डिसलेक्सिया : बच्चों में छिपी क्षमताओं तथा प्रतिभा को उभारने की पहल

डिसलेक्सिया : बच्चों में छिपी क्षमताओं तथा प्रतिभा को उभारने की पहल

डिसलेक्सिया से प्रभावित बच्चों में छिपी क्षमताओं तथा प्रतिभा को उभारने की पहल की जाएगी, इसके लिए डिसलेक्सिया विषय पर शीघ्र ही राज्य स्तर पर कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा। समाज कल्याण विभाग के सचिव श्री सोनमणि बोरा ने कल मंत्रालय (महानदी भवन) में डिसलेक्सिया विषय पर आयोजित बैठक में उक्त आशय के विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बच्चों में डिसलेक्सिया कोई कमजोरी नहीं होती वरन् असीम प्रतिभा के धनी होते है। ऐसे बच्चों को मार्गदर्शन देकर सही दिशा में ले जाने की आवश्यकता है।1342_0

बैठक में बताया गया कि डिसलेक्सिया पर महाराष्ट्र और गुजरात में बेहतर कार्य किया जा रहा है। प्रदेश में सर्वे कराकर डिसलेक्सिया से प्रभावित बच्चों को चिन्हांकित कर प्रमाणित किया जाएगा, साथ ही शिक्षा प्रणाली और परीक्षा पद्धति में सुधार उनके हिसाब से किया जाएगा। दिव्यांग लोगों के लिए अधिनियम प्रावधान किया जा रहा है जो संसद में विचाराधीन है।

एक्ट बन जाने के बाद ऐसे लोगों के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि होगी। शिक्षा का अधिकार अधिनियम में भी ऐसे बच्चों को सुविधाएं मिलने लगेगी। कार्यशाला-सह प्रशिक्षण में स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य तथा समाज कल्याण विभाग एवं स्वयं सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल होंगे।  इसके अतिरिक्त बैठक में दिव्यांगों के लिए सभी विभागों में जल्द ही प्रकोष्ठ गठित करने का निर्णय भी लिया गया।

बैठक में श्री बोरा ने डिसलेक्सिया के विषय पर चर्चा करते हुए बताया कि प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आंइंस्टीन की बचपन में याददाश्त कमजोर थी, लेकिन उनकी कल्पनाशीलता ने उन्हें महान बना दिया। इसी प्रकार थामस एडीसन, अलेक्जेन्डर ग्राहम बेल, फिल्म अभिनेता अभिषेक बच्चन भी बचपन में डिसलेक्सिया से प्रभावित थे। उन्होंने बताया गया कि कई बच्चे शब्दों को ठीक से पहचान नहीं पातेे और कई बार समझाने पर भी हमेंशा गलत लिखते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी इस आदत में सुधार नहीं आता है तो ऐसे बच्चों को डिसलेक्सिया की समस्या हो सकती है।

यह देखा गया है कि आम तौर पर लोग स्लो लर्नर तथा डिसलेक्सिक बच्चे में अंतर नहीं कर पाते। स्लो लर्नर बच्चों में सीखने की क्षमता कम होती है जबकि डिसलेक्सिक बच्चों में कमजोर शब्द ज्ञान को छोड़कर प्रतिभा में कमी नहीं होती। इन बच्चों की फोटोग्राफिक मेमोरी बहुत तेज होती है।

बच्चों के माता पिता एवं शिक्षकों को इनकी पढ़ाई के समय शब्दों के सही विन्यास की जानकारी देना चाहिए और उनके अर्थ समझाएं जाए ताकि उनका कांसेप्ट क्लीयर हो सके। जिन बच्चों को उच्चारण करने में कठिनाई होती हैं उन्हें शब्दों का सही ढंग से उच्चारण करवाएं जाए, जिससे वह शब्दों को बेहतर तरीके से समझ सकें।

बैठक में समाज कल्याण विभाग के संचालक श्री संजय अलंग, मनोवैज्ञानिक डॉ. सिमी श्रीवास्तव, डॉ. शीला श्रीधर सहायक प्राध्यापक शासकीय दूधाधारी बजरंग महाविद्यालय, डॉ. जे.सी. अजमानी, संयुक्त संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग श्रीमती अर्चना राणा सेठ, उप संचालक स्कूल शिक्षा विभाग श्री आर.एस. चौहान, डॉ. जे श्री जे.डी. पाण्डे ए.पी.सी. राजीव गांधी शिक्षा मिशन, राज्य शैक्षणिक एवं अनुसंधान परिषद, मानव अधिकार आयोग, यूनिसेफ के प्रतिनिधि और शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी उपस्थित थे।

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