- May 10, 2017
तीन तलाक और फतवे –कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं
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इलाहाबाद (जी न्यूज)-: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पति द्वारा पत्नी को तीन तलाक दिए जाने के बाद दर्ज दहेज उत्पीड़न के मुकदमे की सुनवाई करते हुए मंगलवार (9 मई) को तीन तलाक और फतवे पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है.
न्यायालय ने कहा है कि कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है, और वह संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एस. पी. केसरवानी की एकल पीठ ने तीन तलाक से पीड़ित वाराणसी की सुमालिया द्वारा पति अकील जमील के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के मामले की सुनवाई करने के बाद यह व्यवस्था दी है. न्यायलय ने दहेज उत्पीड़न के मामले को रद्द करने से भी इंकार कर दिया है.
याची अकील जमील ने याचिका में कहा था कि उसने पत्नी सुमालिया को तलाक दे दिया है और दारुल इफ्ता जामा मस्जिद आगरा से फतवा भी ले लिया है, इस आधार पर उस पर दहेज उत्पीड़न का दर्ज मुकदना रद्द होना चाहिए.
न्यायालय ने कहा है कि कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है, और ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है, जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो.
न्यायालय ने एसीजेएम वाराणसी के समन आदेश को सही करार देते हुए कहा है, “प्रथम दृष्टया आपराधिक मामला बनता है, फतवे को कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है, इसलिए इसे जबरन थोपा नहीं जा सकता है.
यदि इसे कोई लागू करता है तो अवैध है और फतवे का कोई वैधानिक आधार भी नहीं है.”
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि पर्सनल लॉ के नाम पर मुस्लिम महिलाओं सहित सभी नागरिकों को प्राप्त अनुच्छेद 14, 15 और 21 के मूल अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है.
न्यायालय ने कहा है कि जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है, उसे सभ्य नहीं कहा जा सकता है.
न्यायालय ने कहा है कि लिंग के आधार पर भी मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है.
न्यायालय ने कहा है कि मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता है, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो.