- July 14, 2020
जल से नहीं, श्रद्धा व विश्वास से करें भगवान शिव को प्रसन्न— रमेश गोयल
मशीनीकरण व आधुनिकीकरण से प्रदूषण व तापमान बढ़ रहा है जिससे जलवायू परिर्वतन हो रहा है । इसी कारण वर्षा अनियमित हो रही है। कम होने के कारण नदियों में जल घटता जा रहा है। नदियों में पानी की कमी के कारण भूजल दोहन बढ़ता जा रहा है जिससे भूजल स्तर 200 से 400 फूट तक नीचे चला गया है।
अनेक बार अति वर्षा बाढ़ व विनाश का कारण भी बनती है। श्रावण मास और उसमें शिवरात्रि पर्व पर जल का विशेष महत्व है क्योंकि पूरे मास शिवजी का जलाभिषेक किया जाता है। इतिहास साक्षी है कि शिवालय नदी या तालाब के किनारे ही स्थित होते थे और भगवान शिव को अर्पित जल नदी तालाब में चला जाता था जबकि अब वह जल, जिसे भक्तजन प्रसाद रुप में ग्रहण भी करते हैं, सीवर में चला जाता है।
पूरे देश में कराड़ों लीटर प्रसाद रूपी पानी सीवर में चला जाता है। पर्यावरण प्रेरणा के संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा भारत विकास परिषद के पूर्व राष्ट्रीय मंत्री पर्यावरण जल स्टार रमेश गोयल ने शिवरात्रि की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ शिव भक्तों से अपील की है कि पानी की कमी को ध्यान में रखते हुए श्रावण मास में प्रतिदिन और शिवरात्रि पर्व पर विशेष रूप से शिवलिंग पर बाल्टियां भर भर कर नहीं बल्कि केवल लोटा भर जल ही चढ़ाएं।
अनेक कथाएं प्रचलित हैं कि महादेव मनोभाव व श्रद्धा से ही प्रसन्न होते हैं, जल की अधिक मात्रा से नहीं। अमरनाथ एक उदाहरण है जहां पर जल का प्रयोग होता ही नहीं है। कविता की इन पंक्तियों को ध्यान में रखकर पूजा करें कि
’’पूजा और पूजापा प्रभुवर इसी पूजारिन को समझें।
दान दक्षिणा और न्यौछावर इसी भिखारिन को समझें’’।
मन्दिरों के प्रबन्धकों को वाटर हारवैस्टिंग या रिचार्जर लगवाने चाहिएं ताकि भक्तों द्वारा शिवलिंग पर चढाया गया शुद्ध जल सीवर में ना बहकर सीधा जमीन में चला जाए जोे भूजल स्तर सुधारने में सहायक हो। शिव भक्तों से आग्रह है कि जल की बढ़ती कमी को ध्यान में रखते हुए चिन्तन करें और अन्यथा न लें व कम जल का प्रयोग करें । शिवालयों को जल संरक्षण सिस्टम के साथ जोड़ें।
शिवरात्रि पर अख॔ड 108 जलधारा के आयोजन न करें या एक ही धारा चलायें क्योंकि इससे एक दिन में एक एक मन्दिर में हजारों लीटर शुद्ध जल सीवर में चला जाता है और पूरे देश में लाखों मन्दिरों में सैंकड़ों करोड़ लीटर पानी, वह भी शिव प्रसाद, वर्तमान परिस्थितियों में सिवर में बहा देना बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती है। आयोजन के समय कलश पूजा यानी वरुण देव, जो जल अधिपति (देवता) हैं, की पूजा करते हैं और फिर उसे सीवर में बहाते हैं ।
उन्होंने शिव भक्तों से क्षमा याचना के साथ निवेदन किया है कि कट्टरता नहीं विवेकपूर्ण चिंतन करें और स्वयं, परिवार, समाज व देश के भविष्य का भी ध्यान रखें ।
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