- May 29, 2018
तलहथी पर बैठायें रखें वर्णा कुचल दें — शैलेश कुमार
पूर्ण शराब बंदी के लिए नीतीश कुमार इतिहास में दर्ज हो चुके हैं। इतिहास वही बनाता है जो सकारात्मक सोच के अर्ध विक्षिप्त हों। उनमें सुधार करने की ललक होती है। समाज के कुरीतियों को जिस महानुभाव ने समाप्त करने की बीड़ा उठाई वे अनंत काल तक इतिहास में दर्ज रहेंगे।
कुंठित और सुधार के विरुद्ध लुंठित समाज से आधुनिक भारत के निर्माता राजा राम मोहन रॉय को कठोर संघर्ष करना पड़ा जिसका वर्णन अवर्णातीत है। सबसे पहले पत्थर पूजक मूर्ख ब्राह्मणों से रॉय को संघर्ष करना पड़ा।
नीतीश कुमार भी आज उसी पथ पर चल रहे हैं। समाज में शराब , दहेज़ और बाल विवाह आज भी घुन बना हुआ है। लोग पीड़ित है। उन्हें कानूनी सहयोग चाहिए। लोगों के सामान्य इच्छा पर कुमार जी मोहर लगाने के लिए चल पड़े हैं। ये काबीले तारीफ़ है।
शराब बंदी के तहत उन्होंने जो कानूनी कदम उठाया उसे मौन रूप से सभी सुधारवादी राजनीतिक दल स्वीकार कर रहे हैं। देश की सभी राज्य के सरकार इस पर मौन रूप से मोहर लगाने के लिए मौन धारण में हैं। इसिलिये कभी कभी सरकार की तरफ से बेचने और पीने के लिये कुछ वक्तव्य जारी कर जनता के नब्ज टटोलने का प्रयास किया जाता है। लेकिन वोट के डर से सहमे हुए हैं। कहावत सही है –जो डर गया सो मर गया।
अगर समाज सुधार के लिए हम वोट की राजनीति करेंगे तो हम कभी सफल राजनीतिज्ञ नहीं हो सकते हैं यही कारण है की देश के मुस्लिम समाज मुख्यधारा से अलग-थलग पड़ा हुआ है।
आज बिहार के विपक्षी दल शराब बंदी पर कुमार जी को घेर रहे हैं। अनुसूचित जाति और जनजातियों के प्रति दुश्मन बताते फिर रहे हैं। शराब बिकता है। कुमार जी असफल सिद्ध हो रहे हैं, शराब माफिया उदंड है। मूर्ख चैनल और कुंठित पार्टी जाति शब्दों का उल्लेख कर सरकार के प्रति भ्रम फैला रहे हैं।
मैं तमाम विपक्षियों से पूछना चाहता हूँ की — क्या वे नहीं चाहते देहारी मजदूरों के परिवार सुधरे। क्या वे चाहते है की ऐसे परिवार नंग- धरंग जीवन व्यतीत करें। अपने भाग्य को कोसें।
क्या वे नहीं चाहते हैं कि उनके मतदाता भी समाज में गर्व से जीवन व्यतीत कर सके।
चार बच्चों के परिवार में मारपीट होता रहें ,परिवार कुत्तों की तरह जीवन व्यतीत करें।
क्या वे चाहते है की पांचवी फेल , आठवीं फेल लड़का घर का भार ढोने के लिए दिल्ली , कलकत्ता ,पंजाब और मुंबई में धक्का खाते फिरें। घर में शराबी बाप का शिकार और बाहर में आवारा मालिकों का शिकार होता रहे ।
बिगड़े हुए समाज को सही रास्ते पर लाने के लिए दंडात्मक कदम उठाना क्या कुमार जी की गलत नीति है।
सवाल उठ रहा है की जेल में सिर्फ अनुसूचित जाति और जनजातियों के लोग बंद है।
मैं उन सुधारवादी राजनीतिक दलों से कहना चाहता हूँ — खेत जोत कर ,फसल काट कर, रिक्शा खींचकर, जूता में पालिश कर जो अर्जन किया जाता है ,उसमे से शराब या दारु पी कर जो बचता है, उससे घर चलता है ,बच्चे , बहु -बेटियां अर्ध नंग अवस्था में घर में रहते है, फिर बाप छोटी -छोटी बातों पर मारपीट करता है।
ये दारुबाज बाप घर को नरक बनाकर रखता हैं। ऐसे घर में पढ़ाई का कोई महत्व नहीं है। ऐसे परिवार अनाज लेने के लिए बच्चों का नाम स्कूल में नामित करते हैं। बच्चे बकरी चराते हैं , वे स्कूल नहीं जाते लेकिन जब स्कूल में अनाज मिलने का वक्त आता है तो उसके माँ और बाप डंडा लेकर मास्टर के पास पहुँच जातें है। ऐसे लोग पैसों का सही उपयोग करना नहीं जानते हैं।
कुछ सफ़ेदपोश पड़ोसी उनके पत्नी , बेटियों पर बुरी नजर रखते हैं। ऐसे परिवार उनके चंगुल में फंस जाता है।
आज की स्थिति में काफी बदलाव हुआ है ,वह शरावी सड़क पर नंगे नाचता था , वह शरावी घर में पत्नी को जानवर समझ कर पीटता रहता था। ये सब उदंडता ख़त्म हो चुकी है।
महिलाओं को आत्म बल मिला है , उसके साथ सामान्य बातों पर कोई अंगुलियाँ नहीं उठा सकता है। शराबी घर में माहौल बिलकुल बदल चुका है क्योंकि सही सोच -सही दिशा की अवधारणा घर -घर, में व्याप्त हो चुकी है।
सवाल है शराब बिकता है —
इस बिंदुओं पर आप भी उतने ही दोषी है जितने शराब बेचनेवालें। एक विशेष स्थिति में क़ानून का साथ न देने वाला भी दोषी होता है। यही तो आपातकाल है। जिसमें सभी को क़ानून के दायरे में रहने की इजाजत है।
सवाल है की 200 – 300 रूपये कमानेवाला 600 रूपये का बोतल कहाँ से खरीदेगा ?
अगर नहीं खरीदेगा तो मुफ्त में कितने दिन तक मुफ्तखोर पिलाता रहेगा। एक दिन मारपीट होगा और वह आदमी स्वत्: शराब छोड़ देगा।
समाज और राष्ट्र के निर्माण के लिए जन -जन को अपने आपके महत्व को समझना होगा। सत्ता की लड़ाई छोड़ना पडेगा और घर -घर को घर -घर से जोड़ना पड़ेगा।
सुधारात्मक कदम उठाना ऐरे-गैरे से संभव नहीं है इस तरह का कदम अदम्य साहसी व्यक्ति ही उठाता है क्योंकि यह मार्ग फूलों का नहीं काँटों से भरा हुआ है। इसी काँटों को दूर करने के लिए करोड़ों जनता में सिर्फ एक व्यक्ति पैदा होता है।
यह मत देखिये की यह कौन है ,देखिये यह की व्यक्ति समाज और राष्ट्र को दे क्या रहा है ? अगर समाज और राष्ट्र की भावनाओं पर खडा है तो उसे तलहथी पर बैठायें वर्णा कुचल दें ताकि फिर सर न उठा सके।