• March 21, 2016

तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय फिजियोथेरेपी कांफ्रेंस सम्पन्न

तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय फिजियोथेरेपी कांफ्रेंस सम्पन्न

 देश-विदेश के 50 युवा फिजियोथैरेपिस्ट  सम्मानित 
रोगों के आमूल उपचार में परंपरागत चिकित्सा पद्धतियां  कारगर – प्रो. वासुदेव देवनानी

उदयपुर ———– (सू०ज०्कार्य०, उदयपुर)————————-शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने आज के बाजारवादी दौर में आरामतलबी, खान-पान और जीवनशैली में आए बदलाव को रोगों को मूल कारण बताया है और कहा कि सेहत की रक्षा के लिए मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य भी ठीक-ठाक रखना जरूरी  है। इसके लिए भारतीय परंपराओं का अवलम्बन किया जाना आज की प्राथमिक आवश्यकता है।

शिक्षा राज्यमंत्री प्रो. देवनानी ने रविवार को उदयपुर में राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय अन्तर्गत फीजियोथैरेपी चिकित्सा महाविद्यालय द्वारा आयोजित प्रथम अन्तरराष्ट्रीय फिजियोथेरेपी  कांफ्रेंस के समापन समारोह में मुख्य अतिथि पद से संबोधित करते हुए यह बात कही। तीन दिवसीय कांफ्रेंस में देश-विदेश के 700 फीजियोथेरेपिस्ट ने हिस्सा लिया।  इसमें देश-विदेश के 267 शोध प़त्रों का वाचन किया गया।UDR 200316 (3)

संभागियों को किया सम्मानित

समारोह की अध्यक्षता राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने की जबकि प्रो. उमाशंकर मोहंती, डॉ. अंजनी कुमार, डॉ. आनंद मिश्रा, डॉ. संजीव पाण्डे, डॉ. धर्म पाण्डे, रजिस्ट्रार प्रो. सी.पी. अग्रवाल आदि विशिष्ट अतिथि थे। समारोह की शुरूआत शिक्षा राज्यमंत्री प्रो. देवनानी ने दीप प्रज्वलित कर की।  प्रो. देवनानी एवं अतिथियों ने  वाद विवाद, पोस्टर, रंगोली, समूह डांस व मेहंदी में विजेताओं के साथ ही विभिन्न गतिविधियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन एवं उल्लेखनीय सहभागिता के लिए पुरस्कार, प्रशस्ति पत्र एवं पुरस्कार प्रदान किए। देश-विदेश के 50 युवा फिजियोथैरेपिस्ट को प्रशंसा पत्र व प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया।

कोई साईड़ इफेक्ट नहीं

शिक्षा राज्यमंत्री प्रो. देवनानी ने रोगों को जड़-मूल से समाप्त करने में परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को कारगर बताया है और कहा है कि इनका कोई साईड़ इफेक्ट नहीं होता। आज जरूरत इस बात की है कि परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को सार्वजनिक स्वास्थ्य रक्षा की मुख्य धाराओं से जोड़ते हुए रोगों की आमूल चिकित्सा को बढ़ावा दिया जाए तथा लोगों को सेहत के लिए जरूरी कारकों के बारे में जागृत किया जाए ताकि बीमारियों की संभावना ही नहीं रहे।

उन्होंने कहा कि सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है कि दूरदराज के सभी क्षेत्रों और जरूरतमन्दों तक बेहतर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हों लेकिन चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों की भागीदारी से इसके बेहतर परिणाम लाए जा सकते हैं। आरोग्य के लिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य आपस में जुड़कर काम करना जरूरी है।

तनावों से ही होती हैं बीमारियां

उन्होंने कहा कि व्यक्ति की 75 फीसदी  बीमारियों का मूल कारण तनाव हैं और इसे देखते हुए यह जरूरी है कि रोगी के मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक स्वास्थ्य का गहरा अध्ययन किया जाए। इसके लिए उन्होंने  आईक्यू के साथ ईक्यू अर्थात ईमोशनल और एसक्यू अर्थात स्पिरिच्युअल कारक को भी जानने और उसी के अनुरूप उपचार पर जोर दिया।

शिक्षा राज्यमंत्री ने स्वदेशी औषधियों, परंपरागत चिकित्सा पद्धति और इसके विलक्षण महत्व के बारे में व्यापक लोक जागरण पर जोर दिया और स्वच्छता अभियान में पूरी-पूरी भागीदारी का आह्वान किया।

कारगर है यह पद्धत

अध्यक्षीय उद्बोधन में  कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि वर्तमान की भागदौड़ भरी जिंंदगी में हर कदम पर चिकित्सा की आवश्यकता होती है। इस दिशा में फिजियोथैरेपी अपनाने पर बिना किसी साइड इफेक्ट के रोगी तुरत राहत महसूस कर सकता है।

शोध कर्म को बढ़ावा दें

विशिष्ट अतिथि एवं रजिस्ट्रार प्रो. सीपी अग्रवाल ने फिजियोथैरेपी की ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरत पर बल दिया और शोधार्थियों से कहा कि वे इस क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा शोधकर्म को बढ़ावा दें। इस अवसर पर डॉ. उमाशंकर मोहंती, डॉ. अंजनी कुमार, डॉ. संजीव तोमर, डॉ. आनंद मिश्रा, डॉ शैलेंद्र मेहता, डॉ.  एसबी नागर, डॉ. सुनीता ग्रोवर, डॉ. विनोद नायर आदि ने विचार व्यक्त किए।

संचालन डॉ. अर्जुनसिंह तंवर, आरुषी टंडन व रुचिका राव तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. एसबी नागर ने किया।

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