोहे की रॉड से पीटता था। संयोग से एक बच्चा किसी तरह भागने में सफल हुआ।
किसी तरह चौराहे पर पहुँचा। वहां पुलिस खडी थी। उसने पुलिस के पांव लिपट लिया। पुलिस ने अपने स्तर से इलाज करवा कर अपनी गाडी से उसे मलाड,उसके घर भेजा.
महाराष्ट सरकार ने तुरंत उस फैक्ट्री को बंद करवा कर मालिक को जेल भेज दिया।
ये एक -दो घटनाएं है जो कभी कभार पुलिस या मीडिया में आ जाती है लेकिन प्रतिदिन ऐसी कई घटनाये होती है जो मीडिया क्या मजदूरों के परिजनों को भी खबर नहीं मिल पाती है।
क्या भारत में उद्योगपतियों को भी इस व्यवस्था के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है , अगर मजदूर यूनियन समाप्त हो गया है तो शोषण के लिए उद्योगपतियों का संघ क्यों कायम है ?
क्या उद्योगपति – सामंतशाह है ,क्या उन्हें यह छूट दी गई है। अगर कानूनी स्तर पर नही दी गई है तो कानून से कौन बचा रहा है।
स्पष्ट है कि कानूनी संरक्षण राजनेताओं से मिल रही है एवज में उसे जो मिल रहा है उस धन को छुपाने के लिये विदेशी बैंक का सहारा लिया जा रहा है जिसे हम काला धन कहते है।
क्या यह सत्य नहीं है की सताए हुए मजदूरों की मजदूरी काट कर उद्योगपतियों का संघ क्षेत्रीय विधायक,सांसद, मंत्री को बोरा भर- भर कर सलामी ठोक रहा है। अगर नहीं तो फिर इस व्यवस्था को समाप्त क्यों नहीं किया जा रहा है ?
इस व्यवस्था को कौन दूर करेगा। दिल्ली के मजदूरों के बल पर सत्ता में आये मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कभी गौर करने की कोशिश की हैं!
प्रधानमंत्री मोदी के सत्तारोहण के शीघ्र बाद मैंने उद्योगपतियों के संघ भंग करने तथा आईएएस,आईपीएस,प्रशासनिक पदाधिकारी को भेंट लेने पर रोक लगाने के लिए MYGOV पर कठोर टिप्पणी की थी।
मजदूरों से संबंधित नियमों और मजदूरों की शोषण पर वर्तमान की भारत सरकार और मुख्यमंत्री,दिल्ली, दोनों अब तक कोई कदम नहीं उठा पाए हैं। अर्थात जिसकी थाली में खायें, उसी में छेद करने वाले राजनीतिक दल सिर्फ दलगत और भ्रमित रास्ता अपनाने में व्यस्त है।
व्यवस्था बदलने के लिए अमेरिका और जापान की वाई -फाई नारे से काम नहीं चलेगा। यहां तो देश के खेतिहर और फैक्ट्री के मजदूरों की भौतिक स्थिति में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। उसके जीवन स्तर को सुधार लाने के लिए –मन की बात , दिल की बात जैसे हाई -फाई बेकार है यह सब मजदूरों और आम लोगों के लिए फाई -फाई है।
लक्ष्य 350 से अधिक का !!!
सही है।
लेकिन सरकार यह बताये जिन लोगो पर यह लक्ष्य निर्धारित किया गया है उनलोगो के जीवन स्तर सुधारने के लिए भौतिक सत्यापन का आंकड़ा क्या है!
क्या यह लक्ष्य सिर्फ उद्योगपतियों पर ही निर्धारित किया गया है। अगर ऐसा ही है तो इस ख्वाब में सरकार न रहे।
उद्योगपति वह बिल्ली है जो एक बार -मछली के कटोरे में मुँह मारती है अगली बार दूध के कटोरे में।
चाँद पर बैठ कर नीति बनाने वाले राजनीतिक दलों का परिणाम पानी के बुलबुले की तरह होता है।
फैक्ट्री के मजदूरों के कल्याण के लिए फैक्ट्री में रात गुजारे , खेतिहर मजदूरों के कल्याण के लिए खेत में काम करें।
मजदूर से सम्बंधित सभी सरकारी विभाग को बंद ही कर दें क्योंकि धरातल पर इस विभाग की भूमिका नगण्य है।
मजदूर विभाग उद्योगपति के विरुद्ध में मजदूरों की सुनवाई नही कर रही है, यहाँ से मजदूरों को खाली हाथ वापस भेजा जाता है।
तत्पश्चात नीतियों को अमली जामा पहनाये ?
मसीहा मृदंग पीटने से नहीं बनता है मसीहा बनने के लिए खूंखार जानवरों और पहाड़ो के बीच साधना करना पड़ता है।