• February 20, 2016

खुद को देखें, फिर दूसरों को – डॉ. दीपक आचार्य

खुद को देखें, फिर दूसरों को – डॉ. दीपक आचार्य

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 बिना मांगे राय और उलाहना देने वालों, बुराई और निन्दा करने वालों, हर काम में अपनी टांग फँसाने वालों से लेकर आधी रोटी में दाल खाने वालों की वर्तमान युग में भरमार है। कोई सा क्षेत्र हो, कोई सा काम हो, ये दखल किए बगैर नहीं रहते। अनधिकृत हस्तक्षेप करने में इन्हें जो आनंद आता है उतना और कहीं नहीं आ सकता।

इन लोगों की जिन्दगी का आधे से अधिक भाग दूसरों की निन्दा और बुराई में ही व्यतीत हो जाता है और इस अवधि में ये अपना अमूल्य समय गँवा कर इतना अधिक नुकसान कर लेते हैं, इतने अधिक पापों भरी गठरी को अपने खाते जमा कर लिया करते हैं कि इसका हिसाब कोई नहीं लगा सकता। इनका हिसाब चित्रगुप्त ही रख सकते हैं।

अधिकांश लोग इस श्रेणी में शामिल किए जाने लायक हैं जो ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ के वाक्य को अपने सम्पूर्ण जीवन का महानतम ध्येय और लक्ष्य मानकर चलते हैं।

सच्चे और अच्छे, सज्जन और निष्ठावान लोगों के पास इतनी फुरसत ही नहीं होती कि वे दूसरों के बारे में फालतू का कुछ सोचे, समझें और कहें। पर छिद्रान्वेषी लोगों की जिन्दगी तो इसी में गुजरती है कि वे औरों के बारे में कुछ न कुछ अनर्गल बकवास करें, अफवाहें उड़ायें, प्रतिष्ठाहनन करें और दूसरों को नीचा दिखाकर खुद को ऊँचा बताने की गरज से वे सारे हथकण्डे अपनाएं जो अधर्म, असत्य और अन्याय की श्रेणी में आते हैं और जिनसे मानवता कलंकित होती है।

खुद काजल की कोठरी और अवैध कामों की माँद में बैठे लोग अक्सर दूसरों को बुरा ही बुरा  कहते सुने जाते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि हम स्वयं न सिद्धान्तों में विश्वास रखते हैं, न हमारे भीतर नैतिकता है बावजूद इसके इसके हम दूसरों पर निगाह रखते हैं और उन्हें भला-बुरा कहते हैं, उनकी निन्दा करते हैं और बहुधा शब्द बाणों से छलनी करने के लिए सारे षड़यंत्रों का प्रयोग करते हैं।

जिस मामले में हम कमजोर हैं, जिन नीतियों, आदर्शों और चरित्र का हम स्वयं पालन नहीं करते हैं उनके बारे में दूसरे किसी को भी कुछ भी  कहने का हमें कोई अधिकार नहीं है। ऎसा करना मर्यादाओं और सीमा रेखाओं को व्यतिक्रम है। पर हमारे दुर्भाग्य से कहें अथवा कलियुग की छाया की वजह से, आजकल सभी जगह यही हो रहा है।

अच्छों और सच्चों, सज्जनों को प्रोत्साहन भले न मिल पाए, मगर बुराइयों के मामले में ये लोग हमेशा निशाने पर रहते हैं। जो लोग कहीं कभी समय पर नहीं पहुंचते, वे लोग समय की पाबन्दी की बातें करते हैं, शराबी और व्यभिचारी लोग नशाबंदी और चरित्र के उपदेश देते हैं, संसार  भर का सब कुछ अपने खाते में जमा करने वाले, चोर-बेईमान, भ्रष्ट और रिश्वतखोर लोग अपरिग्रह के नाम पर सत्संगियों की भीड़ जुटाते हैं, कथाओं, सत्संगों और धार्मिक अनुष्ठानों को धंधा बनाने वाले लोग धर्म के नाम पर प्रवचन देते हैं, कथाओं में सर्वस्व न्यौछावर की सीख देते हैं, अपने कर्तव्यों को भुला कर अधिकारों के बूते पॉवर हाउस बने हुए लोग शोषण और सामाजिक समरसता के भाषण झाड़ते हैं, देश को खोखला करने वाले महान लोग देशभक्ति का दावा करते हैं, हर जगह मुफत का खान-पान और रहन-सहन, पराये भोग-विलासी संसाधनों का उपयोग करने वाले राष्ट्रीय चरित्र के गाने सुनाते हैं, औरों के सामने छोटे-मोटे पद और प्रतिष्ठा पाने के लिए टुच्चों और लुच्चों के सामने जीभ लपलपाने और साष्टांग दण्डवत समर्पण करने वाले लोग स्वाभिमान का राग अलापते हैं।

आखिर ये सब क्या हो रहा है। कई बार एक ही संस्थान या समूह में काम करने वाले सहकर्मी सहयोगी और परिचित भी ऎसा ही कर डालते हैं। ये लोग खुद कभी टाईम पर नहीं आते, मौका देख कर गायब हो जाते हैं और समय से पहले भाग जाने की बीमारी से ग्रस्त होते हैं, मगर दूसरों के बारे में हमेशा शिकायतें करते रहेंगे कि दूसरे लोगों पर अंकुश नहीं है, इसलिए मनमर्जी से आते हैं और चले जाते हैं। खुद हराम की कमाई करेंगे, दलाली से पैसा बनाएंगे, जेब भर कर कमीशन खाएंगे,राज के संसाधनों का दुरुपयोग करते रहेंगे लेकिन दूसरों को कोसते रहेंगे।

ऎसे बहुत से काम हैं जो  हमारे दुर्गुणाें की उपज है लेकिन इसके लिए हम अपने आपको सुधारने की बजाय औरों को बुरा बनाते हैं, बुरा कहते हैं, निन्दा करते हैं और उनके मत्थे दोष मढ़ते हैं। जो स्वयं किसी भी अंश में बुरा है उसे किसी दूसरे को बुरा कहने का कोई अधिकार नहीं है। हम सब इस मामले में अनधिकृत चेष्टा में लिप्त होकर पाप के भागी बन रहे हैं।

पहले आत्म सुधार करते हुए शुचिता का उच्चतम स्तर प्राप्त करें, फिर औरों के मूल्यांकन का दुस्साहस। पर सत्य यह भी है कि जो इंसान खुद पाक-साफ होता है वह अपने काम में मस्त रहता है, उसके पास फालतू समय होता ही नहीं।

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