क्या सीधी में 25 साल पूर्व का इतिहास फिर दुहराया जायेगा ?

क्या सीधी में 25 साल पूर्व का इतिहास फिर दुहराया जायेगा  ?

सीधी ——— जिला मुख्यालय के सीधी विधान सभा क्षेत्र में अभी तक प्रदेश के प्रमुख राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस ने पर्चे नहीं खोले हैं। किन्तु तीनों ही दलों से वर्णमाला के ‘‘क’’ अक्षर से शुरू होने वाले चर्चित नाम केदार नाथ शुक्ल, कृष्ण कुमार सिंह, कमलेश्वर द्विवेदी 1993 में भी तत्कालीन गोपद बनास विधान सभा क्षेत्र में आमने सामने थे। इस त्रिकोणीय मुकाबले में निर्दलीय कृष्ण कुमार सिंह ‘‘भंवर साहब’’ ने पहली मर्तबा जीत दर्ज की थी।

अविभाजित सीधी जिले में कांग्रेस 1977 से सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले पर चल रही है। तब जिले में 6 विधान सभा क्षेत्र चुरहट, गोपद बनास, सीधी (अनारक्षित) तथा चितरंगी, घौहनी (अजजा) व सिंगरौली (अजा) वर्ग के लिये आरक्षित थीं। 1977 में चुरहट से स्व. कुं. अर्जुन सिंह, गोपद बनास से स्व. श्री चन्द्र प्रताप तिवारी तथा सीधी से इन्द्रजीत कुमार पटेल कांग्रेस पार्टी के प्रत्यासी थे।

जिले के विभाजन एवं परिसीमन के उपरांत गोपद बनास विधान सभा विलोपित हो गई और सीधी जिले में 4 विधान सभा क्षेत्र चुरहट, सीधी व सिहावल (अनारक्षित) व घौहनी (अजजा) रह गये। कांग्रेस का 1977 से चल रहा यह सिलसिला 2008 में टूटा। कांग्रेस ने सीधी से कृष्ण कुमार सिंह को मैदान में उतारा और भाजपा के केदार नाथ शुक्ल 26 हजार से अधिक मतों से जीत दर्ज की।

आसन्न विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के चुरहट से नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ‘‘राहुल’’ व सिहावल से कमलेश्वर पटेल का नाम तय है। सीधी विधान सभा क्षेत्र से लगातार दो बार से जीत का परचम लहरा रहे केदार नाथ शुक्ल को घेरने के लिये कांग्रेस एक बार फिर कमलेश्वर द्विवेदी को मैदान में उतारने की तैयारी में है।

विंध्य की जातीय राजनीति से सीधी जिला अछूता नहीं है। इसीलिये यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि 1993 में गोपद बनास के चुनाव की तरह केदार नाथ शुक्ल, कमलेश्वर द्विवेदी, कृष्ण कुमार सिंह 2018 में फिर आमने सामने होंगे और त्रिकोणीय संघर्ष में बन रहे समीकरणों से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार भी बाजी भंवर साहब मारने की स्थिति में रहेगें ?

विजय सिंह
सीधी

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