क्या है धारा 97 —— सुप्रीम कोर्ट

क्या है धारा 97 —— सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली —– सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि गुमशुदा लोगों या अवैध रूप से कस्टडी में रखे जाने वाले लोगों के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कार्पस रिट याचिका डालना ही एकमात्र रास्ता नहीं है। इसके लिए वे सीआरपीसी की धारा 97 का प्रयोग कर सकते हैं, जो बराबर रूप से कारगर है।

जस्टिस दिनेश महेश्वरी की पीठ ने यह आदेश और सलाह एक मामले में दी और याचिकाकर्ता को वासप भेज दिया।

इस व्यक्ति ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। उसका कहना था कि उसकी पत्नी को उसके परिवार वालों ने गैरकानूनी रूप से मारपीट कर बंधक बना रखा है।

जस्टिस महेश्वरी और अनिरुद्ध बोस की पीठ को याचिकाकर्ता ने बताया कि वह अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय गए थे। लेकिन हाईकोर्ट में अवकाश चल रहा है। इस पर पीठ ने कहा कि आप धारा 97 का रास्ता क्यों नहीं अपनाते, इसका अदालतों से कोई लेना देना नहीं है। बाद में याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसके बाद कोर्ट ने याचिका को वापस लिया मानकर खारिज कर दिया।

क्या है धारा 97:

जब भी किसी जिला मजिस्ट्रेट, एसडीएम और मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के संज्ञान में यह लाया जाता है कि किसी व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में रखा हुआ है और उसे लगता है कि अपराध हो सकता है, तो वह सर्च वारंट जारी कर सकता है। ऐसा वारंट जिस व्यक्ति के लिए निर्देशित किया जाता है वह उसे खोजेगा। खोजने पर वह यदि मिल जाता है तो उस व्यक्ति को तुरंत मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करेगा। मजिस्ट्रेट परिस्थितियों के अनुसार आदेश पारित करेगा

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