- May 7, 2019
खोखली राजनीति और जनता का आक्रोश ——— सुरेश हिन्दुस्थानी
भारतीय राजनीति और राजनेताओं के प्रति आम जनता की भड़ास का प्रकट होना निश्चित रुप से यह प्रमाणित करता है कि राजनेताओं के बयानों की दिशा और दशा किसी भी प्रकार से भारत के उज्जवल भविष्य का दृश्य प्रदर्शित नहीं करती।
दिल्ली की जनता को भविष्य के स्वर्णिम सपने दिखाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के प्रति आम जनता के बीच के एक व्यक्ति द्वारा आक्रोश प्रकट करना कहीं न कहीं इस बात का संकेत करता है कि दिल्ली की सरकार जनता के वादों पर खरी नहीं उतर सकी।
जनता का आम आदमी पार्टी के प्रति आक्रोश प्रकट करना संभवत: इसी बात को इंगित करता हुआ दिखाई देता है कि पांच वर्ष पूर्व जिस परेशानी से दिल्ली की जनता प्रताडि़त हो रही थी, वह आज भी विद्यमान है। दिल्ली की जनता के मन में अरविन्द केजरीवाल ने जिस प्रकार की आस जगाई थी, वह आज तक पूरी नहीं हो सकी।
दिल्ली की जनता ने अरविन्द केजरीवाल को इसलिए भी स्वीकार किया कि वह समाजसेवी अण्णा हजारे के उस आंदोलन की उपज थे, जिसके कारण पूरे देश में भ्रष्टाचार के विरोध में वातावरण तैयार हुआ। लेकिन अण्णा हजारे के इस राजनीतिक शिष्य ने जनता के मंसूबों पर पूरी तरह से पानी फेर दिया। यह बात सही है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी और कोई भी राजनेता जनता की अपेक्षाओं का कभी पूरा नहीं कर सकता। क्योंकि एक अपेक्षा पूरी होती है तो फिर एक नई अपेक्षा का प्राकट्य हो जाता है।
इसलिए कहा जा सकता है कि अपेक्षाएं अनंत हैं। लेकिन वाह रे देश के राजनेता, वह जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने का ऐसे वादा करते हैं कि जैसे उनके पास कोई अल्लादीन का चिराग हो। राजनीतिक दलों द्वारा अल्लादीन के चिराग का सपना दिखाकर समस्याओं से मुक्ति का वादा कर दिया जाता है, लेकिन यह सच है कि सरकार सारी जनता की समस्याओं का निदान नहीं कर सकती।
दिल्ली की राजनीति में धूमकेतु की तरह प्रकट हुई आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविन्द केजरीवाल के प्रति जनता का गुस्सा इस चरम पर पहुंच गया है कि लोग उसे मारने के लिए तैयार हो गए हैं। वास्तव में जनता द्वारा इस तरह का व्यवहार भारतीय संस्कृति के पैमाने पर खरा नहीं उतरता और न ही इस प्रकार का कृत्य किसी भी दृष्टि से उचित ठहराया जा सकता है, लेकिन गंभीर सवाल यह है कि भारतीय राजनेताओं के प्रति जनता उद्वेलित क्यों होती जा रही है? इस प्रकार के सवाल पर कोई भी राजनीतिक दल विचार करने के लिए तैयार नहीं हैं।
आज भारत के राजनीतिक दलों की एक मान्य परंपरा बन चुकी है कि हमारा राजनीतिक दल ही सबसे श्रेष्ठ है, बाकी सब खराब हैं। ऐसा लगता है कि इस प्रकार की मानसिकता के चलते ही दुर्भावना का वातावरण निर्मित हो रहा है। दूसरी सबसे बड़ी बात यह भी है कि जनता के समक्ष भारतीय राजनेताओं द्वारा लुभावने वादे तो किए जाते हैं, लेकिन जब उनको पूरा करने का जिम्मा आता है तो दूसरे पर आरोप की राजनीति प्रारंभ हो जाती है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की अवस्था भी लगभग ऐसी ही है, जिसमें उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान जनता के समक्ष बड़े-बड़क वादे किए थे, लेकिन जब उनकी सरकार बनी तब उन वादों को पूरा करने के बजाय वे केवल अपने आपको भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में उभारने का ही प्रयास करते रहे। जनता भी टका सा देखती रह गई।
यह आम आदमी पार्टी की वास्तविकता ही है कि जिस भ्रष्टाचार को मिटाना उनकी पार्टी का मूल ध्येय था, उसकी परिधि में उसकी पार्टी के नेता भी गोता लगाते दिखाई दिए। आज उसके कई नेता भ्रष्ट आचरण करने की संहिता के दायरे में हैं। सबसे गंभीर बात यह भी है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल उनका अप्रत्यक्ष रुप से बचाव ही करते रहे। जिनका बचाव नहीं किया वे उनको छोड़कर ही चले गए या छोडऩे की मुद्रा में हैं। हो सकता है कि यही जनता के गुस्से का एक मात्र कारण हो।
आम आदमी पार्टी के नेताओं की यह फितरत सी हो गई है कि उनके प्रति कोई भी आक्रोश प्रकट करे, उन्हें इसके पीछे मात्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ही दिखाई देते हैं। ऐसा ही एक मामला अभी कुछ दिन पूर्व भी हुआ। हालांकि वह आम आदमी पार्टी से संबंधित नहीं है, लेकिन पीटने का आरोप लगा भाजपा पर।
गुजरात में नए नए राजनेता बने हार्दिक पटेल को एक आमसभा के दौरान एक पीडि़त व्यक्ति ने तमाचा जड़ दिया। इसके बाद हार्दिक पटेल ने सीधे भाजपा पर आरोप लगा दिया, लेकिन बाद में इस घटना का सत्य भी सामने आ गया, जिसमें भाजपा का कोई हाथ नहीं था। इससे संदेश निकलता है कि राजनेता अपने प्रति उत्पन्न हो रहे आक्रोश का परीक्षण करें, फिर उन्हें यह समझ में आ जाएगा कि वास्तव में गलती कहां है।
आज राजनेता कुछ भी कहे। समस्याओं के लिए किसी को भी जिम्मेदार ठहराए, लेकिन सत्य यही है कि मात्र जनता ही सत्तर साल से समस्याओं का सामना कर रही है। ऐसे में जनता से किए जाने वाले झूठे वादे भी सच जैसे लगने लगते हैं और जनता भ्रमित हो जाती है।
सत्ता केन्द्रित किए जाने वाले वादे खोखली राजनीति का उदाहरण मात्र हैं। ऐसे वादों के चलते ही जनता आक्रोशित होती है, जिसके कारण जनता का गुस्सा राजनेताओं पर निकलता है।
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