• July 18, 2021

जब भी चीजें गलत होंगी तो सुप्रीम कोर्ट लोकतंत्र के संरक्षक के रूप में उनके साथ खड़ा रहेगा —- मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमण

जब भी चीजें गलत होंगी तो सुप्रीम कोर्ट लोकतंत्र के संरक्षक के रूप में उनके साथ खड़ा रहेगा —- मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमण

देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमण ने कहा है कि देश के लोग जानते हैं कि जब भी चीजें गलत होंगी तो सुप्रीम कोर्ट लोकतंत्र के संरक्षक के रूप में उनके साथ खड़ा रहेगा। भारतीय न्यायतंत्र लिखित संविधान और इसमें लोगों के अपार विश्वास के कारण अद्वितीय है। संविधान और न्यायपालिका में लोगों की इस आस्था ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट के आदर्श वाक्य ‘यतो धर्मस्ततो जय’ (जहां धर्म, वहां जीत) को जीवंत किया है।

सीजेआई रमण ने भारत-सिंगापुर मध्यस्थता सम्मेलन-2021 में शनिवार को दिए अपने मुख्य संबोधन में कहा, किसी भी समाज में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक समेत कई वजहों के चलते टकराव रोकना संभव नहीं रहा। हालांकि, इन टकरावों के समाधान के लिए एक तंत्र विकसित करने की जरूरत थी। खासतौर पर भारत और कई एशियाई देशों में विवादों के सहयोगात्मक और सौहार्दपूर्ण हल निकालने की लंबी समृद्ध परंपरा रही है।

सीजेआई ने कहा, सौहार्दपूर्ण ढंग से शांति हासिल करना हिंसा से बेहतर है। उन्होंने कहा, हर स्वीकार्य विवाद के समाधान के लिए मध्यस्थता को अनिवार्य पहले कदम के रूप में निर्धारित करने से मध्यस्थता को बढ़ावा मिलेगा और इस दिशा में एक लंबा रास्ता तय होगा। शायद, इस खालीपन को भरने के लिए एक सर्वव्यापक कानून की आवश्यकता है।

सीजेआई रमण ने महाभारत का उदाहरण देते हुए बताया, भगवान कृष्ण ने युद्ध से पहले पांडवों और कौरवों के बीच मध्यस्थता से ही विवाद हल करने का प्रयास किया था। हालांकि, उस मध्यस्थता की विफलता के विनाशकारी परिणाम हुए थे।

साधन संपन्न कराते हैं न्याय में देरी :

सीजेआई ने कहा, न्याय में देरी के लिए लंबित मामलों को दोष देना अतिशयोक्ति है। दरअसल, इसकी मुख्य वजह आरामदेह मुकदमेबाजी है। इस तरह की मुकदमेबाजी के जरिए साधन संपन्न लोग न्याय प्रक्रिया को हताश करते हैं और उसमें देरी लाते हैं। हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि महामारी ने न्यायपालिका की परेशानियां बढ़ाई हैं। वहीं, न्याय में देरी की दूसरी वजह मामलों की भारी तादाद भी हो सकती है।

अदालतों में 4.5 करोड़ लंबित मामलों के आंकड़ों पर जताई आपत्ति

सीजेआई रमण ने अनुमानित आंकड़ों के आधार पर देश की अदालतों में 4.5 करोड़ लंबित मामले बताए जाने पर भी आपत्ति जताते हुए कहा, इसे भारतीय न्यायपालिका की लंबित केसों से निपटने में असमर्थता के रूप में देखा जाता है। उन्होंने इस अतिशयोक्ति और कठोर आकलन करार देते हुए कहा, लंबित शब्द का उपयोग उन सभी मामलों को बताने में किया जाता है, जिनका अभी तक निपटारा नहीं किया गया है।

हालांकि, इसमें यह नहीं बताया जाता है कि इस मामले ने अदालती व्यवस्था में कितना वक्त बिताया। साथ ही अगर कोई मामला एक दिन पहले भी दायर किया गया तो उसे भी लंबित मामलों के आंकड़ों में जोड़ दिया जाता है। ऐसे में यह एक उपयोगी संकेतक नहीं है कि कोई व्यवस्था कितना अच्छा या खराब प्रदर्शन कर रहा है।

लोक अदालतों का काम सराहनीय

मुख्य न्यायाधीश ने देश में कानूनी सहायता कार्यक्रम की सराहना करते हुए उसकी उल्लेखनीय उपलब्धि का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, इसके जरिए 70 फीसदी आबादी की न्याय तक आसान पहुंच सुनिश्चित हुई है। उन्होंने लोक अदालतों जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) तंत्र के जमीनी प्रभाव का भी उल्लेख किया।

सीजेआई ने बताया, लोक अदालतों द्वारा 2019 और 2020 में 78 लाख से ज्यादा मामले निपटाए गए।

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