चीनियों को ललकारती —– सुरेश मिश्र

चीनियों को ललकारती —– सुरेश मिश्र

‘नमो हमारा नायक है’ इस पर हमको अभिमान नहीं,
सुन चीनी अब बासठ वाला मेरा हिंदुस्तान नहीं ।

अब परमाणु बमों वाली धमकी से ना डर जाते हम,
डोकलाम में धक्के दे घाती को मार भगाते हम,
कोई हमको छेड़े अब तो नहीं छोड़ते बैरी को,
उसके घर में घुसकर के दुश्मन की बैंड बजाते हैं हम,

वीर शिवा-राणा के वंशज, अब सहते अपमान नहीं।
सुन चीनी अब बासठ वाला, मेरा हिंदुस्तान नहीं ।।

कुत्ता-बिल्ली खाने वाले, हमसे क्या टकराओगे?
चमगादड़ चट जाने वाले, हमसे क्या लड़ पाओगे?
सड़सठ और बहत्तर में तुम नाक रगड़ कर भागे थे,
बटन सरीखी आंखों वाले,कैसे नजर लड़ाओगे,

धोखेबाज,कुटिल, घाती हो, क्या हमको यह ज्ञान नहीं?
सुन चीनी अब बासठ वाला मेरा हिंदुस्तान नहीं ।।

भेज वायरस दुनिया भर में हम करते व्यापार नहीं,
तुम जैसे हद से गिर जाएं, ऐसे भी मक्कार नहीं,
जो अमेरिका मदद किया करता था सारी दुनिया की,
उसकी मदद किए हम,लेकिन जतलाते अधिकार नहीं।

मदद भेज देते हैं ‘फ्री’ में, पर लेते एहसान नहीं।
सुन चीनी अब बासठ वाला मेरा हिंदुस्तान नहीं ।।

उधर चली बारूद,यहां से अब मकरंद न जाएंगे,
हिंदी-चीनी भाई-भाई के छलछंद न गाएंगे,
घाती तेरी पाती पर हम छाती पर चढ़ जाएंगे,
अबकी हम चीनी सामानों पर प्रतिबंध लगाएंगे,

‘तुझको भी घुस कर मारेंगे’ यह केवल फरमान नहीं।
सुन चीनी अब बासठ वाला मेरा हिन्दुस्तान नहीं ।

जो मेरे टुकड़ों पर पलते, उनको पटा रहे हो तुम,
‘नेपाली जनता के रक्षक हो’ ये जता रहे हो तुम,
‘लुच्चे-टुच्चे पाकिस्तानी प्रिय हैं’ बता रहे हो तुम,
तिब्बत-हांगकांग वालों को जीभर सता रहे हो तुम,

‘तेरे आगे पूंछ हिलाएं’ हम कोई इमरान नहीं।
सुन चीनी अब बासठवाला, मेरा हिंदुस्तान नहीं ।

सियाचीन-लद्दाख न तेरे अब्बा की जागीरें हैं,
नजर उठाई जिसने, उसको इकहत्तर में चीरे हैं,
‘बनरघुड़कियो’ से डर जाएं अब वो भारत देश नहीं,
बम-परमाणु -मिसाइल-रॉफेल, अपने पास जखीरे हैं,

मोदी से लड़कर बच पाना, इतना भी आसान नहीं,
सुन बे चीनी बासठवाला, मेरा हिंदुस्तान नहीं ।।

नमो हमारा नायक है, इस पर हमको अभिमान नहीं,
सुन बे चीनी बासठवाला, मेरा हिंदुस्तान नहीं ।।

(मुंबई)

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