- January 13, 2015
जनजातीय बच्चों के पोषण पर राष्ट्रीय संगोष्ठी भुवनेश्वर में आयोजित
यह सम्मेलन इस क्षेत्र से जुड़े अग्रणी काम करने वालों, चिकित्सकों, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति विभागों के राज्य एवं जिला अधिकारी, महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, विभिन्न राज्यों के जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के एवं जनजातीय मामले मंत्रालय एवं यूनिसेफ के प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाएगा।
एक साथ मिलकर वे भारत के जनजातीय बच्चों की पोषण स्थिति का जायजा लेंगे, इस बात पर चर्चा करेंगे कि ‘कौन से उपाय कारगर होंगे और कैसे’, विभिन्न राज्यों के विभाग किस प्रकार भारत के जनजातीय बच्चों के अवरूद्ध हो रहे विकास को रोकने के लिए आपस में समन्वय कर सकते हैं, योगदान दे सकते है और एक साथ मिलकर काम कर सकते है।
इस सम्मेलन में आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों के लिए भोजन, पोषाहार, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा सेवाओं को बेहतर बनाने और भारत के जनजातीय बच्चों के पोषण की दिशा में सभी साझीदारों की प्रतिबद्धता को ठोस बनाने के लिए इन राज्यों के लिए एक रूपरेखा भी तैयार की जाएगी। ये राज्य हैं : आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना।
बड़ी संख्या में दीर्घकालिक कुपोषण या विकास अवरूद्धता के मामलों को देखते हुए इस सम्मेलन को आयोजित करने की जरूरत महसूस की गई। उल्लेखनीय है कि पांच वर्ष से कम की उम्र के बच्चों की मृत्यु के एक तिहाई मामलों में कुपोषण या विकास अवरूद्धता की भूमिका होती है।
इस सम्मेलन का केन्द्र बिन्दु संयुक्त रूप से कमियों और अच्छे इलाज की पहचान करना और भोजन, पोषण, स्वास्थ्य तथा स्वच्छता तक जनजातीय बच्चों की पहुंच को बेहतर बनाने के लिए एक रूपरेखा तैयार करने पर होगा, जो उनकी पोषण स्थिति को बेहतर बनाएगी।
सम्मेलन में भाग लेने वाले राष्ट्रीय जनजातीय नीति की क्रियान्वयन चुनौतियों की पहचान करेंगे और जनजातीय उप-योजना बजटों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करेंगे। पारिवारिक भोजन और आजीविका सुरक्षा, समेकित शिशु विकास सेवायें, स्वास्थ्य पहुंच और अनुशंसा, पीने का पानी और स्वच्छता, जनजातीय क्षेत्रों में सेवा आपूर्ति को बेहतर बनाने के लिए योजनाएं एवं बजट और सेवाओं की बेहतरी के लिए शैक्षणिक संस्थान समेत सिविल सोसाइटी की भागीदारी विचार-विमर्श के मुख्य क्षेत्र होंगे।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 (2005-06) के अनुसार, दुनियाभर के विकास अवरूद्ध बच्चों की सबसे ज्यादा संख्या भारत में है और उनमें से ज्यादातर जनजातीय समुदायों के हैं। सम्मेलन यह सुनिश्चित करने के तरीकों की तलाश करेगा कि जनजातीय उप-योजना (टीएसपी) जनजातीय बच्चों की भोजन, पोषण और अन्य विकास से जुड़ी आवश्यकताओं के लिए संसाधनों को जुटाने का एक कारगर और गतिशील माध्यम बन सके।
सम्मेलन में भाग लेने वाले इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि अंत: क्षेत्रीय समन्वय और जनजातीय क्षेत्रों में सेवाओं की निगरानी के लिए समेकित जनजातीय विकास प्राधिकरण (आईटीडीए) को किस प्रकार मजबूत बनाया जाए।
विकास अवरूद्धता (उम्र के हिसाब से बहुत कमी) एक अपरिवर्तनीय और कुपोषण का दीर्घकालिक प्रतिफलन है। पांच वर्ष से कम की उम्र के बच्चों की मृत्यु के एक तिहाई मामलों के लिए यह जिम्मेदार है। विकास अवरूद्धता एक बच्चे की उत्तरजीविता, स्वास्थ्य, विकास, सीखने की क्षमता, स्कूल के प्रदर्शन और वयस्क होने पर उसकी उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 (2005-06) के अनुसार, भारत में दुनियाभर के सबसे ज्यादा विकास अवरूद्ध बच्चे हैं। भारतीय बच्चों में से लगभग 50 फीसदी विकास अवरूद्धता के शिकार है, जिनमें से सबसे ज्यादा संख्या भारत के जनजातीय लोगों के बच्चों की हैं।
सभी अन्य बच्चों की तरह जनजातीय बच्चों में भी विकास अवरूद्धता कई सारी वजहों से होती है, जिनमें पारिवारिक खाद्य सुरक्षा, मात़ृत्व कुपोषण, उम्र के पहले दो वर्षो में निम्न गुणवत्ता का भोजन व देखभाल तथा जल स्वास्थ्य एवं स्वच्छता सेवाओं की निम्न सुविधा शामिल है।
इस सम्मेलन का केन्द्र बिन्दु इस बात पर बल देना है कि विभिन्न राज्यों के विभाग किस प्रकार भारत के जनजातीय बच्चों के अवरूद्ध हो रहे विकास को रोकने के लिए आपस में समन्वय कर सकते हैं, योगदान दे सकते है और एक साथ मिलकर काम कर सकते है।
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों के लिए भोजन, पोषाहार, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा सेवाओं को बेहतर बनाने और भारत के जनजातीय बच्चों के पोषण की दिशा में सभी साझीदारों की प्रतिबद्धता को ठोस बनाने के लिए इन राज्यों के लिए सामूहिक रूप से एक रूपरेखा तैयार करना है।
इस संगोष्ठी में 6 विषयक सत्र होंगे, जिनमें खाद्य एवं आजीविका सुरक्षा; समेकित शिशु विकास सेवाओं की पहुंच; स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच तथा अनुशंसा; जल एवं स्वच्छता सेवायें; जनजातीय बजट एवं योजनाएं और विकास योजनाओं की भूमिकायें पर सत्र शामिल हैं।
प्रत्येक विषयक सत्र के दौरान इस विषय क्षेत्र के एक तकनीकी विशेषज्ञ की सेवायें ली जाएंगी। विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों, चिकित्सकों एवं विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं समेत लगभग 150 प्रतिनिधि इस सम्मेलन में भाग लेंगे।