- July 22, 2016
गुंडों के शरण में समर्पित
गुजरात के ऊना , हरियाणा के मिर्चपुर घटना असम्भव !!
निचले तबके में स्वाभिमान जगाने वाले और जातियों के कृतघ्नता से मुक्ति दिलाने वाले मात्र एक ही व्यक्ति ,श्री लालू प्रसाद का प्रादुर्भाव हुआ लेकिन अंत में इन्होंने भी जातीयता नामक धार्मिक कुकृतियों के मकडजाल में फंस कर रह गए।
फंस इसीलिए गए की उन्होंने भी सही रास्ते पर चलने के बजाय विकृत रास्ते पर चलनेवाले ब्राह्मणवादियों का टोटका पकड़ लिया ।
राजनीतिक क्षेत्र में पदार्पण हुआ तो मुझे ख़ुशी हुई की चलो, एक नेता देश को मिला। लेकिन मकड़जाल में फंसनेवाले खुद शहंशाह बन जनता को उपेक्षित किया और बिहार जैसे बड़े राज्य को समस्या समाधान के बजाय समस्याओं से रंगीन कर दिया।
इस बार लोगों ने उन्हें इसलिए अपना प्रतिनिधित्व के रूप में चयनित किया की लंबे वनवास के बाद परिवर्तन हुआ होगा ! लेकिन सत्ता में आने के बाद उनमें संभवत: ही कोई परिवर्तन हुआ है ! यह दैनिक दिनचर्या में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए बाधक है।
अगर,श्री लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान , नीतीश कुमार , मायावती में सामंजस्य स्थापित हुआ होता तो आज गुजरात के ऊना , हरियाणा के मिर्चपुर घटना असम्भव था।
सबसे बडे विभेदक के रूप श्री लालू प्रसाद यादव उभड़े , जो कांग्रेस की नीतियों का अनुशरण कर एक मसीहा बनने से वंचित रह गए। जिसके कारण वे राजनीतिक काबिलियत के बजाय दुर्बलता के रुप में मशहूर हो गये।जिस समाजिक नेतृत्व के रुप में उभडे वह सही में, प्रधानमंत्री के पद तक पहूंचने के लिये काफी था। लेकिन ” मेरे किस्मत में तू नही शायद————-!!
मनुवादियों के विरुद्ध छिडे आंदोलन का ही परिणाम है की आज पिछडे वर्गों के एक बडे तबका के मजबूतीकरण के कारण ही श्री नरेंद्र दामोदर मोदी जैसे पिछड़े को आरएसएस जैसे मनुवादियों ने समर्थन किया है क्योंकि वह मजबूर है।
मायावती ! भले ही हाथियों के स्तूप खड़े किये हों लेकिन गुंडों पर लगाम लगाने से पीछे नहीं हटी। जैसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार।
वहीँ श्री लालू प्रसाद और श्री मुलायम सिंह यादव ने गुंडों के शरण में समर्पित हो गए, जिसके कारण इनलोगों के दलितों को कुचलने की नीति से मुँह काला है।
फिर जनता ने इन दोनों को सुधरने के लिए जो स्वर्णिम अवसर दिया है। उसे गंवाने में तनिक संकोच नहीं कर रहे ?
इसलिए मनुवादियों पर हायतौबा मचाने के लिए इनलोगों का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।