जोश और जज्बे के साथ क्रिकेट खेलती दृष्टि बाधित लड़कियां — रूबी सरकार

जोश और जज्बे के साथ क्रिकेट खेलती दृष्टि बाधित लड़कियां —  रूबी सरकार

भोपाल (मप्र) इन दिनों केंद्र सरकार द्वारा आयोजित खेलों इंडिया का जुनून लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है. यह देश के कोने कोने में खेलने का जज़्बा रखने वाले हर उम्र के खिलाडियों को प्रेरित कर रहा है. दृष्टि बाधित लड़कियां भी इससे इतनी प्रेरित हुईं कि खेलों में अपना भविष्य तलाशने लगीं हैं. यह लड़कियां अब क्रिकेट खेलने का जोखिम उठा रही हैं. ये सिर्फ अपने गांव, शहर या राज्य में नहीं, बल्कि नेशनल टूर्नामेंट भी खेल चुकी हैं और अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टूर्नामेंट खेलने की तैयारी कर रही हैं. इन्हीं में से एक खिलाड़ी है मध्य प्रदेश के होशंगाबाद की प्रिया कीर.

बीए तृतीय वर्ष की छात्रा बीस वर्षीय प्रिया दृष्टि बाधित क्रिकेट टीम की सबसे लंबी खिलाड़ी है. वह क्रिकेट ही नहीं, जूडो में भी राष्ट्रीय चैम्पियन है. जुडो में उसने तीन गोल्ड, दो सिल्वर और एक कांस्य पदक अपने नाम किया है. इतना ही नहीं, तीन बार उसे अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भी भाग लेने के लिए न्योता मिल चुका है, लेकिन संसाधनों की कमी के चलते वह विदेश में खेलने नहीं जा सकी. समाज की दकियानूसी सोच के चलते उसे कहीं से भी आर्थिक मदद नहीं मिली. हालांकि प्रिया को आगे लाने में सोहागपुर की दलित संस्था की अहम भूमिका रही है. संस्था ने ही प्रिया की प्रतिभा को पहली बार पहचाना और उसे प्रोत्साहित किया.
तब तक प्रिया के मन से डर था कि वह शायद समाज की मुख्यधारा में शामिल न हो पाए. संस्था की मदद से ही वह जूडो खिलाड़ी बन पाई. इसके बाद जब क्रिकेट में संभावना दिखी तो प्रिया आगे बढ़कर क्रिकेट खेलने के लिए तैयार हो गई. जहां क्रिकेट एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड इन मध्यप्रदेश के महासचिव केपी सोनू गोलकर से उसे मदद मिली. दरअसल उस समय केपी सोनू गोलकर मध्यप्रदेश में ऐसी लड़कियों को तलाश कर एक क्रिकेट टीम बनाने का सपना देख रहे थे, जो दृष्टि बाधित हो, मगर उनमें खेलने का जुनून हो.
जाहिर है सोनू गोलकर के लिए यह जोखिम भरा काम था. एक तो दृष्टि बाधित, ऊपर से लड़की को परिवार और गांव से दूर राजधानी भोपाल लाकर उसकी प्रतिभा को तराशना, यह चुनौती भरा काम था. साथ में इन लड़कियों के लिए क्रिकेट उपकरणों की व्यवस्था भी उन्हें खुद ही करनी थी. इसके अतिरिक्त इनकी सुरक्षा सोनू गोलकर के समक्ष सबसे बड़ा चैलेंज था. यानी कदम कदम पर चुनौतियां रहीं. लेकिन उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति और इन लड़कियों के हौसले ने काम को आसान बना दिया. उन्होंने जोखिम उठाया और स्पांसर की तलाश शुरू की. सोनू कहते हैं, इस तरह के टूर्नामेंट के लिए आसानी से कोई स्पांसर मिलता नहीं. बहरहाल सोनू और उनकी टीम के अमित, कृतिका, आशुतोष और निधि सब मिलकर इस दिशा में प्रयास करने लगे.

स्वयं क्रिकेट के नेशनल खिलाड़ी रह चुके सोनू, वर्ष 2015 में गठित ‘क्रिकेट एसोसिएशन द ब्लाइंड इन इंडिया’ के सदस्य बनें. जब एसोसिएशन का पहला महिला नेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट दिल्ली में आयोजित हुआ और देश के 7 राज्यों की लड़कियों ने इसमें भाग लिया, तभी सोनू ने मध्य प्रदेश में टीम बनाने का संकल्प ले लिया था. वह और उनकी टीम राजधानी भोपाल, ग्वालियर और इंदौर जैसे शहरों में क्रिकेट खेलने में रुचि रखने वाली दृष्टि बाधित लड़कियों की तलाश करने लगे. सोनू बताते हैं कि आश्चर्य तब हुआ, जब बड़ी संख्या में शहरों की अपेक्षा गांव से लड़कियां बाहर निकलकर आईं. उन्होंने प्रदेश भर से 160 लड़कियों को ढूंढ़ निकाला और उन्हें क्रिकेट का प्रशिक्षण देना शुरू किया ताकि अगले नेशनल टूर्नामेंट में मध्य प्रदेश की भागीदारी संभव हो सके.
उनके इस प्रयास से वर्ष 2022 में बैंगलुरु में आयोजित नेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए लड़कियां तैयार हो गईं. साल 2020 में जहां 7 राज्यों की टीम ने भागीदारी की थी, वहीं वर्ष 2022 में यह संख्या बढ़कर 14 तक पहुंच गई. 14 राज्यों के टूर्नामेंट में मध्य प्रदेश की टीम हरियाणा की टीम को हराकर तीसरा स्थान प्राप्त किया. सोनू यही नहीं रूके, बल्कि अगस्त 2023 में इंग्लैण्ड में आयोजित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए लड़कियों को तैयार करने में जुट गए. सोनू बताते हैं कि उनका सपना है कि अगस्त 2023 में इंग्लैण्ड में आयोजित अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट में भारत की ओर से कम से कम दो खिलाड़ी मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करें.
प्रिया दृष्टि बाधित होते हुए भी गजब की साहसी और आत्मविश्वासी लड़की है. वह अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए रोज मैदान में पसीना बहा रही है. प्रिया कहती है कि वह जन्म से ही देख नहीं सकती है. इसलिए शुरू में डर और झिझक उसके भीतर भी रहा. लेकिन जब एक बार घर से बाहर खेलने निकल गई, तो धीरे-धीरे डर समाप्त हो गया और प्रतियोगिता की भावना मन में आने लगी. इससे अपने आप उसमें आत्मविश्वास बढ़ने लगा. मज़दूरी करने वाले पिता ब्रजलाल कीर की वह पांचवी संतान है. यहां यह बताना जरूरी है कि पांचों भाई-बहनों में से चार दृष्टि बाधित हैं. फिर भी प्रिया ने कभी संसाधनों की कमी को सपनों के आड़े आने नहीं दिया. पिता की शंका और डर पर विजय हासिल करते हुए उसने बेंगलुरु टूर्नामेंट में भाग लिया.
12वीं में पढ़ने वाली सपना अहिरवाल भी प्रिया की ही तरह दृष्टि बाधित है. वह भी बेंगलुरु टूर्नामेंट की हिस्सेदार रही हैं. ग्वालियर की रहने वाली सपना के पिता भजनलाल अहिरवार ठेकेदार हैं. वह बताती है कि जन्म से वह दृष्टि बाधित नहीं है, बल्कि 6 साल की उम्र में अचानक पढ़ाई के दौरान उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. पिता ने काफी इलाज करवाया. परंतु उसकी आंखों की ज्योति वापस नहीं आई. सपना इसे लेकर कभी विचलित नहीं हुई, इसे कभी अपनी कमजोरी नहीं माना, बल्कि वह अपनी जिंदगी पहले जैसी ही जीने लगी.
वह भी क्रिकेटर के साथ साथ एक अच्छी एथलीट है. उसने 2018 में नेशनल एथलीट चैंपियनशिप में सिल्वर और कांस्य पदक जीता है. इसके अलावा 2019 में उसने राज्यस्तरीय योग प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल अपने नाम किया है. उसका सपना है कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट प्रतियोगिता में भाग ले. अपनी सकारात्मक सोच से सपना कहती है कि दृष्टि बाधित होने को मैं कमजोरी नहीं, बल्कि अपनी ताकत मानती हूं. सपना और प्रिया की यह सकारात्मक सोच, थक कर बैठ जाने वालों के लिए एक बेहतरीन मिसाल है.

(चरखा फीचर)

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