ग्रामीण बाजार बेहोश

ग्रामीण बाजार बेहोश

इस साल नई पेशकश को लेकर तेजी दिखा रहे वाहन विनिर्माताओं को पहले ही ग्रामीण बाजार से बिक्री में कमी के संकेत मिलने लगे हैं। उद्योग अनुमान के अनुसार पिछले साल वाहन बिक्री में 18 फीसदी की हिस्सेदारी वाले ग्रामीण बाजार  का हिस्सा इस साल घटकर 15 फीसदी रह गया है।

इसका असर ग्रामीण क्षेत्रों में दोपहिया और ट्रैक्टरों की बिक्री पर सबसे ज्यादा पड़ेगा। यात्री वाहनों पर प्रभाव जरूर होगा लेकिन बिक्री में उतनी गिरावट नहीं आएगी, जितनी दोपहिया, ट्रैक्टरों की बिक्री में आएगी। पिछले कुछ वर्षों में उपभोक्ता कंपनियों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बिक्री बढ़त का एक अहम बाजार बनकर उभरी है। इसकी वजह पिछली सरकार की खुली राजकोषीय नीति और कई फसलों के समर्थन मूल्य में दो अंकों में बढ़ोतरी रही है, जिसने ग्रामीणों की खर्च योग्य आमदनी बढ़ाने में अहम भूमिका अदा की। पिछले दो वर्षों में मॉनसून की कमी के कारण रबी की बुआई में देरी का भी फसलों पर असर हुआ है।

ग्रामीण आमदनी भी घटी है क्योंकि जिंसों के दाम कम हुए हैं। इस वजह से वाहनों की बिक्री पर असर पड़ा है। मारुति सुजूकी के चेयरमैन आर सी भार्गव कहते हैं कि कमजोर मॉनसून के चलते ग्रामीण बाजार में बिक्री निश्चित रूप से घटेगी, ऐसा जरूरी नहीं। मगर कृषि संकट के प्रत्येक संकेत के साथ ग्रामीण बिक्री सुस्त पड़ जाती है। पिछले वित्त वर्ष में अप्रैल से सितंबर के दौरान मारुति की ग्रामीण बिक्री 25 फीसदी बढ़ी थी, जो इस साल 10 फीसदी रह गई है। पिछले सात साल में कंपनी ने ग्रामीण क्षेत्रों में जोर दिया, जिससे उसकी बिक्री 3 फीसदी से बढ़कर 34 फीसदी हो गई।

सायम के महानिदेशक विष्णु माथुर ने कहा कि एक तिहाई छोटी कारें गांवों में बिकती हैं। कॉॅम्पैक्ट सिडैन और यूटिलिटी वाहन भी खासे बिकते हैं। आधी मोटरसाइकिलें ग्रामीण बाजार में ही बिकती हैं। अगर ये बाजार बिगड़ा तो उद्योग के लिए मुश्किल होगी। हुंडई की बिक्री में ग्रामीण बाजार का योगदान 21 फीसदी है। कंपनी का कहना है कि शहरी और ग्रामीण दोनों बाजारों में उसकी बिक्री 14 फीसदी की दर से बढ़ रही है। कंपनी के वरिष्ठï उपाध्यक्ष और बिक्री प्रमुख राकेश श्रीवास्तव ने कहा कि हमारे आउटलेट पिछले साल 320 थे, जो अब 333 हो गए हैं।

गांव में वाहन बिक्री में इजाफा होने की वजह समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के अलावा, जमीनों की कीमतों में तेजी और मनरेगा जैसी योजनाएं भी रही हैं। कार्यकारी निदेशक आर एस कलसी कहते हैं कि चिंता जरूर है मगर यह दोपहिया उद्योग के लिए ज्यादा है। ग्रामीण क्षेत्र में तीन तरह के खरीदार हैं। पहला-व्यक्ति, दूसरा बड़े किसान और तीसरा छोटे किसान। पिछले दो साल से छोटे किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, जिससे ग्रामीण बाजार पर असर पड़ा है।

ट्रैक्टरों की बिक्री पर ज्यादा असर है और यह पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी से अधिक घटी है। पिछले 20 साल में ट्रैक्टर बाजार 7 फीसदी की दर से बढ़ा है, जबकि पिछले पांच साल में 16 फीसदी। मगर ज्यादातर कंपनियों का मानना है कि आने वाले महीनों में उनकी बिक्री बढ़ सकती है क्योंकि सरकार ने फसलों के समर्थन मूल्य में इजाफा किया है।

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