- May 19, 2017
चैकडैम पानी की सुरक्षा का आधार हैं–राज्यपाल आचार्य देवव्रत
शिमला —————-राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्रदेश में चैकडैम पानी की सुरक्षा का आधार हैं और राज्य सरकार को चैकडैम की महता के दृष्टिगत इस ओर और अधिक ध्यान देते हुए इनका व्यापक स्तर पर निर्माण करवाना चाहिए ताकि सूख गए जल स्रोतों को पुर्नजीवित किया जा सके।
राज्यपाल आज यहां राजकीय डिग्री कालेज, संजौली द्वारा दि सद्गुरू एजुकेशन एण्ड वेल्फेयर एसोसिएशन (सेवा) के सहयोग से ‘भारत की जल संस्कृति’ पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय अंतःविषय सम्मेलन में बोल रहे थे।
इस अवसर पर, राज्यपाल ने कहा कि चैकडैम बहते पानी तथा भूमि कटाव को रोकने में कारगर साबित हुए हैं और इससे बाढ़ पर भी नियंत्रण लाया जा सकता है। इससे भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने में मदद मिलेगी और वन क्षेत्र स्वतः विकसित होंगे तथा पर्यावरण के संरक्षण का अभियान इससे पूरा होगा। उन्होंने कहा कि वन्य प्राणी और किसानों को चैकडैम से पानी मिलेगा तथा प्रदेश में जल का अभाव नहीं रहेगा। इस अभियान को सरकार के सहयोग से सभी गैर सरकारी संगठनों और आम लोगों को जोड़कार पूरा किया जाएगा।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि पानी के प्रति हम लोगों को जितना जागरूक व गंभीर करेंगे उतनी चेतना आएगी। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि राज्य के लोग इस दिशा में सहयोगी बन रहे हैं तथा प्रदेश सरकार भी इस दिशा में गंभीरता से आगे बढ़ रही है। इसके परिणाम शीघ्र ही सामने आएंगे। इस बारे में सरकार की ओर से बड़े स्तर परयोजनाएं लोगों के सहयोग से बनाई जा रही हैं।
उन्होंने कहा कि जल संरक्षण एक चुनौती है और इससे निपटने के लिए विचारों को व्यवहारिक रूप दिये जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि वन्य प्राणियों ने कभी भी प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचाया बल्कि मानव ने ही इसका दुरूपयोग किया है, जिसके लिए हमारा स्वार्थ व भोगवादी संस्कृति अधिक जिम्मेदार है। उन्होंने शिक्षक वर्ग का आह्वान किया कि पढ़ाई के साथ-साथ विद्यार्थियों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक करें। हर व्यक्ति अपनी जिम्मेवारी का निवर्हन कर तथा समाज में मानसिक बदलाव लाकर इस दिशा में भागीदार बन सकता है।
राज्यपाल ने इस अवसर पर, डॉ. हर्षा त्रिवेदी द्वारा लिखी पुस्तक ‘नाटककार दयाप्रकाश सिन्हा’ का विमोचन भी किया।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के कुलपति प्रो. ए.डी.एन बाजपेयी ने इस अवसर पर कहा कि गिरते जल स्तर के वैज्ञानिक मैपिंग के आंकड़े गंभीर हैं और ग्लोबल वार्मिंग चिंता का विषय है। उन्होंने जल संरक्षण के लिए उपयोग की दर को कम करने और जल स्रोतों का संरक्षण करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जल है तो संस्कृति है और सांस्कृतिक विकारों से बचने के लिए जल का संरक्षण जरूरी है।
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के पूर्व कुलपति प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्रा ने इस अवसर पर कहा कि हमारी उच्च परम्पराओं और संस्कृति ने दुनिया को जल का चिंतन दिया।
पंचतत्व की पूजा का विधान हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा और जलीय संस्कृति का उद्भव हमारी संस्कृति से ही हुआ। उन्होंने वेद, पुराण व धार्मिक ग्रंथों का उल्लेख कर जल के विभिन्न रूपों से अवगत करवाया।
इससे पूर्व, राजकीय डिग्री कालेज संजौली, शिमला की प्रधानाचार्य श्रीमती दीक्षा मल्होत्रा ने राज्यपाल का स्वागत किया।