गांधी जयंती पर विशेष ——— रामकिशोर दयाराम पंवार

गांधी जयंती पर विशेष ———  रामकिशोर दयाराम पंवार

सत्ता में रहे या न रहे कांग्रेस ने गांधी जी को भूला दिया
बैतूल आया गांधी परिवार सत्ता और संगठन को पता नहीं !

——– रामकिशोर दयाराम पंवार रोंढावाला

अखण्ड भारत का केन्द्र बिन्दू कहा जाने वाला सीपीएण्ड बरार स्टेट का बैतूल जो वर्तमान में मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र की सीमा को चिन्हीत करता है आज अपनी पहचान को इतिहास के पन्नो से बाहर नहीं निकाल सका है।

जब 2 अक्टुबर 2019 को पूरा देश गांधी जी की 150 वी जयंती मनाएगा उस समय बैतूल जिले के तीन चिन्हीत स्थान अपने यहां पर गांधी परिवार के आने के अवशेषो की स्मृति में गांधी परिवार के प्रति सरकार और संगठन की बेरूखी पर आंसू बहाते नज़र आएगें। बैतूल के इतिहास के पन्नो पर ऐसा लिखा गया है कि 19 वी शताब्दी के प्रथम एवं द्धितीय चरण में गांधी परिवार बैतूल जिले में आया था।

बैतूल के इतिहासकार आज तक सच को उजागर करने का साहस नहीं जुटा पाए है कि क्या गांधी जी 3 दिनो तक नज़रबंद थे या अज्ञातवाश में !

रानी विक्टोरिया का आना
गांधी जी का नज़रबंद होना

1933 में हरिजन उद्धार के लिए निकले गांधी जी जिले के वरिष्ठ एक मात्र सौ साल पूरे कर चुके स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरदीचंद दीपचंद गोठी के चक्कर रोड़ स्थित आम की बगिया में एक रात्री विश्राम किए थे। उसके बाद गांधी जी खेड़ी की ओर निकले और पुण्य सलिला माँ सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे शिवधाम बारहलिंग में 3 दिनो तक के लिए नज़रबद हो गए! गांधी जी के बारहलिंग पहुंचने का जिक्र पढऩे को मिलता है लेकिन गांधी के नज़रबंद होने का जिक्र नहीं मिलता जिसके पीछे की मुख्य वजह यह थी कि गोरी सरकार नहीं चाहती थी कि बैतूल में गांधी जी को देखने की इच्छा लेकर बैतूल तक पहुंची बिट्रेन की रानी विक्टोरियां के बैतूल आने की किसी को भनक तक लगे।

अग्रेंज रानी विक्टोरियां को खेड़ी वाले रास्ते से न ले जाकर सावंगा – सातबड़ के रास्ते से लेकर रानी पठार पहुंचे। रानी पठार एक मात्र वह स्थान है जहां से दूरबीन से रानी ने गांधी जी को ताप्ती नदी के किनारे देखा था। आज भी जंगली रास्तो से बारहलिंग जाने वाले मार्ग पर बैतूल से हाथियों का लावा लश्कर लेकर पहुंची रानी विक्टोरियां गुजरी थी। जिले के इतिहास से अछूती रानी विक्टोरियां को समर्पित यादो में तीन प्रमुख है। जिन रास्तो से उनका लावा लश्कर गुजरा उस एक स्थान को हाथीखुर कहा जाता है जो मूलत: प्राचिन शंखलीपी है।

अज्ञानतावश ग्रामिण पत्थरो पर बने विन्ह चिन्हो को हाथियों के पांव के निशान समझते है जबकि हाथियों के पांव के निशान पत्थरो पर नहीं बन पाते है। जिस पठार / पहाड़ी से रानी विक्टोरियां ने गांधी जी के दर्शन किए थे उस पहाड़ी का नाम रानी पठार है। समीप ही एक झरना को रानी विक्टोरिया का नाम देकर उसे रानी विक्टोरियां फाल के रूप में पहचान मिली।

गांधी जी के करीबी बैतूल जिले के लोग
स्वर्गीय बिहारीलाल पटेल , बिरदीचंद दीपचंद गोठी

जानकार ऐसा मानते है कि गांधी जी मुलताई होते बैतूल और खेड़ी होते हुए निकले थे। इतिहास के पन्नो में छपी कुछ कहानियों एवं किस्सो के अनुसार हरिजन उद्धार के लिए निकले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी प्रभात पटट्न के स्वर्गीय बिहारीलाल पटेल, बैतूल के तीन चचेरे भाईयों स्वर्गीय दीपचंद गोठी, बिरदीचंद गोठी, एवं स्वर्गीय गोकूलचंद गोठी का योगदान पढऩे को मिलता है।

इतिहास के पन्नो में जिक्र इस बात का भी है कि गांधी जी सातलदेही की स्वर्गीय मनकी बाई एवं स्वर्गीय मोहकम सिंह के परिवार से मिलने उनके घर तक पहुंचे थे। हालांकि कुछ लोग इन सब बातो को हवा में उड़ाने का प्रयास करने में लगे हुए है। गांधी जी को केवल कुछ परिवारो के कमरो तक सिमित करने वालो ने गांधी जी के बैतूल जिले के जंगल सत्याग्रह के नेताओ के घरो तक या उनके करीब तक पहुंचने को नज़रअंदाज किया लेकिन गांधी जी के आह्वान पर जंगल सत्याग्रह के नायक स्वर्गीय सरदार स्वर्गीय विष्णु सिंह, गंजन सिंह, एवं स्वर्गीय बीरसा की शहादत एवं स्वर्गीय मनकी बाई एवं मोहकम सिंह के देश प्रेम को नहीं भूला जा सकता। गांधी जी को लेकर संघी विचारको ने गांधी के चरित्र हनन को जिस ढंग से कल से लेकर आत तक परोसा है उसे देख कर या पढ़ कर गांधी चरित्र हत्या से बैतूल भी नहीं बच सका। गांधी जी बारहलिंग पहुंचे लेकिन संघी विचारको का ऐसा मानना था कि वे मिस मैरी से मिलने गए। पुण्य सलिला माँ सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के किनारे किसी भी अग्रेंज या अग्रेंजी महिला के ध्यानलीन होने या जप – तप करने का कोई उल्लेख नहीं है लेकिन उसके बावजूद तीन दिनो तक बारहलिंग में नज़रबंद रहे गांधी जी को मिस मैरी से जोड़ कर बैतूल के इतिहास के संग छेड़छाड़ करने की कूचेष्टा की गई।

12 साल पहले कस्तुरबा गांधी पहुंची
कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन धनोरा में

बैतूल के इतिहास के पन्नो पर कांग्रेस के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दुसरे प्रांतीय अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जीवन संगनी स्वर्गीय श्रीमति कस्तुरबा गांधी ने 1922 में पुण्य सलिला माँ सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे पारसडोह के समीप बसे गांव धनोरा पहुंची थी। स्वर्गीय भिलाजी धोटे उस समय इस गांव के प्रमुख कांग्रेसी कार्यकत्र्ता थे जिनके जिम्मे कांग्रेस का पूरा अधिवेशन / आन्दोलन संचालित था। स्वर्गीय धोटे की तीसरी पीढ़ी में उनके सदस्या श्रीमति कल्पना धोटे को आज भी इस बात का गर्व है कि उसके घर के सामने मैदान में कांग्रेस का वह सम्मेलन हुआ था तथा बा उनके घर आई थी। बा ने यहां पर नारा दिया था छोटा परिवार – सुखी परिवार , हम दो हमारे दो परिवार नियोजन के सिद्धांत पर 97 साल से अटल इस गांव के कांग्रेसी कार्यकत्र्ता स्वर्गीय भिल्या जी के पुत्र भदया जी धोटे की पत्नि श्रीमति यमुना बाई बताती है कि उसके सास- ससुर ने कांग्रेस के सिपाही के रूप में देश की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी की जीवन संगनी श्रीमति कस्तूरबा गांधी के साथ भाग लिया था। सबसे पहले स्वर्गीय भिलाजी धोटे ने परिवार नियोजन का सिद्घांत अपनाया उसके बाद उसके बेटे भदया जी धोटे तथा अब उसी परिवार की तीसरी पीढ़ी की सदस्या श्रीमति कल्पना धोटे छोटा परिवार सुखी परिवार को अपना चुकी है।

सत्ता एवं सगंठन में रहने वाली कांग्रेस भूली
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी परिवार से जुड़ी स्मृतियों से

कांग्रेस देश की आजादी के बाद सत्ता में आने के साठ साल बाद जब – जब सत्ता से अंदर – बाहर हुई कांग्रेस बैतूल जिले में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं उनकी जीवन संगनी से जुड़ी स्मृतियों को सहेज रखने के बजाय उनसे अपनी दूरियां बना रखी। इसे महज दुर्रभाग्य समझा जाए कि बैतूल जिले का नामचीन कांग्रेसी या कोई प्रदेश सरकार का मंत्री – संत्री उस गावं धनोरा पहुंचा हो जहां पर गांधी जी की जीवन संगनी ने कांग्रेस के अधिवेशन को सम्बोधित किया था। जिस गांव ने आज भी 97 साल बाद परिवार नियोजन अपनाया है उस गांव को एक प्रमाण पत्र तो दूर उसकी खैर – $खबर तक लेनी की उसे सुध नहीं रही।

जिला प्रशासन ने शर्मसार किया
बारहलिंग को बारासगा लिखा

मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग , स्वराज संचनालय एवं जिला प्रशासन ने एक बोर्ड लगाया जिसमें यह बताने का प्रयास किया गया कि गांधी जी 30 नवम्बर 1933 को बारसिंगा आए थे। बैतूल जिले के मानचित्र में बारासिंगा नामक की कोई जगह ही नहीं है और जिला प्रशासन ने आंख मूंद कर गांधी जी 150 जयंती पर पूरे बैतूल जिले को ही नहीं देश को दिग्भ्रमित करने का काम किया।

इस बोर्ड पर जानकारी दी गई कि मिस मैरी एक आदिवासी बालिका के साथ एक झोपड़ी में रहती थी। बारहलिंग में कुल तीन मंदिर है जिसमें एक मंदिर मौनी बाबा का बनाया हुआ जिसके पीछे प्राचिन ताप्ती मंदिर है। एक काले पत्थरो का सूरगांव के स्वर्गीय सद्या पटेल के द्वारा निर्मित शिव मंदिर था जो चंदोरा डेम फूटने के बाद बह गया।

तीसरा मंदिर राम – लक्ष्मण सीता मंदिर है जो सावंगा के गुणवंत सिंह चौहान के परिवार के ट्रस्ट द्वारा संचालित है। 1930 में बारहलिंग में ऐसा कोई मंदिर नही था जिसके मंहत रंगराव महाराज थे ! रंगराव महाराज भगवान श्रीराम द्वारा भगवान विश्वकर्मा की मदद से बने ताप्ती नदी के किनारे बारह ज्योतिलिंगो के मंहत थे। जहां तक उपलब्ध जानकारी के रंगराव महाराज के बाद संत गैबीदास महाराज आए थे। रंगराव बाबा के बारे में सियार के उनके एक अनुयायी बताते है कि उन्हे अग्रेंजो से नफरत थी वे अग्रेंजो को अपनी झोपड़ी में फटकने तक नहीं देते थे।

1930 में कोई मंदिर ही नही था
मिस मैरी का जिक्र नहीं सुनने को मिलता

गांधी जी की 150 वी जयंती पर गांधी जी को लेकर जिला प्रशासन एवं संस्कृति विभाग जिले को शर्मसार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है। सियार , बोथी, सिमोरी, ठेसका ऐसे गांव है जहां पर रहने वाले अधिकांश बुर्जग कहते है कि बारहलिंग में ऐसा मंदिर वहां पर मौजूद होना बेहद चौकान्ने वाली बात होगी जिसमें दलितो को प्रवेश निषेद्य नहीं था। 1930 में बारहलिंग में किसी भी मंदिर के प्रमाण नहीं मिलते है सिर्फ सद्या पटेल के शिव मंदिर को छोड़ कर। जिला प्रशासन द्वारा उपलब्ध करवाई गई जानकारी में बारालिंगा का जिक्र है लेकिन जिले की प्राचिन एवं पुण्य सलिला माँ सूर्यपुत्री ताप्ती का कोई जिक्र तक नहीं किया गया। बैतूल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय दीपचंद गोठी एवं राजेन्द्र सिंह व्यौहार का जिक्र आया है जिसके अनुसार उन्होने ही गांधी जी को बताया था कि यहां पर मंदिर में दलितो को प्रवेश दिया जाता है।

हालाकि गांधी जी दलित उद्धार के लिए निकले थे। इसी यात्रा के पूर्व भी कस्तुरबा गांधी बाबा 1922 में बैतूल जिले में आ चुकी थी।

गांधी की 150 जयंती पर कहने को तो जिला प्रशासन अपने आप को इतिहास के पन्नो से बाहर नहीं निकाल सका है लेकिन वह अधिकांश ऐसी जानकारी परोस रहा है जो जनसंघी एवं अग्रेंजी सिपाह सलाहकारो द्वारा लीपीबद्ध की गई थी। जिले में एक भी जिले का मूल रहवासी इतिहासकार न होने का दंश यह है कि बैतूल आज तक बदनूर के दंश से उबर नहीं सका है।

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