• September 11, 2016

कड़ी – 5 मन की बात :- शैलेश कुमार

कड़ी – 5  मन की बात :- शैलेश कुमार

आज मैं मन की बात कुछ विशेष वर्ग के लिए कर रहा हॅू। जिन पर कहर बरपानेे वाला गंवार नहीं तो ज्ञानी भी नहीं होतेे हैं अर्थात अधजल गगरी छलकत जायें। हाॅ ! तो वह है अपराध के लिए कारावास। यहाॅं किस तरह के अपराधियों पर कहर बरपता है, इसके लिए मैने उसे कुछ श्रेणियों में विभक्त किया है :-

श्रेणीयाॅ – (क) छेड़छाड ,छीनाझपटी,हाथापाई,मार-पीट,गाली- गलौज। (ख) दंडात्मक पीटाई- डंडा,गड़ाॅसा,छुराबाजी । (ग) हिंसात्मक प्रहार।

उपरोक्त सभी का अपना-अपना प्रभाव है। उदाहरण के तौर पर – फिलिपींस के राष्ट्रपति के एक आदेेश ने 400 ड्रग तस्करों केे साथ ही शराब माफियों को गोलियों से भून दिया। मामला मानवाधिकार के तहत राष्ट्रपति बराक ओबामा नेे आमने – सामने बैठक की बातें कहीं। बस क्या था- राष्ट्रपति दुर्तेेेतेे की गुस्सा सातवें आसमान पर चढ गया और ओेबामा को गालियों से सराबोर कर दिया। इस तरह की गालियाॅें दिल्ली के आस-पास, करनाल राजस्थान में पारिवारिक वार्तालाप के तहत मान्य है।

जापान की संसद में गालियों से कार्यबाधित हुआ और हालात यहाॅ तक पहुॅच गई की वहाॅ के सांसद टेबल के नीचे ऐसे बचते – छिपते जैसे बिल्लीयाॅ आड़ें लेती है।

यह वर्ष सांसदों के लिए जनता के नजरों में काफी रूचिकर रही। यूक्रेन के संसद में सांसदों की ऐसे कुटाई हुई की एंबुलेंस को आना पडा। इसमें हम भारतीय सांसद भी कमजोर नहीं हैं। इसी वर्ष संसद में सभापति के हाथ से महिला बिल छिन कर फाड़ दिया गया। दिल्ली में पीटाई – ठुकाई के बाद लखनऊ से लेकर जम्मू- काश्मीर केे विधान सभा में ठुक्कमबाजी चली।

(क) श्रेणी की घटनाऐं अपराध की श्रेणी में नहीं आती है। इसके तहत दो पक्ष अपने आप में ही फैसला कर लेते हैं। जो जीता वह सिकंदर।

(ख) इस श्रेेणी की घटनाऐं भी समाजिकता के आधार पर हल कर लिये जाते हैं। लेकिन अधिकांश घटनाऐं मुकदमा में चली जाती है। यहाॅं सेे शुरू होता है इस तरह के अपराधियों का शोषण। शुरू होता है जेल में जेलरों का आत्याचाररूपी तांडव।

जेलर और पुलिस को पैसा न देनेे पर सजायप्ता कैदीयों के साथ मारपीट करना आम बात हैै। यहाॅं तक की थर्ड डिग्री भी इस्तेमाल की जाती है क्योंकि इस तरह की कैदी आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं।

कैदियों को सतानेे के लिए कैदियों में से ही बदमाश कैदियों को नेता बनाया जाता है। अगर कैदी पैसा न दे पाया या जेेलरों और पुलिस की मांगे पूरी नहीं की तो उसे बुरी तरह से पीटा जाता है। इस तरह से पीटा जाता है की बाहर आने पर विकलांग हो जाता है। जेलरों के आत्याचाररूपी तांडव के कारण प्रति वर्ष 1000-2000 कैदियों की मौतें होती हैं।

एशियन सेंटर ह्यूमन राइट्स : – भारत में 2011 के रिपोर्ट के अनुसार 14, 231 व्यक्तियों की मृत्यु हुई। 2001 से 2011 तक भारत में प्रतिदिन पुलिस और न्यायिक हिरासत 4000 से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु होती है।

–राष्ट्रीयमानवाधिकार आयोग में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार-
2001 -2002 तथा 2009 -2010 तक पुलिस हिरासत में 1504 और न्यायिक हिरासत में 12727 मृत्यु हुई —–

2001-2010 – पुलिस हिरासत में राज्यवार मृतकों की दैनिक संख्या मृत्यु के सम्बन्ध में महाराष्ट्र सबसे शिखर पर है –250 उत्तरप्रदेश – 174 , गुजरात – 134 , आँध्रप्रदेश – 109 ,बंगाल – 98 ,तमिलनाडु -95 ,असम -84, कर्नाटक -67 पंजाब – 57 मध्यप्रदेश 55 ,हरयाणा – 45 बिहार – 44 , केरल -42 ,झारखण्ड -41 , राजस्थान -38 उड़ीसा -34 ,देल्ही -30 ,छत्तीसगढ़ -24 , उत्तराखंड -20, मेघालय -17 , अरुणाचलप्रदेश – 10 , त्रिपुरा – 8 , जम्मू -कश्मीर -6 , हिमाचलप्रदेश -5 गोवा – 3 चंडीगढ़-3 , पांडिचेरी -3 मणिपुर -2 , मिजोरम -2 ,नागालैंड -2 सिक्किम -1 दादरा – नागर हवेली -1

2001-2010 कुल मृतकों की संख्या :- 12,727

न्यायिक हिरासत में राज्यवार मृतकों की दैनिक संख्या :- उत्तरप्रदेश – 2,171, बिहार – 1512; महाराष्ट्र (1176); आँध्रप्रदेश (1037); तमिलनाडु (744); पंजाब (739); बंगाल (601); झारखण्ड (541); मध्यप्रदेश (520); कर्नाटक (496); राजस्थान (491); गुजरात (458); हरियाणा (431); उड़ीसा (416); केरल (402); छत्तीसगढ़ (351); देल्ही (224); आसाम (165); उत्तराखंड (91); हिमाचलप्रदेश (29); त्रिपुरा (26); मेघालय (24); चंडीगढ़ (23); गोवा (18); अरुणाचलप्रदेश (9); पांडिचेरी (8); जम्मू कश्मीर (6), नागालैंड (6); मिजोरम (4); सिक्किम (3), अंडमान -(3)निकोबार (3); मणिपुर (1), दादरा -नागर हवेली (1)

जेलर इस तरह की घटनाओं को कैदियों के आपसी संघर्ष का संज्ञा देकर अस्पताल भेज देता है जबकि यह करतूत जेलरों की होती है। इस तरह के जेलरों को राक्षसों से तुलना की जाय तो वह भी कम है।

ऐसी बातेें नहीं है की इस तरह के शैतान जेलरों के लिए संविधान में कानून नहीं है लेकिन उसे पारित करने वाला कोई नहीं है क्योंकि संविधान संशोधन करनेवालों में से अधिकांश अपराधियों के सरगने से ही आते हैं जिनके लिए इस तरह के विधेयक पारित करना अपने जाॅघोें पर कुल्हाड़ी मारनेे के समान है।

सजायप्ता कैदियों पर कहर बरपाने के विरूध ’प्रीवेशन आॅफ टाॅर्चर बिल’’ का प्रावधान भी है लेकिन एक भी सांसद नाम मात्र की चर्चाऐं तक नही की है क्योंकि इस विधेयक के तहत – टार्चर किये जाने पर सामान्य प्रशासन के अधिकारियों को न्यूनतम सजा 10 वर्षाेे की कैद और नौकरी से बर्खातगी का प्रावधान है वहीं पुलिस महकमेें सेे लेकर जेलरोेें की तो खैर ही नहीं है।

सवाल है आज तक ’प्रीवेशन आॅफ टाॅर्चर बिल’’ को स्वीकृति क्यों नहीं मिली! क्योंकि सत्तारूढ दल अपने विपक्षियों कोे जेल में भी ऐसे पीटवाते हैं कि वह किसी काम का नहीं रह जाता है। यह परंपराऐं चलती रहती है। इसके लिए पुलिस से उपयुक्त और कोई बेहतर साधन नहीं है। हर दबंग किसी न किसी पार्टी के छत्रछाया में फलता है। दबंग अपने क्षेत्र में विरोधियों पर अपनेे बल और पुुलिस बल के माध्यम से अत्याचार करने का प्रारूपक केे हैसियत से कार्य करता है। अर्थात पुलिस वह गुड़िया है जिसे हर आने वाले सत्तारूढ़ दल अपने इशारों पर नचवाता है।

जब तक प्रीवेशन आॅफ टाॅर्चर बिल पास नहीं हो जाता तब तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना होती रहेेगी क्योंकि टाॅॅर्चर करने के सौ बहाने है। अगर यह बिल पास हो जाता तो ’’थर्ड डिग्री’’ केे मामलेें में सुप्रीम कोेर्ट के आदेश की अवहेलना में अब तक हजारों दारोेगा और इंस्पेेक्टर स्तर के अधिकारी के साथ ही जेलर कारागृह मेें बंद होते लेकिन सवाल है बिल्ली के गलेे में घंटी बांधे कौन ! जबकि घंटी बाॅधने वाला ही बिल्ली हो।

आज जब विधेयकों पर नजर डालते हैं तो एक भी पारित विधेयक समान्य लोगों से संबंधित नहीं है। अपराधी जेल में रहते चुनाव लड सकते हैं । इसी के लिये कांग्रेस ने अध्यादेश पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटना चाहा था,आज वह सफल हो गया । लेकिन प्रीवेशन आॅफ टाॅर्चर बिल पर चर्चायें तक नही हुई ।

(ग) हिंसात्मक प्रहार- इस तरह की घटनाओं में अपराधी किसी न किसी रूप से राजनीतिज्ञों के संसाधन होते हैं। इस श्रेणी के कैदियों कोे कारागृह स्वर्ग केे समान होता है। यह काम जेलरों का है कि उसका ख्याल रखे। वेश्याओं तक उपलब्ध करवाना वहाॅ के जेल प्रशासन का काम है। अगर वह ऐसा नही किया तोे उसका खैर नहीं है।

सही मायने में लोकतत्र की यही लोकतांत्रिक व्यवस्था है। हर अयोग्य व्यक्ति दूसरों का उदाहण देकर अपनी योग्यता को दर्शाने मेें व्यस्त है । अपनेे दायित्व को भुलाकर ऐशोे आराम की जिंदगी में व्यस्त है। यह भार क्यों दिया गया, क्या करना है, कैसे रचनात्मक भूमिका मेें रहना है, उसका कोई ख्याल नहीं , ख्याल है तो सिर्फ अपराधियों को गोद लेने में, उसे रोपण और पुष्पित करने में।

1991 मेें चुनाव के दौरान क्षेत्र में अपराध और भय फैलानेे के लिए जेल से कैदियों को छुड़वाने की परंपरा सत्तारूढ दलों में जोरों पर था। कैदी लूटपाट और हत्या कर सुबह में हाजरी के वक्त पुनः जेल में उपस्थित हो जाता था। चुनाव में हिंसा परमकाष्ठा पर था। चारों और भय व्याप्त था । मतदाताओं में चुनाव के प्रति असीम घृणा व्याप्त हो गया ।

इसी वक्त ’’अपराध और राज्य’’ की स्थिति पर निखल चक्रवर्ती संपादित एक लेख अंग्रेजी के कवरहीन ’’मिनस्ट्रीम’’ में उद्धृत हुआ — अपराधियोें के बिना राजनीति विधवा के समान हैै। राजनीति के बिना अपराधी विधुर के समान हैै।

इसके बाद वहस छिड़ी। संसद तथा विधान सभा के सज्जनों नेे भी जमकर समर्थन किये लेकिन वहीं मरखंडीयों ने इसका विरोध किया। प्रभावी लेेखकों ने धारावाहिक लेेखों से एक क्रांति लाने की कोशिश कीं। यह काफी हद तक सफल भी रहा।

यहाॅं तक की कई राजनीतिक पार्टी अपराधियों को अंगीकार करने से पीछेे हटते दिखे। कुछ दिनों तक ऐसा लगा की वास्तव में राजनीति से अपराधिकरण का उन्मूलन हो जाएगा। यह धारावाहिक जन प्रतिनिधियों की मानसिकाता में बदलाव लाने में सफल रहा।

  1. लेकिन सत्ता में अपराधी सरगना की वापसी चीनी दार्शनिक कंफयूशियस के उस सिद्धांत का अशुभ संकेत है जिसमें उन्होने कहा था – प्रकृति की ओर लौटो।

राजनीति के तहत राजभोग शब्द है। राजभोेग में तीन तत्वों का समावेश है-
(क) शबाव – महिलाऐं (ख) शराब (ग) अपराध । जिन व्यक्तियोें में इन तीनों का संयोग नहीं है वह राजनीति मेें असफल है । अर्थात – विदुर – देव न दानव।
शबाव और शराब अपराध केे जनक है। इन दोनों की त्रुटि से अपराध का सृजन होता है साथ ही अपराध से ही इसकी पूर्ति होती है।

वह उस कटार के समान है जो ताकतवर होतेे भी गले नही लग सकता है। कटार नेे कटार से कहा- यार क्या हम पुष्पोें कोे गला नहीं लगा सकते है,देखों ! ये माला में पीरो कर गले का शोभयमान है। सभी पुष्पों का गुणगान कर रहे हैं। कब्रों से लेकर मंदिरों तक सजतेे हैं लेकिन हम ताकतवर होकर भी पुष्पों के समान किसी के गले का शोभा क्यों नहीं बढ़ाते है ?

कटार ने कहा- यार! दिल तो मेरा भी तड़प रहा है लेकिन हमलोग बनाये ही गये है, इसी काम के लिए।

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