ताप्ती जन्मोत्सव पर विशेष :-उपेक्षित पुण्य सलिला माँ ताप्ती :- रामकिशोर दयाराम पंवार रोढ़ावाला

ताप्ती जन्मोत्सव पर विशेष :-उपेक्षित पुण्य सलिला माँ ताप्ती  :- रामकिशोर दयाराम पंवार रोढ़ावाला

यहां तो गूंगे बहरे बसते है, खुदा जाने कहां जलसा हुआ होगा….!

जहां एक ओर दुसरी बार केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार बन चुकी है और प्रधानमंत्री मन की बात करने के लिए सबको याद कर चुके है लेकिन जब भी ताप्ती की बारी आती है पता नहीं क्यों देश का प्रधान सेवक मौनी बाबा बन जाते है।


कमल छाप अपनी ही पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली केन्द्र सरकार जहां एक ओर भागीरथी गंगा के लिए गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक एक गंगा मंत्रालय की लम्बी लकीर खींच कर नमामी देवी गंगा के सर्वागिंण विकास को लेकर अरबो रूपैया अभी तक मैली गंगा के पानी में बहा चुके है, वही दुसरी ओर पूर्व की भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की तर्ज पर वर्तमान कांग्रेस सरकार पुण्य सलिला माँ नर्मदा के नाम पर नर्मदा घाटी विकास मंत्रालय के बैनर तले नमामी देवी नर्मदे का संकल्प लेकर करोड़ो रूपैया नर्मदा के जल शुद्धि करण से लेकर वृक्षारोपण तक पर खर्च करते चले आ रहे है।

दोनो ही सरकारे कम्प्यूटर बाबा जैसे को लाल बत्ती देकर राज्यमंत्री बना चुके है लेकिन आज भी नर्मदा पर विशाल कद काया के आधा दर्जन बांधो का निमार्ण कार्य किया गया। जिसमें सरदार सरोवर से लेकर गांधी सागर, बरगी जलाशय अमरकंटक का नाम प्रमुख है लेकिन नर्मदा की तरह प्रदेश की जीवन रेखा पश्चिम मुखी ताप्ती पर एक बड़ा बांध मध्यप्रदेश की सीमा में नहीं बन सका है जो गांधी सागर जैसा बड़ा विशाल हो !

लोग अकसर कहते है कि घोषणा होती है इसलिए ताकि उसे पूरी न की जा सके , लेकिन जमीनी हकीगत में घोषणाए उस आक्सीजन के सिलेण्डर के समान होती है जिसके सहारे कुछ समय तक जिंदा रखा जा सके। ताप्तीचंल में पिछले कई दिनो से यह मांग बराबर कुछ चंद लोगो के द्वारा उठाई जाती रही है कि पूर्व की तरह ताप्ती नर्मदा विकास प्राधिकरण से ताप्ती को प्रथक कर सिर्फ नर्मदा विकास प्राधिकरण बनाया गया है तबसे लेकर आज तक ताप्ती अपने विकास के प्राधिकरण की राह देखते – देखते थक चुकी है।

चांद तारे तोड़ लाना जैसा नहीं है काम
सवाल उठता है कि काम करे तो कौन !

ताप्ती विकास प्राधिकरण कोई चांद से तारे तोड़ लाना जैसा कठीन कार्य नही है लेकिन सच तो यह भी है कि लोगो की निष्क्रियता ने इसे चांद से कोसो दूर कर दिया है। छोटे – छोटे विकास प्राधिकरण बन रहे है लेकिन ताप्ती विकास प्राधिकरण के लिए अभी तक जिले के जनप्रतिनिधियों की मांग में वो ताकत नहीं आ सकी है कि उनकी दहाड़ सुन कर भोपाल – दिल्ली में बैठे भाजपाई नेताओ की पतलून गीली हो जाए! कुछ लोगो को शायद यह शब्द या प्रयोग अश्लिल लग सकता है क्योकि वे राजा हरिशचन्द्र के जमाने में जी रहे हे तथा जहां पर आज भी सत्य जिंदा है।

भारतीय राजनीति में सत्य को सूली पर चढ़ा कर स्वार्थ, छल, बल, दल की नीति ने राजनीति को बाजारू वेश्या बना रखा है जिसका कोई इमान – धरम नही होता है। आज बैतूल जिले से पांच विधायक एक सासंद होने के बाद भी बैतूल जिले को दुध की मलाई तो दूर गिलास की चटाई भी नसीब नही हो रही है। गुजरात एवं महाराष्ट्र सबसे अधिक ताप्ती जल के उपभोक्ता है इन राज्यो को ताप्ती जल ने समद्धि और विकास के उस मुकाम पर पहुंचा दिया है जहां पर बैतूल जैसे पिछड़े जिले को पहुंचने में बीस साल लग जाएगें!

सबसे अधिक प्रवाह एवं बहाव क्षेत्र वह भी मूल जन्म स्थान से जिले में 250 किमी की दूरी जिसमें प्राकृतिक आपदा का सबसे अधिक नुकसान इसी जिले के इसी क्षेत्र को होता है जहां पर ताप्ती में मिलने वाली अधिकांश पहाड़ी नदियां तेज वेग से बहती हुई ताप्ती में समाहित होती है। ऐसी नदियो के जल का संग्रहण बैतूल जिले में न होने से पड़ौसी राज्य में सुख – समद्धि आना स्वभाविक है क्योकि इन क्षत्रो में ताप्ती का वेग कम हो जाता है तथा ताप्ती का आकार भी चौड़ा हो जाता है। जल संग्रहण के लिए गुजरात एवं महाराष्ट्र में ताप्ती पर अनेक बड़े बांध बंधे है जो कि इन क्षेत्रो का जल स्तर बनाए रखने में सक्षम है। बैतूल जिले में ताप्ती का विकास तभी संभव है जब ताप्ती को लेकर सरकार गंभीर हो तथा विकास प्राधिकरण की संभाावनाओ को एक बार फिर से तलाशा जाए।

माँ के घर मौसी की पूजा
उपेक्षित ताप्ती का दर्द जाने कौन !

बैतूल जिले में ताप्ती से विकास की गाथा लिखी जा सकती है लेकिन यह तब संभव हो सकेगा जब लोग ताप्ती और उसके जल के महत्व के साथ – साथ ताप्ती के महात्मय एवं जल को संरक्षित कर सकेगें। आज हो रहा यह है कि मां के घर मौसी की पूजा हो रही है और दूर किसी कमरे के एक कोने में मां सिसक कर सब कुछ देख कर अपनी किस्मत पर रो रही है! ताप्ती के मामले में ऐसा कुछ नही हो सकता क्योकि ताप्ती ने समय – समय पर अपना रौद्र रूप दुनिया को दिखाया है और चंदोरा डेम को फूटे अभी ज्यादा वक्त नही बीता है।

यह बात अलग है कि ताप्ती के तेज वेग को रोक पाने में या यूं कहे कि ताप्ती के जल के ठहराव के लिए हम कोई ऐसी बड़ी महत्वाकांक्षी योजना नर्मदा सागर जैसी ला नही सके है। ताप्ती के विकास के लिए 15 वर्षो की उस सरकार को दोष दे ! उसे जिस पर इस समय नर्मदा मैया की आड़ में जेब भरने का जुनून सवार है या फिर उस कांग्रेस को दे जो कि आजादी के इतने सालो तक सत्ता में रहने के बाद वर्तमान में कोमा में है!

मेरे एक मित्र को हमेशा पुण्य सलिला मां सूर्यपुत्री ताप्ती को लेकर चिंता रहती है लेकिन जिन्हे चिंता करनी चाहिए है वे स्वंय की चिता पर लेटे हुए है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अति महत्वाकांक्षी नदी जोड़ो योजना यदि मध्यप्रदेश में शुरू होती तो संभव था कि ताप्ती आज बारह मासी नदी होती और पूरा जिला जल संकट से दूर होता। बैतूल जिले में गागुंल और चिल्लौर सहित देनवा, माचना लगभग बारह मासी नदियां जो हमेशा बहती रहती है।

अगर इमानदारी पूर्वक प्रयास होते तो धाराखोह नदी को माचना में और माचना को केन के माध्यम से ताप्ती से और ताप्ती को पूर्णा से जोड़ा जा सकता था, लेकिन ऐसा कुछ भी संभव नही हो सका। दुर्रभाग्य कहे कि बैतूल जिले के जनप्रतिनिधियो को यह तक नही मालूम की ताप्ती जन्मोत्सव कब होता है ? और कहां पर होता है ? ऐसी स्थिति में बैतूल जिले का भाग्य भगवान भरोसे ही रहेगा, एक भगवान जिसने अपनी पहचान विकास पुरूष के रूप में बनाई थी उसकी सोच भी ताप्ती के विकास की संभावनाओं तक पहुंच नही सकी।

पारसडोह को पारस पत्थर नहीं है
लोहा को सोना बताने की ठग विद्या !

ऐसा प्रचारित किया जा रहा है कि पारसडोह – पचधार परियोजना से बैतूल जिले के तीन विकासखण्डो को लाभ मिलेगा लेकिन योजना का वर्तमान स्वरूप बताता है कि प्रभात पटट्न से आठनेर तक पहुंचने के बाद यह योजना रास्ते में ही दम तोड़ देगी। पारसडोह – पचधार परियोजना के प्रथम चरण एवं द्धितीय चरण के कार्य को देखने पर ऐसा लगता है कि जो कंपनी ताप्ती को लेकर ओव्हर कांफिडेन्ट के दौर से गुजर रही है उसे इस बरसात में अपना अभी तक का बोया सकेलने का भी ताप्ती मौका नही देगी? डर तो इस बात का भी सता रहा है कि इस तेज वेग की मैदानी नदी की जल क्षमता के आगे पारसडोह या बैतूल तक पीने का पानी लाने की महत्वाकांक्षी योजनाओ के कहीं पांव ही न उखड़ जाए। ताप्ती के विकास के लिए वल्लभ भवन में या सचिवालय में बैठ कर कोई कार्य योजना मूर्त रूप नही ले सकती।

जब तक ताप्ती के किनारे ताप्ती विकास प्राधिकरण का कार्यालय न बन जाए और चार साल तक सिर्फ ताप्ती की जल संरचना पर कार्य न किया जाए तब तक सपने देखना मूर्खता भरा कार्य होगा। ताप्ती विकास प्राधिकरण के गठन के साथ – साथ प्राधिकरण का मैदानी स्तर पर कार्य योजना बनाना और उस पर काम करने से ही ताप्ती को समझा जा सकता है। नर्मदा और ताप्ती भारत की दो मात्र पश्चिमी मुखी नदियां है जो अपने जल संरक्षण एवं जल वेग को लेकर एक दुसरे के ठीक विपरीत है।

ताप्ती ने बदली तकदीर और तस्वीर
लेकिन ताप्ती की सूरत सीरत बदलेगा कौन !

अखण्ड भारत के केन्द्र बिन्दू बैतूल से निकलने वाली ताप्ती नदी पर मध्यप्रदेश को छोड़ कर गुजरात एवं महाराष्ट्र में जल संरक्षण को लेकर बड़े – बड़े बांधो का निमार्ण कार्य पूरा हो चुका है तथा इन बांधो से दोनो राज्यो की तकदीर एवं तस्वीर भी काफी हद तक बदल चुकी है। आज ताप्ती सहित बैतूल जिले की सभी प्रमुख नदियो का भूजल स्तर घटने से जिले मे पेयजल संकट एक समस्या बना हुआ है।

बैतूल जिले में ताप्ती के भीतर मौजूद सैकड़ो डोह एवं गहरे जलस्त्रोतो को यदि समय रहते संरक्षित नही रखा गया तो एक दिन बैतूल जिले की मोक्ष दायनी – पुण्य सलिला सूर्यपुत्री ताप्ती गया की फाल्गुनी नदी की तरह न हो जाए! देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी बैतूल से जाते समय एक सवाल छोड़ कर चले गए थे कि जिस ताप्ती ने मेरे सूरत की सूरत बदल दी उसने बैतूल की सूरत आज तक क्यो नही बदली ?

इस सवाल का जवाब स्वंय प्रधानमंत्री से जिले की निवृतमान सासंद श्रीमति ज्योति धुर्वे को बीते लोकसभा के सत्र में पुछना था तब बात कुछ और होती! इसी तरह का सवाल भाजपा शासनकाल में मध्यप्रदेश की विधानसभा में बैतूल के हेमंत खण्डेलवाल करते तो शायद कोई ठोस जवाब मिलता लेकिन दुर्रभाग्य यह है कि जिले की निवृतमान सासंद को बैतूल जिले की कितनी चिंता है यह उनके द्वारा पूर्व में लोकसभा सत्र के दौरान पुछे गए सवाल से ही पता लग सकता है। दस साल तक जो महिला जिले की सासंद रही उसे यह तक नही पता है कि उसके जिले में चार कस्तुरबा गांधी बालिका छात्रावास मौजूद है लेकिन वह सवाल करती है कि उसके जिले में कस्तुरबा गांधी आवासीय बालिका छात्रावास खोले जाए!

जिला मुख्यालय के भाजपा विधायक पूरे कार्यकाल में अधिकांश समय सफेद को नारंगी और नारंगी को सफेद करने के चक्कर में रहे। निवृतमान विधायक एवं सासंद को हालाकि जिले की जनता ने उनकी नारंगी और सफेद जमीन दिखा कर उन्हे आसमान से जमीन पर ला पटका ! 15 साल तक प्रदेश में राज्य करने वाली भाजपा की सरकार के जनप्रतिनिधियों को भलां ताप्ती के बारे में क्यूं सवाल करके अपने दिमाग का दही करना था इसलिए वे मौनी बाबा बने रहे।

मुलताई के विधायक की बात न की जाए तो अच्छा है क्योकि जागरूकता में मुलताई को डाँ सुनीलम् से अच्छा जागरूक विधायक नही मिला लेकिन उनकी दुकानदारी ज्यादा दिनो तक नही चल सकी और जातिवाद की राजनीति उनका राजनैतिक केरियर को ही उखाड़ कर ले गई। आज जिले के पांचो विधायको ही नही सासंद को भी ताप्ती विकास प्राधिकरण के गठन एवं उसके सुचारू रूप से कार्य करने के बारे में गंभीरता पूर्वक मंथन करना होगा ताकि ताप्ती पूर्ण रूप से जिले की जीवन रेखा बन सकेगी।

नदियों का ननिहाल है बैतूल
नाना – नानी के रहते सिर्फ ना ही मिली

यूं तो मध्यप्रदेश को नदियों का मायका कहा जाता है। मध्यप्रदेश में 207 नदियां है। प्रदेश में दो ही नदियां ऐसी है जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। प्रदेश की सबसे बड़ी इन दो नदियों में नर्मदा का प्रवाह 1 हजार 312 किमी का है और वह मध्यप्रदेश में सबसे अधिक 1077 किमी बहती है , लेकिन बैतूल जिले के मुलताई से निकलने वाली पश्चिम मुखी नदी सूर्यपुत्री ताप्ती की कुल लम्बाई सर्पाकार लगभग ७५० किमी है।

यह नदी देश – दुनिया में एक मात्र ऐसी नदी है जो अपने उदगम जिले में सबसे अधिक 250 किमी बहती है। अपनी कुल लम्बाई का लगभग पौने दो हिस्सा अपने गृह जिले में सर्प की तरह रेगंती हुई बहती है। मूलत: ताप्ती जी का वाहन सर्प होने की वजह से इस नदी ने मैदान से लेकर पहाड़ो तक में सेंधलगाने में तथा कई बार अपने तेज जल प्रवाह तथा बहते जल में बनने वाले भंवरो की मदद से ड्रील नदी के पत्थरो को चीर कर सुरंग डोह और गहरो गडढ़ो को निमार्ण किया है।

ताप्ती ने पहाडिय़ो को जहां एक ओर बेरहमी से चीर है वहीं दुसरी ओर नदी ने जिले की सीमा में सबसे अधिक गहरे जल संग्रहण क्षेत्रो का निमार्ण किया है। ताप्ती नर्मदा की तरह एक स्थान पर अपनी दिशा से भटक कर पूर्व की ओर भी बही है, इसलिए यह स्थान सूर्यमुखी / सूरजमुखी ताप्ती कहलाता है। ताप्ती के जल वेग को सहेज न पाने की स्थिति में बैतूल जिला जो कि प्रदेश की तरह नदियों का मायका है यहां पर भी छोटी बड़ी सवा सौ नदियां और नाले है जो कि अपने जल संग्रहण को रोक नहीं पाए है.

एक स्थान का पानी दो सागरो में
ताप्ती का नाम विदेशो में भी लोकप्रिय

मुलतापी में एक ही स्थान (मुलताई सर्किट हाऊस की छत एवं वहां पर मौजूद पेड़ो का बरसाती जल ) ऐसा भी है जिसका बरसाती जल दो अगल – अलग सागरो में मिल जाता है। खैरवानी से वर्धा नदी समुद्र सतह से ऊँचाई 811 मी. एवं 661 फीट नदी की कुल लंबाई 525 किमी है। मध्यप्रदेश के बैतूल जिला की मुल्ताई तहसील के वर्धन शीखर 811 मीटर ऊँचाई, से इसका उद्गम होता है। गहरे चट्टानी क्षेत्र में इसका प्रवाह तेज होता है यह नदी लगभग 13 किलोमीटर तक यह छिंदवाड़ा जिला की दक्षिणी सीमा बनाती है। इसके बाद यह नदी महाराष्ट्र राज्य में प्रवेश करती है इस नदी की कुल लम्बाई 525 किलोमीटर तथा अपवाह क्षेत्र 24087 वर्ग किलोमीटर है अंत में यह नदी वैनगंगा नदी में मिल जाती है और दोनो नदियों का संगम प्राणहिता नदी के रूप में आगे चल कर गोदावरी में मिल जाती है। गोदावरी आंध प्रदेश में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

प्राणहिता को सूर्यपुत्री भी कहा जाता है। जिसके पीछे एक कारण यह है कि वर्धा और ताप्ती दो नदियों में एक ही स्थान का जल मिलता है। ताप्ती को संस्कृत में तापी तथा मराठी में तापी कहा जाता है। पश्चिमी भारत की प्रसिद्ध नदी है। यह मध्य प्रदेश राज्य के बैतूल जिले के मुलताई से निकलकर सतपुड़ा पर्वतप्रक्षेपों के मध्य से पश्चिम की ओर बहती हुई महाराष्ट्र के खानदेश के पठार एवं सूरत के मैदान को पार करती और अरब सागर में गिरती है।

यह नदी पूर्व से पश्चिम की ओर लगभग 750 किलोमीटर की दूरी तक बहती है और खम्बात की खाड़ी में जाकर मिलती है। सूरत बन्दरगाह इसी नदी के मुहाने पर स्थित है। इसकी प्रधान उपनदी का नाम पूर्णा है जिसे चन्द्रपुत्री तथा इस नदी को सूर्यपुत्री भी कहा जाता है। समुद्र के समीप इसकी 32 मील की लंबाई में ज्वार आता है, किंतु छोटे जहाज इसमें चल सकते हैं। पुर्तगालियों एवं अंग्रेजों के इतिहास में इसके मुहाने पर स्थित स्वाली बंदरगाह का बड़ा महत्व है। गाद जमने के कारण अब यह बंदरगाह उजाड़ हो गया है।

इस स्थान का मूल नाम मूलतापी है जिसका अर्थ है तापी का मूल या तापी माता। हिन्दू मान्यता अनुसार ताप्ती को सूर्य एवं उनकी एक पत्नी छाया की पुत्री माना जाता है और ये शनि की बहन है। थाईलैंड की तापी नदी का नाम भी अगस्त 1915 में भारत की इसी ताप्ती नदी के नाम पर ही रखा गया है। महाभारत, स्कंद पुराण एवं भविष्य पुराण में ताप्ती नदी की महिमा कई स्थानों पर बतायी गई है। धुले,महाराष्ट्र में मुदावाड़ में ताप्ती नदी के तट पर कपिलेश्वर मंदिर है। ताप्ती नदी की घाटी का विस्तार कुल 65,145 किमी में है, जो भारत के कुल क्षेत्रफल का 2 प्रतिशत है। यह घाटी क्षेत्र महाराष्ट्र में ताप्ती घाटी 51,504 किमी.है।

बेहद चौकान्ने वाली बात यह है कि ताप्ती घाटी का विस्तार सबसे कम मध्य प्रदेश में 9.804 किमी एवं गुजरात में 3.837 किमी है। इसके जलग्रहण क्षेत्र का 79प्रतिशत सिर्फ गुजरात शेष मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र राज्य में पड़ता है।

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