गाँव में पहुँचा कोरोना,खतरे से सावधान! —सज्जाद हैदर (वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक)

गाँव में पहुँचा कोरोना,खतरे से सावधान! —सज्जाद हैदर (वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक)

देश के सभी नागरिकों को बहुत सावधान रहने की जरूरत है। खास करके उन नागरिकों को जोकि ग्रामीण इलोकों में रहते हैं। क्योंकि शहरी इलाका तो कोरोना की चपेट में आ चुका लेकिन देश में सुरक्षित समझा जाने वाला इलाका जिसको ग्रामीण भारत कहते हैं। वहाँ भी कोरोना ने अपनी दस्तक दे दी है। ऐसी सूचना बहुत ही खतरनाक है। शहरी इलाकों को देखकर ग्रामीण इलाकों को सीख ले लेनी चाहिए। किसी भी तरह की लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। अचानक तेजी के साथ बड़ा खतरा दस्तक दे सकता है। इसलिए समय रहते बहुत सावधानी की जरूरत है। क्योंकि कोरोना से बचने का एक मात्र उपाय है वह है सावधानी। आज के समय में प्रत्येक सेकेण्ड सचेत एवं सावधान रहने की जरुरत है। तनिक भी चूक एवं असावधानी बहुत ही भारी पड़ सकती है। क्योंकि देश का स्वास्थ ढ़ाँचा पूरी तरह से हाँफ रहा है।
ऑक्सीजन से लेकर दवाई तक के लिए मरीजों एवं परिजनों को जिस प्रकार से संघर्ष करना पड़ रहा है उससे देश का प्रत्येक नागरिक अवगत है। जिस प्रकार से मौतें हो रहीं हैं उसको छिपाया नहीं जा सकता। शमशान से लेकर कब्रिस्तान तक की स्थिति सबके सामने है। हद तो यहाँ तक हो गई की गंगा नदी में शवों को प्रवाहित करने का सिलसिला भी चल पड़ा है जिस पर न्यायालय एवं प्रशासन ने अपनी निगाहें जमा दीं। हाल के दिनों में शहरों में कोरोना संक्रमण के मामले जिस तेज़ी के साथ बढ़े हैं। वह सबके सामने है। लेकिन अब कोरोना वायरस तेज़ी से गांवों में भी अपने पैर पसार रहा है जहां शहरों की अपेक्षा स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति पहले से ही बदहाल है। महामारी की दूसरी लहर ने किस कदर कहर बरपाया है उसे शब्दों के माध्यम से कह पाना अत्यंत मुश्किल है। संक्रमण के मामले किस तेज़ी से बढ़े हैं इसे इस बात से समझा जा सकता है कि देश के बड़े शहरों में शुमार राजधानी दिल्ली जैसी जगहों पर अस्तपालों में मरीज़ों की संख्या अचानक से बढ़ गई। मेडिकल ऑक्सीजन की कमी और अस्पतालों में बेड की कमी जैसी समस्याएं पल भर में अपना मुँह बाए हुए आकर खड़ी हो गईँ। लखनऊ कानपुर मुम्बई में कोरोना ने किस कदर तांडव मचाया है वह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। हद तो यह हो गई कि अस्पतालों में बेड मिलना मुश्किल हो गया। दवाई एवं ऑक्सीजन तक की पहुँच होना किसी युद्ध से कम नहीं है। अगर किसी भी मरीज की तबियत अधिक सीरियस होती है और उसे वेंटीलेटर जैसी तकनीकिक सुविधा की जरूरत पड़ जाती है तो यमराज खुली हुई आँखों से साक्षात दिखाई देते हैं।
स्वास्थ सिस्टम गरीब एवं मध्यम जनता की पहुँच से बाहर होता हुआ दिखाई दे रहा है। देश की किसी भी बंद गलियों में जाकर वहाँ कि निवासियों से उनकी वास्तविकता का आँकलन आसानी के साथ किया जा सकता है। शहरी इलाके के गरीब एवं मजदूर परिवारों से उनकी हकीकत को आसानी के साथ परखा जा सकता है। शमशानों एवं कब्रिस्तानों में जाकर वहाँ पर शवों के साथ आने वाले परिजनों से अस्पतालों की सुविधाएं एवं संसधानों के बारे में आसानी के साथ हकीकत का पता लगाया जा सकता है। अस्पतालों की जमीनी हकीकत क्या है उसे आसानी के साथ समझा जा सकता है। सत्य बहुत कड़ुआ है। लेकिन सत्य यही है गरीब एवं मध्यम वर्ग के व्यक्ति के पास न तो पैसा है और न ही उसके पास संसाधन हैं वह करे तो क्या करे न वह प्राईवेट अस्पतालों में जाकर मंहगा इलाज कर सकता है और न ही सरकारी अस्पातलों में जीवन बचाने के लिए जिम्मेदारी लेने वाला कोई है। सरकारी अस्पतालों की स्थिति सबके सामने है। इस घातक महामारी ने दवाईयों और ऑक्सीजन के आभाव ने पूरी आबादी को पूरी तरह से झकझोर दिया है।
कोरोना की पहली लहर के दौरान पीक आने से पहले ग्रामीण इलाक़ों में संक्रमण के नए मामले देखने में आए थे लेकिन समय रहते इन पर अंकुश लगाया जा सका था। कोरोना की पहली लहर के दौरान कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन लगाया था लेकिन संक्रमण फैलने से रोकने के लिए लागू किए दिशानिर्देशों का उल्लंघन तब हुआ जब भारी संख्या में मज़दूरों ने शहरों से अपने गांवों की ओर पलायन करना आरंभ कर दिया था। अगर स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाक़ों में स्वास्थ्य व्यवस्था उतनी दुरुस्त नहीं है। अगर अस्पातालों की बात करें तो देश के किसी भी प्रदेश में आबादी के अनुपात में अस्पतालों की व्यवस्था न के बराबर है। नेशनल हेल्थ सिस्टम की रिपोर्ट तो चौकाने वाली है। क्योंकि देश की इतनी बड़ी आबादी अगर बीमारी के कगार पर पहुँच जाती है तो उसे कैसे बचाया जा सकता है इसका उत्तर किसी के भी पास नहीं है। क्योंकि देश की आबादी के अनुसार सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था ऊँट के मुँह का जीरा मात्र है। जब अस्पताल ही नहीं है तो बेड,ऑक्सीजन,दवाई तथा वेंटीलेटर जैसी सुविधाओं की कल्पना करना ही अपने आपमें बेईमानी है। खास करके शहरी इलाकों में कोरोना का भयावह रूप सबके सामने है। जहाँ सरकारी के साथ-साथ प्राईवेट अस्पातालों की भी भारी-भरकम व्यवस्था होती है। लेकिन कोरोना के तांडव के सामने शहरी इलाकों की सभी व्यवस्थाएं अपने आपमें बौनी साबित हुई। शहरों से कोरोना का तांडव अभी समाप्त नहीं हुआ। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी तथा अपने परिवार तथा समाज की सुरक्षा के प्रति सजग रहने की जरूरत है। भारत ऐसा देश है जहाँ शहरों की तुलना में अधिकतर आबादी ग्रामीण भारत में निवास करती है।
अतः खासकरके देश के प्रत्येक ग्रामीणों को कोरोना के नियम का कड़ाई के साथ पालन करना चाहिए क्योंकि ग्रामीण इलाकों में पुलिस बल भी प्रयाप्त मात्रा में नहीं होता जोकि प्रत्येक ग्राम में जाकर प्रति व्यक्ति को कोरोना के नियम तथा उचित दूरी के लिए हर पल नजर गड़ाए रखे। इसलिए प्रत्येक ग्रामीणों को स्वयं ही अपनी तथा अपने ग्राम की रक्षा के लिए उचित दूरी तरह कोरोना गाईड लाईन तथा साफ-सफाई जैसी व्यवस्थाओं को स्वयं ही लागू करना चाहिए। क्योंकि जबतक हम खुद से अपने आप पर अंकुश नहीं लगाएंगें तबतक कोई भी दूसरा व्यक्ति हम पर अंकुश पूरी तरह से नहीं लगा सकता। इसलिए समस्त भारत के खास करके ग्रामीण इलाकों को खुद से अपने आप पर अंकुश लगाने की सख्त जरूरत है। अन्यथा तनिक भी लापरवाही भारी तबाही मचा सकती है। क्योंकि ग्रामीण भारत में चिकित्सा की व्यवस्था का ढ़ाँचा किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। इसलिए अपने आपको एक जिम्मेदार नागरिक की तरह से अपनी तथा अपने ग्राम की रक्षा के लिए हर वह प्रयास करने चाहिए जिससे कि इस महामारी से बचा जा सके।

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