- October 27, 2015
तीसरे भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन: अफ्रीकी पत्रकारों के साथ प्रधानमंत्री
तीसरे भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन के लिए संपादकों के फोरम में अफ्रीकी पत्रकारों के साथ प्रधानमंत्री के लिखित साक्षात्कार का पाठ
प्रश्न- सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से भारत के लिए अफ्रीका का क्या सामरिक महत्व है? क्या अफ्रीका को करीब लाने की प्रक्रिया चीन के साथ संसाधनों के संघर्ष के कारण तो नहीं है?
उत्तर- इस सम्मेलन में 40 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों सहित सभी अफ्रीकी देशों की भागीदारी भारत और अफ्रीका के दरमियान मैत्री और आपसी विश्वास के गहरे लगाव का प्रमाण है। यह संबंध सामरिक कारणों से परे है। इस रिश्ते में मजबूत भावनात्मक संबंध जुड़े हैं।
हमारे पारस्परिक इतिहास, हमारे सदियों पुराने नातेदारी संबंध, वाणिज्य और संस्कृति, उपनिवेशवाद के खिलाफ हमारे साझा संघर्ष, सभी लोगों के लिए समानता, सम्मान और न्याय के लिए हमारी इच्छा और हमारी प्रगति तथा विश्व में एक आवाज के लिए हमारी साझा आकांक्षाओं ने इन संबंधों को और मजबूती प्रदान की है। हमें आपसी सद्भावना और विश्वास के बड़े संचय की सौगात मिली है।
विश्व की आबादी में भारत और अफ्रीका का एक तिहाई हिस्सा है। इस जनसंख्या में युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। वास्तव में भारत और अफ्रीका इस शताब्दी में वैश्विक युवा आबादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। उनका भविष्य काफी हद तक विश्व की दिशा का निर्धारण करेगा।
भारत और अफ्रीका अब वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चमकते स्थल हैं। भारत आज सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था वाला देश है। अफ्रीका में भी तेजी से विकास हो रहा है। भारत और अफ्रीका दोनों में अपने लोगों की समृद्धि और शांति के लिए अपने दम पर काफी काम करेंगे।
हमारी भागीदारी एक दूसरे के लिए बड़ी शक्ति का स्रोत बन सकती है जिससे एक दूसरे के आर्थिक विकास को मजबूती और गति प्रदान करने के साथ साथ तथा अधिक न्यायोचित, समावेशी, समान और टिकाऊ विश्व के निर्माण में मदद मिलेगी। हमारे पास पूरक संसाधन और बाजार तथा हमारी मानव पूंजी उपलब्ध है। हमने वैश्विक विजन को साझा किया है।
अफ्रीका के साथ हमारी भागीदारी की पहुंच सशक्तिकरण, क्षमता निर्माण, मानव संसाधन विकास, भारतीय बाजारों तक पहुंच और अफ्रीका में भारतीय निवेश के लिए मदद के उद्देश्य से प्रेरित है ताकि अफ्रीका के लोग अपनी पसंद के अनुसार चयन करने के लिए तथा अपने महाद्वीप का विकास करने की जिम्मदारी का निर्वहन करने की क्षमता जुटा सकें। अफ्रीका के साथ हमारे संबंध विशिष्ट हैं और इसमें किसी संदर्भ की जरूरत नहीं है।
प्रश्न- भारत और अफ्रीका के दरमियान संबंधों ने कैसे और किस सीमा तक अफ्रीका महाद्वीप में विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मदद की है? दोनों देशों के लिए यह स्थिति कैसे लाभदायक रही है?
उत्तर- हाल के वर्षों में अफ्रीका का विकास प्रभावशाली रहा है। इसमें सबसे अधिक योगदान अफ्रीकी दृष्टिकोण, नेतृत्व, शांति प्रक्रिया को मजबूत बनाने और महाद्वीप में आर्थिक विकास में सहायता प्रदान करने के प्रयासों का है। सतत विकास और विशेष रूप से युवाओं और महिलाओं की सशक्ता के बारे में अनेक प्रेरणादायक प्रतिरूपों और अफ्रीकी सफलता की कहानियों के अनेक उदाहरण मौजूद हैं।
अफ्रीका का विकास भागीदार होने से भारत गौरान्वित अनुभव करता है। अफ्रीकी देशों ने जब से स्वतंत्रता प्राप्त करना शुरू किया है तभी से हम अफ्रीकी देशों को मानव संसाधन विकास में समर्थन देते आ रहे हैं। हमारे सहयोग कई तरह से चल रहे हैं और यह इसका बड़े पैमाने पर विस्तार हो रहा है। 34 अफ्रीकी देशों को अब 1.2 अरब लोगों के भारतीय बाजार में शुल्क मुक्त पहुंच उपलब्ध हो रही है।
पिछले 2 आईएएफएस के बाद हमने 7.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रियायती ऋण देने की प्रतिबद्धता पूरी की है, जो अफ्रीका में बुनियादी ढांचे के विकास, लाइट विनिर्माण, जन सेवाओं और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में योगदान दे रहा है। हमने 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुदान सहायता उपलब्ध कराई है जो अफ्रीका में मानव संसाधन विकास और 100 से अधिक क्षमता निर्माण संस्थानों की स्थापना में मदद कर रहा है। अकेले पिछले तीन वर्षों में ही भारत ने 25,000 से अधिक अफ्रीकियों को प्रशिक्षित किया है।
पेन अफ्रीका ई-नेटवर्क जिससे अब 48 अफ्रीकी देश जुड़े हुए हैं क्षेत्रीय जुड़ाव और मानव विकास का नया मार्ग बन रहा है। भारत अफ्रीका में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए एक प्रमुख और तेजी से बढ़ते हुए स्रोत के रूप में उभर रहा है। अफ्रीका में भारतीय पर्यटकों की संख्या भी बढ़ रही है।
भारत के लिए अफ्रीका का विकास एक बड़े अवसर प्रदान कर रहा है क्योंकि अफ्रीका के संसाधन जिनमें तेल, विद्युत शामिल हैं, भारत की आर्थिक प्रगति और अफ्रीका में नौकरियां और धन सृजन में मदद कर रहे हैं। इस महाद्वीप की प्रगति से वैश्विक अर्थव्यवस्था में गति और भारी स्थिरता प्राप्त होगी जिससे भारत को भी लाभ पहुंचेगा।
प्रश्न- कुछ विश्लेषक कहते हैं कि अफ्रीका में शांति, स्थिरता और विकास पर उपनिवेशवाद और नव- उपनिवेशवाद के प्रभाव एक अवरोध के रूप में कार्य कर रहे हैं? भारत को भी ऐसी ही एतिहासिक विरासत से गुजरना पड़ा है लेकिन वह संघर्ष और विखंडन के चक्र से मुक्त होने में सफल रहा तथा उसने सुशासन, विकास और प्रगति पर ध्यान केंद्रीत किया। भारत इस संबंध में अफ्रीका को क्या सबक देना चाहता है?
उत्तर- भारत की स्वतंत्रता का अफ्रीका में उपनिवेशवाद के खिलाफ और स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन में बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा था। हम अफ्रीकी देशों की स्वतंत्रता और रंगभेद समाप्त करने के मामलें में उनके साथ मजबूती के साथ खड़े रहने में गौरान्वित महसूस करते हैं।
अफ्रीका को हम से सबक लेने की आवश्यकता नहीं है। हम सभी पर हमारी औपनेवेशिक विरासत ने गहरा और लंबे समय तक प्रभाव डाला है। लेकिन अब अफ्रीका प्रभावशाली प्रगति कर रहा है। महाद्वीप में अब अधिक स्थिरता और शांति है।
अफ्रीकी देश शांति, सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाने के लिए एक साथ आ रहे हैं। अफ्रीकी भारी संख्या में अपना मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। हम आर्थिक सुधार और क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग और एकीकीकरण पर प्रगतिशील प्रयास को देख पा रहे हैं। आर्थिक प्रगति बढ़ी है। इस समय 95 प्रतिशत अफ्रीका में मोबाइल फोन का प्रयोग किया जा रहा है। प्राकृतिक संरक्षण, कौशल विकास, महिलाओं के सशक्तीकरण, नवाचार और शिक्षा के क्षेत्र में प्रशंसनीय पहल की गई है।
सचमुच में देखा जाए तो, अफ्रीका कई तरह की प्रचलित चुनौतियों का सामना कर रहा है। सुरक्षा की नई समस्या भी पैदा हुई है, इनमें आतंकवाद और चरमपंथ भी शामिल हैं जो दुनिया के अन्य क्षेत्रों को दुष्प्रभावित कर रहे हैं।
अफ्रीका का उपलब्धियों, प्रचुर प्राकृतिक संसाधन का समृद्ध इतिहास है। साथ ही यहां प्रतिभावान नौजवानों की भी भारी संख्या है। मुझे अफ्रीकी नेतृत्व और अफ्रीकी लोगों में पूरा विश्वास है कि वे ‘‘एजेंडा 2063 : जैसा हम अफ्रीका चाहते हैं ’’ को साकार करेंगे।
भारत हमेशा अफ्रीकी देशों के साथ एक मित्र और भगीदार के रूप में या जिस तरह भी वे चाहेंगे भारत अपनी विशेषज्ञता, अनुभव और संसाधनों को उनके साथ साझा करने के लिए हमेशा मौजूद रहेगा। जैसा कि हमारी और अफ्रीका की कई चुनौतियां एक समान हैं और हमारी इन चुनौतियों का समधान भी अफ्रीकी संदर्भ में प्रासांगिक हो सकता है।
प्रश्न : भारत और अफ्रीका दोनों बृहत्तर द्विपक्षीय व्यापार और निवेश से लाभ के लिए क्या कर सकते हैं ? इस दिशा में 2008 में आयोजित पहले भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन (आईएएफएस-1) से अब तक की क्या उपलब्धियां रही हैं ?
जवाब: मैं भारत और और अफ्रीका के बीच व्यापार और निवेश संधि की अपार संभावना देखता हूं। इस सदी में भारत सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश होगा और अफ्रीका सबसे अधिक जनसंख्या वाला महाद्वीप। हम दोनों के के पास नौजवानों की संख्या अधिक होगी। अफ्रीका भी विशाल भारी संसाधनों से भरा है। भारत और अफ्रीका दोनों आधुनिकीकरण और शहरीकरण की दिशा में तेजी से विकास कर सकते हैं।
हमारी आर्थिक भागीदारी गति पकड़ रही है। अफ्रीका के साथ भारत का वित्त वर्ष 2007-08 में जो व्यापार 30 अरब अमेरिकी डॉलर का था, वह वित्त वर्ष 2014-15 में दुगने से भी अधिक 72 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। वर्ष 2008 में पहले भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन के दौरान लिए गए न्यूनतम विकसित देशों को भारतीय बाजारों में शुल्क मुक्त पहुंच प्रदान करने के निर्णय से भारत और अफ्रीका आर्थिक वृद्धि के साथ दोनों के बीच व्यापार को लाभ हो रहा है। इस स्कीम से सीधे 34 देश लाभान्वित हो रहे हैं।
भारत अफ्रीका में विकासशील देशों के बीच सबसे बड़ा निवेशक बनकर उभरा हैं यहां तक कि भारत ने इस मामले में चीन को भी पीछे छोड़ दिया है।
हमारे लिए अफ्रीका कितना महत्वपूर्ण है इसका इसी से पता लगता है कि पहले दो आईएएफएस से ढांचागत निर्माण में भारत ने कुल मिलाकर 7.4 अरब अमेरिकी डॉलर लगाए हैं और द्विपक्ष्ीय व्यापार को बढ़ावा दे रहा है।
इसी तरह अफ्रीका में उपलब्ध विशाल संसाधन और कृषि योग्य भूमि यहां की समृद्धि की शक्ति हो सकती है। साथ ही यह भारत में तेजी से बढ़ रही मांग की आपूर्ति का बड़ा स्रोत हो सकता है।
भारत ने मानव संसाधन के क्षेत्र में भागीदारी विकसित करने और अफ्रीका में संस्थान स्थापित करने पर ध्यान दिया है। भारत और अन्य देशों में निर्यात का विस्तार के लिए इस कारण अफ्रीका में कृषि खाद्य प्रसंस्करण वस्त्र लघु उद्योगों के क्षेत्र में कौशल और क्षमता का निर्माण हुआ है।
मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि अफ्रीकी बाजारों के एकीकीकरण करने के प्रयास प्रशंसनीय है और इससे द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।
जैसा कि 21 वी सदी में भारत और अफ्रीका दोनों में अवसर की नई सरहदें उभरी हैं , मैं तीसरे अफ्रीका-भारत मंच शिखर सम्मेलन के दौरान अफ्रीकी नेताओं के साथ अधिक आर्थिक भागीदारी के लिए आगे देख रहा हूं। हम और आगे आर्थिक विस्तार और वैश्विक आर्थिक माहौल को सांगठनिक ढांचे को आकार देने के उपायों की खोज कर सकते हैं।
प्रश्न: ब्रिक्स देशों द्वारा जुलाई में 2015 में स्थापित नए विकास बैंक से किस तरह अफ्रीकी देशों को लाभ होगा ?
उत्तर: नया विकास बैंक एक महत्वपूर्ण पहल है। वैश्विक वित्तीय व्यवस्था पर यह गहन प्रभाव डाल सकता है। पहली बात, पहली बार हाल के वर्षों में एशियाई ढांचागत निवेश बैंक के साथ-साथ यह बहु-स्तरीय वित्तीय संस्था के रूप में बड़ी पहल है। बैंक की स्थापना में ब्रिक्स के पांच देश एक साथ बराबर की भागीदार हैं। जिससे वित्तीय संरचना में ऐसी संस्थाओं की एक दम नई मिसाल परिलक्षित करती है।
ऋण देने की कोशिश दुनिया के विकाशसील देशों को ध्यान में रखकर किया गया है। इसने विकासशील देशों के लिए वित्तीय ढांचगत निवेश को नया स्थान उपलब्ध कराया है। मैं समझता हूं कि अफ्रीका बैंक के लिए अफ्रीका बड़ा फोकस वाला क्षेत्र होगा और हमें आशा है कि भविष्य में बैंक में अफ्रीकी खिड़की या इसकी क्षेत्रीय उपस्थिति होगी।
प्रश्न: कृषि और इससे संबंधित गतिविधियां अफ्रीका के लोगों की मौलिक कार्य हैं ? भारत के लोग भी कृषि पर निर्भर हैं। भारत अफ्रीकी देशों को कैसे स्थायी कृषि पद्धतियों और विकास को बरकरार रखने में व इनके चुनाव में मदद कर सकता है ?
उत्तर: अफ्रीका में विश्व की 60 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि है लेकिन दुनिया के कुल खाद्य उत्पादन का यहां केवल 10 प्रतिशत ही उत्पादन होता है। कृषि के क्षेत्र में विकास अफ्रीका को न सिर्फ आर्थिक विकास, रोजगार और खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में आगे ले जाएगा बल्कि इसे दुनिया के खाद्य कटोरे में बदल देगा। अफ्रीकी लोगों की उपलब्धियां हमें अफ्रीका में भविष्य में कृषि के प्रति विश्वास दिलाती हैं।
पिछले कुछ दशकों में भारत ने दुग्ध उत्पादन और कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। हम विश्व में इन सेक्टरों में अग्रणी उत्पादक हैं। भारत की प्रगति निम्न पूंजी घनत्व की खेती और विभिन्न जैव विविधता की शर्तों के संदर्भ में हुई है। यह अफ्रीका के मामले में बहुत ही प्रासांगिक है। वास्तव में वर्ष 1960 के दशक से भारतीय कृषि विशेषज्ञ विभिन्न अफ्रीकी देशों में तैनात किए जाते रहे हैं।
भारत की कृषि विषयों से संबंधित छात्रवृतियां अफ्रीका में काफी लोकप्रिय हैं। अफ्रीका के साथ भागीदारी में कृषि एक वरीयता का क्षेत्र है। इसके कई रूप हैं: मानव संसाधन विकास,अफ्रीका में कृषि से संबंधित संस्थाओं की स्थापना, सिंचाई परियोजनाएं, तकनीक हस्तांतरण और आधुनिक कृषि पद्धतियां।
जैसा कि हम भविष्य की ओर देख रहे हैं, हम अफ्रीका के साथ इन क्षेत्रों में काम जारी रखेंगे लेकिन उभरती चुनौतियां: जलवायु परिवर्तन और जलवायु अनुरूप कृषि पर भी ध्यान देंगे। हम फसल कटाई के बाद प्रसंस्करण और आपूर्ति श्रृंखला पर भी ध्यान देंगे। इस संदर्भ में हम अफ्रीका की वरीयता का भी ख्याल रखेंगे।
प्रश्न: भारत और अफ्रीका के बीच आर्थिक भागीदारी व्यापार और निवेश से लेकर तकनीक हस्तांतरण, ज्ञान साझेदारी और क्षमता निर्माण तक फैला है। इसके अलावा अगले कुछ वर्षों में और भारत से और क्या उम्मीद की जा सकती है ?
उत्तर: भारत- अफ्रीका की आर्थिक भागीदारी संक्रमणकालीन नहीं है। इसका आधार हमारा साझा लक्ष्य और लोगों के जीवन स्तर सुधारने की दक्षिण-दक्षिण सहयोग की शक्ति है।
भारत हमेशा अपने अफ्रीकी दोस्तों की जरूरतों और वरीयता के अनुसार काम करेगा।हम नई तकनीके द्वारा प्रदत्त अवसरों और संभावनाओं का दोहन और जलवायु परिवर्तन जैसे चुनौतियों का सामना साथ मिलकर करेंगे। हमारा भविष्य का रोडमैप में हमारा साझा लक्ष्य और दृष्टिकोण , हमारी संबंधित शक्ति तथा क्षमता परिलक्षित होगी।
हमारा फोकस मानव संसाधन विकास, संस्थान निर्माण, बुनियादी ढांचा, स्वच्छ इंधन, कृषि , शिक्षा और कौशल विकास, स्वास्थ्य, ढांचागत समर्थन और तकनीकी साझेदारी के क्षेत्र में जारी रहेगा। हम जलवायु परिवर्तन तथा स्थायी सामुद्रिक आर्थिक व्यवस्था पर भी साथ मिलकर काम करेंगे।
हम निश्चित रूप से आने वाले दिनों में अपनी भागीदारी बहुत अधिक उच्च स्तर तक ले जाएंगे। अफ्रीका के साथ हम खासतौर पर क्षमता निर्माण, ढांचागत समर्थन और तकनीकी साझेदारी और अफ्रीकी भागीदारों के साथ विचार-विमर्श के क्षेत्र में भागीदारी को विकास भागीदारी प्रोग्राम की व्यापक समीक्षा के आधार पर और प्रभावी बनाएंगे।
प्रश्न: क्या भारत की वैश्विक राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था में सुधार की प्रतिबद्धता संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य बनने की इच्छा से संबंधित है ?
उत्तर: राजनैतिक, आर्थिक और तकीनीकी बदलाव की दिशा में जितना बदलाव विश्व में हाल के वर्षों में आया है शायद ही इतना बदलाव पहले देखा गया हो। संयुक्त राष्ट्र के गठन के बाद से इसके सदस्यों की संख्या में चार गुना हो गई है। इस समय जागरूकता का अधिकार और प्रगति के प्रति आंकाक्षा व्यापक हुई है। वैश्विक शक्तियों का अधिक वितरण हुआ है। हम डिजिटल दुनिया में रहते हैं जो वैश्विक अर्थ व्यवस्था के चरित्र को बदल रही है। कई मामलों में हमारा जीवन वैश्विक हो रहा है लेकिन हमारी पहचान के बारे में कुछ दोष भी बढ़ रहा है। आतंकवाद, साइबर और अंतरिक्ष हमारे लिए खतरे अवसर और चुनौतियों के एकदम नई सीमाएं हैं। जलवायु परिवर्तन एक आवश्यक वैश्विक चुनौती है। विकासशील देश शहरीकरण की नई लहर की जटिलताओं से दो –चार हो रहे हैं। इसके बाद भी वैश्विक व्यवस्था, इसके संस्थान और हमारी मानसिकता में अंतिम विश्व युद्ध के दौरान मौजूद स्थितियां ही प्रतिबिंबित हो रही हैं। इन संस्थाओं ने हमारी अच्छी सेवा की है लेकिन नए युग में इनके प्रभावी और प्रासांगिक बने रहने के लिए इनमें सुधार बहुत जरूरी है। अगर वैश्विक संस्थाएं और व्यवस्था बदलाव को नहीं अपनाएंगी तो उनकी प्रासांगिकता खो जाने का डर है। हमारी दुनिया और अधिक विखंडित होगी और नए युग की चुनौतियों और बदलाव का सामना करने की हमारी सामूहिक क्षमता भी कमजोर होगी।
इसी कारण से भारत वैश्विक राजनैतिक, आर्थिक और सुरक्षा संस्थानों में सुधार की वकालत करता है। उन्हें हमारे विश्व को और सम्मिलित प्रतिनिधित्व करने वाला और लोकतांत्रिक होना चाहिए। अगर अफ्रीका या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र जहां विश्व का छठवां हिस्सा निवास करता है को आवाज नहीं देगा तो कोई भी संस्था इस तरह के चरित्र को नहीं प्राप्त कर पाएगा। यही कारण है कि हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और वैश्विक वित्तीय संस्थानों में सुधार के लिए कहते हैं। भारत और अफ्रीका दोनों में दुनिया की एक तिहाई लोग रहते हैं, उन्हें इस सुधार के लिए जरूर एक स्वर में बोला चाहिए।
प्रश्न: क्या यह सम्मेलन ( आईएएफएस-3) भारत और अफ्रीका में सहयोग के रूप में वास्तविक परिणाम दे सकेगा ?
उत्तर: हमारा उद्देश्य भागीदारी की भावना को मजबूत करना, अंतरराष्ट्रीय मजबूती को और मजबूत करना और अपने सहयोग को और बढ़ाना है। जब मैं स्वयं के लिए अफ्रीका के विजन की ओर देखता हूं तो एजेंडा-2063 के दस्तावेजों से इतना प्रभावित होता हूं कि मुझे विश्वास हो जाता है कि हमारे विकास लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय आकांक्षाओं के बहुत नजदीक हैं। आने वाले वर्षों में ये लक्ष्य ही हमारी भागीदारी की नींव बनेंगे।
दिल्ली में आयोजित तीसरे भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन में हमारी विकास भागीदारी के लिए कहीं ऊंचे और महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित होने की उम्मीद है। हमारा पिछले दशक के अनुभवों के आधार पर हमारा उद्देश्य इसे और प्रभावी बनना है। विगत की भांति हमारा प्रथमिक उद्देश्य अपने अफ्रीकी भागीदारों को उनके विकास की गति बढ़ाने में उनके प्रयासों को सहायता प्रदान करना है। हमें खाद्य, स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा सहित अपने समय की प्रमुख चुनौतियों का सामना करना होगा। हमें ऐसी स्थिति का सृजन करना है जिससे हमारे देशों के मध्य व्यापार और निवेश का प्रवाह बढ़े। हमें जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से निपटने के लिए मिलकर काम करना होगा। हमें सतत नील अर्थ व्यवस्था जैसे नए क्षेत्रों को भी पता लगाना होगा। हमारी पहलों का उद्देश्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शक्ति, अंतरिक्ष विज्ञान का उपयोग और नेटवर्क विश्व के जीवन में बदलाव लाना होगा। यह एकतरफा रास्ता नहीं है हमें जीवन के सभी क्षेत्रों में असंख्य अफ्रीकी सफलता की कहानियों से काफी कुछ सीखने की उम्मीद है।
हम वैश्विक मंच पर अपनी भागीदारी को और मजबूत बनाएंगे और समुद्रीय सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला करने सहित अपने सुरक्षा सहयोग को औरमजबूत बनाएंगे। इस तीसरे सम्मेलन में पहली बार सभी अफ्रीकी राष्ट्रों की भागीदारी दिखाई देगी जिससे भारत और अफ्रीका की भागीदारी में नए युग की शुरुआत होगी।