• November 20, 2019

जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम —- मुख्यमंत्री

जलवायु  के  अनुकूल  कृषि  कार्यक्रम —- मुख्यमंत्री

पटना:- मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम का माउस क्लिक कर शुभारंभ किया। मुख्यमंत्री सचिवालय स्थित ‘संवाद’ में आयोजित कार्यक्रम का मुख्यमंत्री ने दीप प्रज्ज्वलित कर विधिवत उद्घाटन किया। कृषि विभाग के सचिव श्री एन0 सरवन कुमार ने मुख्यमंत्री को पौधा भेंटकर उनका स्वागत किया। कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री के समक्ष जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम पर आधारित लघु फिल्म प्रदर्शित की गयी।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मौसम के अनुकूल कृषि कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया है। बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया के पूसा केंद्र द्वारा 150 एकड़ में कृषि कार्य किया जा रहा है जिसे देखने के लिए हम 11 मार्च 2016 को गये थे। वहां हो रहे काम को देखकर
हमंे काफी प्रसन्नता हुई। बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया का केंद्र पूसा में बने इसके लिए हम शुरू से प्रयासरत रहे क्यांेकि समस्तीपुर का इलाका कृषि के लिए खास रहा है।

देश में तीन जगहों पर इसका केंद्र बना, जिनमें से एक पूसा में है। उन्होंने कहा कि किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए फसल चक्र में बदलाव करना होगा। जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम की योजना का कार्यान्वयन इन चार समूहों बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया, डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय (पूसा, समस्तीपुर), बिहार कृषि विश्वविद्यालय (सबौर, भागलपुर) तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, (पूर्वी क्षेत्र, पटना) को करना है। चारों समूह मिलकर पूसा में जो काम हो रहा है, उसे देखेंगे और पूरे बिहार के संदर्भ में क्या होना चाहिए, उसे सुनिश्चित करेंगे। प्रथम चरण में बिहार के 8 जिलों के कृषि विज्ञान केन्द्रों में इसे प्रारम्भ किया जा रहा है।

इन आठ जगहों पर पांच-पांच गांवों का चयन कर जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम भी कराये जायेंगे। इन आठ जिलों के बाद जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम को पूरे बिहार में लागू किया जायेगा। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम का मकसद यह है कि वातावरण के अनुरूप किस प्रकार से किन-किन फसलों की खेती की जानी चाहिए। वर्ष 2016 में जब हम बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया के पूसा केंद्र को देखने गये थे। उसी समय से हम चाह रहे थे कि इसकी शुरुआत पूरे बिहार में जल्द से जल्द हो जाए और मुझे खुशी है कि जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम का आज शुभारंभ हो गया है, इसके लिए राशि भी मंजूर कर दी गयी है। मुझे पूरा भरोसा है कि इस कार्यक्रम का परिणाम अच्छा होगा और इसके लिए जितनी धन राषि की आवश्यकता होगी, उसे राज्य सरकार उपलब्ध कराएगी। जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम का कार्यान्वयन जिन चारों समूहों द्वारा किया जाना है, मैं उन चारांे समूहों के लोगों से कहूँगा कि जगह-जगह जाकर आप किसानों को समझायें कि वे अपने खेतों में फसल अवशेष को न जलायें। फसल अवशेष उपयोगी हंै, इसे आप सभी मिलकर लोगों को समझाइये।

मुख्यमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण स्थिति धीरे-धीरे भवायह होती जा रही है। वर्ष 2007 में आई बाढ़ से 22 जिलों के ढाई करोड़ लोग प्रभावित हुए थे, जबकि उसके ठीक अगले साल 2008 में कोसी त्रासदी हुई थी। इसके बाद वर्ष 2016 में गंगा का जलस्तर इतना ऊँचा उठा कि उसके दोनों किनारो का इलाका पूरी तरह से जलमग्न हो गया। वर्ष 2017 में फ्लैश फ्लड आया, वहीं 2018 में बिहार के सभी 534 प्रखंडों में से 80 ब्लॉक को सूखाग्रस्त घोषित करना पड़ा। जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण में आए बदलाव को देखते हुए हमने इस वर्ष 13 जुलाई को विधानमंडल सदस्यों की एक संयुक्त बैठक बुलाई जो आठ घंटे तक चली।

बैठक में हमलोगों ने पूरे बिहार में जल-जीवन-हरियाली-अभियान चलाने का निर्णय लिया। इस अभियान में जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम को भी जोड़ा गया है। जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत अगले 3 वर्षों में 24 हजार करोड़ रूपये की राशि खर्च कर 11सूत्री कार्यक्रम को मिशन मोड में पूरा करना है ताकि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न हुये संकट से लोगों को निजात मिले। इसके लिए सोखता का निर्माण, रेन वाटर हार्वेस्टिंग, वृहत पैमाने पर वृक्षारोपण, आहर-पईन, तालाब, सार्वजनिक कुओं, नलकूप का जीर्णोद्धार कराने के साथ ही उसे अतिक्रमणमुक्त कराया जाएगा। बिहार में पहले ज्यादातर धान और गेहूं की ही बुआई हुआ करती थी लेकिन पर्यावरण में बदलाव के कारण अब 10 प्रतिशत क्षेत्र में मक्के की बुआई की जा रही है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले बिहार में 15 जून से ही माॅनसून की शुरुआत हो जाती थी और औसतन 1200 से 1500 मिलीमीटर वर्षापात हुआ करती थी लेकिन पिछले तीस सालों के वर्षापात के रिकॉर्ड को देखंे तो औसतन 1500 मिलीमीटर से घटकर वर्षापात 1017 मी0मी0 पर पहुँच गयी है। वहीं विगत दस वर्षों के वर्षापात के आंकड़ो को देखने पर पता चलता है कि बिहार में औसतन वर्षापात घटकर 901 मिलीमीटर पर पहुँच गयी है। इस वर्ष भूजल स्तर दक्षिण बिहार के साथ-साथ उतर बिहार के दरभंगा में भी काफी नीचे चला गया था।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले रोहतास और कैमूर के इलाके में ही खेतों में फसल अवशेष जलाए जाते थे लेकिन अब यह सिलसिला पटना, नालंदा होते हुए उत्तर बिहार में भी पहुंच गया है जो बहुत ही खतरनाक है। फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि विभाग ने कार्यक्रम सुनिश्चित किया है ताकि लोगों को प्रेरित कर खेतों में फसल अवशेष जलाने की परम्परा पर रोक लगाई जा सके। फसल की कटाई के लिए बिहार में 1300 कंबाइन हार्वेस्टर हैं, जिससे कटाई करने पर फसल अवशेष खेतों में ही रह जाते हंै। खेतों में फसल अवशेष जलाए जाने की परंपरा पर पाबंदी लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के साथ-साथ हमलोग किसानों की मदद भी करेंगे।

उन्होंने कहा कि फसल कटाई के वक्त खेतों में फसलों का अवशेष नहीं रहे इसके लिए रोटरी मल्चर, स्ट्राॅ रिपर, स्ट्राॅ बेलर एवं रिपर कम बाइंडर का उपयोग किसानों को करना होगा। इन यंत्रों की खरीद पर राज्य सरकार किसानों को 75 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अतिपिछडे़ समुदाय के किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान दे रही है। अगर जरूरत पड़ी तो अनुदान की राशि बढ़ाई जायेगी। लोगों को अपनी मानसिकता बदलकर फसल कटाई के लिए इन नये यंत्रों को उपयोग में लाना होगा। उन्होंने कहा कि खेतों में फसल अवशेष जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।

फसल अवशेष प्रबंधन को भी जल-जीवन-हरियाली अभियान से जोड़ा जाएगा, इससे जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटा जा सकेगा। उन्होंने कहा कि खेतों में बुआई के लिए हैपी सीडर और जीरो टीलेज मशीन का इस्तेमाल करने से कृषि में पानी के इस्तेमाल में भी कमी आएगी। इसे ठीक ढंग से प्रचारित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोगों को प्रेरित करके ही जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटा जा सकेगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि कृषि फीडर के माध्यम से हर इच्छुक किसानों को काफी किफायती दर पर सिंचाई के लिए बिजली मुहैया कराई जा रही है। इस वर्ष के जुलाई तक जिन किसानों ने आवेदन दिये हैं, उन्हें इस साल जबकि जिन किसानों ने विद्युत कनेक्शन के लिए जुलाई के बाद आवेदन दिया है,उन्हें अगले वर्ष सिंचाई के लिए बिजली का कनेक्शन उपलब्ध कराया जाएगा।

उन्होंने कहा कि झारखंड से अलग होने के बाद बिहार का हरित आवरण मात्र 9 प्रतिशत ही रह गया था। वर्ष 2012 से हरियाली मिशन के तहत पूरे बिहार में 19 करोड़ पौधे लगाये गये, जिसके बाद बिहार का ग्रीन कवर एरिया बढ़कर 15 प्रतिशत हो गया। इसे बढ़ाकर 17 प्रतिशत तक ले जाना है। जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत 8 करोड़ पौधे और लगाये जायेंगे। इस साल एक करोड़ से भी ज्यादा पौधे लगाये जा चुके है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति को यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि जलवायु परिवर्तन के बारे में बिहार के लोग भी सोच रहे हैं लेकिन बहुत लोगों को विकास के साथ-साथ समाज सुधार के काम भी अच्छे नहीं लगते हंै। समाज सुधार के कार्य पर भी सवाल खड़े करते हैं क्योंकि सभी मनुष्य कभी एक विचार के नहीं हो सकते हैं इसलिए इधर-उधर की बात करने वालों के बारे में न सोचकर सार्थक प्रयास करते रहना चाहिए।

कार्यक्रम को उप मुख्यमंत्री श्री सुशील कुमार मोदी, कृषि, पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री डॉ० प्रेम कुमार, कृषि विभाग के सचिव डॉ० एन0 सरवन कुमार ने संबोधित किया।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री के परामर्शी श्री अंजनी कुमार सिंह, मुख्य सचिव श्री दीपक कुमार, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री चंचल कुमार, ग्रामीण विकास विभाग के सचिव श्री अरविन्द कुमार चैधरी, मुख्यमंत्री के सचिव श्री मनीष कुमार वर्मा, बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया के प्रबंध निदेशक श्री अरुण कुमार जोशी, डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय (पूसा,समस्तीपुर) के कुलपति श्री आर0सी0 श्रीवास्तव, बिहार कृषि विश्वविद्यालय (सबौर, भागलपुर) के कुलपति श्री अजय कुमार सिंह, मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी श्री गोपाल सिंह, निदेषक कृषि श्री आदेश तितरमारे सहित वैज्ञानिकगण, कृषि विशेषज्ञ, कृषकगण एवं विभागीय पदाधिकारीगण उपस्थित थे।

संपर्क —

बिहार सूचना केंद्र
नई दिल्ली

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