जैविक कृषि – राष्‍ट्रीय सतत कृषि मिशन–मंत्री श्री राधा मोहन सिंह

जैविक कृषि –  राष्‍ट्रीय सतत कृषि मिशन–मंत्री श्री राधा मोहन सिंह

कृषि मंत्रालय ————— वर्तमान परिवेश में जैविक खेती की महत्वता एवं उसके लाभ को ध्‍यान में रखते हुए, भारत सरकार ने देश में जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए राष्‍ट्रीय सतत कृषि मिशन के अंतर्गत परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और पूर्वोत्‍तर क्षेत्रों के लिए जैविक मूल्‍य श्रंखला विकास (ओवीसीडीएनईआर) योजनाओं का प्रारंभ किया है।

सर्वप्रथम हमारा लक्ष्य है कि जैविक खेती को बारानी क्षेत्रो, पहाड़ी क्षेत्रों एवं आदिवासी क्षेत्रों में बढ़ावा दे क्योंकि इन क्षेत्रों में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग बहुत कम है I

(क) परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) पहली व्‍यापक योजना है जिसे एक केन्‍द्रीय प्रायोजित कार्यक्रम (सीएसपी) के रूप में शुरू किया गया है। इस योजना का कार्यान्‍वयन प्रति 20 हैक्‍टेयर के कलस्‍टर आधार पर राज्‍य सरकारों द्वारा किया जाता है।

कलस्‍टर के अंतर्गत किसानों को अधिकतम 1 हैक्‍टेयर तक की वित्‍तीय सहायता प्रदान की जाती है और सहायता की सीमा 3 वर्षों के रूपांतरण की अवधि के दौरान प्रति हैक्‍टेयर 50,000 रूपये सरकार ने रखा है। 2 लाख हैक्‍टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए 10,000 कलस्‍टरों को बढ़ावा देने का लक्ष्‍य है।

स्‍कीम के घटक

पीकेवीआई योजना के अधीन प्रमाणीकरण और भागीदारिता गारंटी प्रणाली (पीजीएस) के माध्‍यम से जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जाता है। जीव विज्ञानीय नाइट्रोजन के उत्‍पादन के लिए किसानों को संगठित करने, जैविक बीजों के लिए विभिन्‍न उप घटकों पर कलस्‍टरों को वित्‍तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसमें शामिल विभिन्‍न घटक निम्‍नलिखित हैं;

(क) किसानों को संगठित करना : किसानों को प्रशिक्षण और किसानों द्वारा दौरा भ्रमण।

(ख) गुणवत्‍ता नियंत्रण : मृदा नमूना विश्‍लेषण, प्रक्रिया दस्‍तावेजीकरण, कलस्‍टर सदस्‍यों के खेतों का निरीक्षण, अवशेष विश्‍लेषण, प्रमाणीकरण के लिए प्रमाणीकरण प्रभार और प्रशासनिक व्‍यय।

(ग) रूपांतरण पद्धतियां: जैविक कृषि के लिए चालू पद्धतियों से अंतरण जिसमें जैविक आदान, जैविक बीज और परम्‍परागत जैविक आदान उत्‍पादन यूनिट और जीव विज्ञानीय नाईट्रोजन, फसल रोपण आदि की खरीद शामिल है।

(घ) समेकित खाद प्रबंधन : तरल जैव उर्वरक कन्‍सोर्टिया/जैव कीट नाशी, नीम केक, फोस्‍फेट युक्‍त जैव खाद एवं वर्मी कम्‍पोस्‍ट की खरीद।

(ड.) कस्‍टम हायरिंग केंद्र प्रभार: एसएमएएम दिशानिर्देशों के अनुसार कृषि उपकरणों को भाड़े पर लेना।

(च) लेबलिंग और पैकेजिंग सहायता एवं परिवहन सहायता।

(छ) जैविक मेलों के माध्‍यम से विपणन।

(ख) पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्‍य श्रृंखला विकास मिशन

देश के पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में जैविक कृषि की संभावना को पहचानते हुए कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय ने 2015-16 से 2017-18 के दौरान अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्‍किम व त्रिपुरा में कार्यान्‍वयन के लिए केंद्रीय क्षेत्र योजना – ‘पूर्वोत्‍तर क्षेत्र हेतु जैविक मूल्‍य श्रृंखला विकास मिशन’ की शुरूआत की है।

इस स्‍कीम का लक्ष्‍य मूल्‍य श्रृंखला मोड में प्रमाणित जैविक उत्‍पादन का विकास करना है ताकि किसानों को उपभोक्‍ताओं से जोड़ा जा सके और इनपुट, बीज प्रमाणीकरण से लेकर संकलन, समुच्‍चयन, प्रसंस्‍करण, विपणन व ब्रांड निर्माण पहल तक संपूर्ण मूल्‍य श्रृंखला के विकास में सहायता की जा सके। तीन वर्षों के लिए 400 करोड़ रुपये के परिव्‍यय से स्‍कीम का अनुमोदन किया गया।

ख. 1 मिशन के उद्देश्‍य

i. निम्‍नलिखित पहलों के माध्‍यम से फसल जिन्‍स विशिष्‍ट जैविक मूल्‍य श्रृंखला तैयार करना तथा जैविक फसल उत्‍पादन के अंतर को कम करना, जंगली फसलों की कटाई, जैविक पशुधन प्रबंधन, जैविक कृषि उत्‍पादों का प्रसंस्‍करण, भंडारण व विपणन करना-

I. आवश्‍यक संरचनात्‍मक, तकनीकी व वित्‍तीय सहायता से फसल विशिष्‍ट क्‍लस्‍टर तैयार करना।

II. घरेलू व निर्यात बाजारों में ग्राहकों के साथ संपूर्ण दीर्घावधिक व्‍यापार संबंधों के आधार पर किसानों व जैविक व्‍यवसायियों, जैविक उत्‍पादन स्‍थानीय उपक्रमों तथा/अथवा किसान उत्‍पादक कंपनियों के बीच भागीदारी को बढ़ाना।

ii. उत्पादकों को एफआईजी में संगठित करके कार्यक्रम स्वामित्व के माध्यम से उत्पादकों को सशक्त बनाना तथा इसका अंतिम उद्देश्य इन्हें किसान उत्पादक संघों/कंपनियों में परिवर्तित करना है।

iii. परंपरागत कृषि/निर्वाह कृषि पद्धति को स्थानीय संसाधन आधारित, सतत, अधिक मूल्य वाला वाणिज्यिक जैविक उपक्रम से प्रतिस्थापित करना।

iv. उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण व विपणन के लिए समग्र सुविधाओं से समेकित व संकेंद्रित दृष्टिकोण के अंतर्गत जिन्स विशिष्ट वाणिज्यिक जैविक कृषि श्रृंखला का विकास करना।

v. ब्रांड निर्माण के माध्यम से ब्रांड/लेबल एनईआर उत्पादों का विकास करना तथा उत्पादक संघों के स्वामित्व में अधिक मजबूत विपणन पहुंच की सुविधा प्रदान करना।

vi. संपूर्ण मूल्य श्रृंखला के विकास व प्रचालन के लिए समन्वय, निगरानी, सहायता व वित्तपोषण के लिए राज्य विशिष्ट अग्रणी एजेंसी (जैविक जिन्स बोर्ड अथवा जैविक मिशन) का निर्माण करना।

हमारी सरकार सतत उत्‍पादकता, खाद्य सुरक्षा एवं मृदा स्‍वास्‍थ्‍य पर जोर देने के साथ जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। जैविक कृषि न केवल वायु, जल एवं मृदा से अत्‍यधिक रसायनों को बाहर करते हुए पर्यावरण से विषाक्‍त भार को कम करता है बल्‍कि यह लम्‍बी अवधि तक स्‍वस्‍थ्‍य मृदा को तैयार/पुनर्सृजन करने और हमारी जैव विविधता को बढ़ाने एवं संरक्षित करने में भी मदद करती है।

वर्ष 2013-2014 के दौरान जंगली फसल को छोड़कर प्रमाणित जैविक खेती के तहत विभिन्न फसलों में केवल 7.23 लाख हैक्‍टेयर छेत्रफल था जो वर्ष 2014-15 में 11.84 लाख हैक्‍टेयर हो गया तथा वर्ष 2015-16 के दौरान जंगली फसल को छोड़कर प्रमाणित जैविक खेती के तहत विभिन्न फसलों का कुल क्षेत्र 14.90 लाख हैक्‍टेयर है I हमारे गरीब एवं सीमांत किसान तृतीय पक्ष प्रमाणीकरण की अपनी उच्‍च लागत के कारण इसे अपना नहीं रहे हैं इसलिए पीकेवीवाई योजना के अंतर्गत घरेलू जैविक मंडी विकास के लिए पीजीएस-भारत कार्यक्रम की शुरूआत की गई है।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय उन्नत कृषि शिक्षा योजना – कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने ग्रामीण भारत के समग्र विकास एवं भारतीय युवाओ की प्रतिभा को उभारने हेतु उन्नत भारत अभियान के अंतर्गत एक नई योजना पंडित दीनदयाल उपाध्याय उन्नत कृषि शिक्षा योजना आरम्भ की है|

भारत की अधिकांश जनसँख्या ग्रामीण क्षेत्रो में रहती है और कृषि एवं अन्य कृषि संबंधित क्षेत्रो से जुडी हुई है | ग्रामीण विकास के बिना भारत सर्वांगीण विकास नही कर सकता और न ही विश्व में अपना स्थान बना सकता है |

यह योजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि शिक्षा प्रभाग द्वारा कार्यान्वित की जा रही है| जिसके उदेश्य निम्लिखित है %

1. जैविक खेती और टिकाऊ कृषि के प्रति रास्ट्रीय आवश्यकतानुसार ग्रामीण स्तर पर प्रासंगिक कुशल मानव संसाधन का निर्माण करना|

२. ग्रामीण भारत को प्राकृतिक खेती/ जैविक खेती / ग्रामीण अर्थव्यवस्था / टिकाऊ कृषि के क्षेत्र में व्यवसायिक समर्थन प्रदान करना I

3. इन स्थापित केन्द्रों के माध्यम से ग्राम स्तर पर उन्नत भारत अभियान की अन्य गतिविधियों का विस्तार करना I

वर्ष 2015-16 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि शिक्षा विभाग ने उन्नत भारत अभियान की गतिविधियों के तहत लखनऊ, कनेरीमठ कोल्हापुर, अमृतसर, अविकानगर एवं झांसी में रास्ट्रीय कार्यशालाओं का आयोजन किया I प्रत्येक कार्यशाला में 250 से अधिक किसानों ने भाग लिया और उन्नत भारत अभियान की गतिविधियों का लाभ लिया I इसके अलावा जैविक खेती / प्राकृतिक खेती/ गौ आधारित अर्थव्यवस्था पर 130 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये गये I

वर्ष 2016-17 में 100 प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना होगी। जिसमे 10 केंद्र बिहार मे होंगे। प्रशिक्षण केन्द्रों के लिए उन किसानो का चयन किया जायेगा, जिन्होंने वर्ष 2015-16 या उससे पूर्व उन्नत भारत अभियान के अंतर्गत या उससे पूर्व आयोजित प्राकृतिक खेती संबंधित प्रशिक्षण पाठयक्रम में भाग लिया हो, अथवा जिसे जैविक खेती / प्राकृतिक खेती / टिकाऊ खेती का ज्ञान हो अथवा जो किसान अपने ही खेत में खेती की इन पद्धतियों का अभ्यास कर रहा हो एवं जैविक खेती की मूल बातें एवं मौलिक सिद्धांतो से अवगत हो |

परिणाम:

प्रस्तावित योजना निश्चित रूप से पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों पर विशेष रूप से मृदा स्वास्थ्य, स्थिरता और उत्पादकता के सन्दर्भ में जागरूकता को बढाने के साथ –साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में परिवर्तनकारी बदलाव लायेगी|

यह योजना कृषि की पारंपरिक पद्धतियों को पुनः जीवंत कर ग्रामीण समुदाय को सशक्त बनाने में योगदान करेगी | यह योजना किसानो के लिए उत्पादन, उत्पादकता एवं लाभ बढ़ाने के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता एवं सुरक्षित खाद्य पदार्थ प्रदान करने की एक पहल है |

जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के बीच समझौता जैविक खेती में एक मील का पत्थर साबित होगा क्योंकि उत्तराखंड में गंगा की धारा से लेकर पश्चिम बंगाल तक 1657 ग्राम पंचायतों में नमामि गंगे परियोजना के तहत परंपरागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत 1657 कलस्‍टर में जैविक खेती को विकसित किया जायेगा I इस परियोजना के अंतर्गत कृषि मंत्रालय कलस्‍टर निर्माण के साथ साथ एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन और माइक्रो सिचाई तकनीकियों पर प्रशिक्षण उपलब्ध करायेगा I

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