- November 22, 2024
कैदी की पैरोल अर्जी खारिज करने के लिए जेलर पर 25,000 रुपये का जुर्माना
बॉम्बे हाईकोर्ट ने नासिक जेल के जेलर पर कानून का उल्लंघन करते हुए और ऐसा करने का अधिकार न होने के बावजूद एक कैदी की पैरोल अर्जी खारिज करने के लिए 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है।
इस साल सितंबर में जेलर ने कैदी श्रीहरि राजलिंगम गुंटुका की पैरोल अर्जी खारिज कर दी थी। उन्होंने 2022 के सरकारी सर्कुलर का हवाला दिया था, जिसमें फरलो और पैरोल छुट्टी के बीच डेढ़ साल का अंतर अनिवार्य किया गया था।
न्यायमूर्ति भारती डांगरे और मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने 12 नवंबर के अपने आदेश में कहा कि अतीत में अदालतों ने एक आदेश पारित किया है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस तरह का प्रतिबंध जेल (बॉम्बे फरलो और पैरोल) नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन है।
अदालत ने कहा कि एक कैदी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए पैरोल छुट्टी का लाभ उठाने का हकदार है और यह शर्त लगाना कि उसे डेढ़ साल की अवधि तक इंतजार करना होगा, पूरी तरह से अनुचित है।
हाईकोर्ट ने कहा, “हमने पहले भी स्पष्ट रूप से अपना विचार व्यक्त किया है कि किसी करीबी रिश्तेदार की गंभीर बीमारी, घर गिरने, बाढ़, आग और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं एक अप्रत्याशित आकस्मिकता है और कोई यह अनुमान नहीं लगा सकता कि यह कब आएगी।”
पीठ ने कहा कि यह वास्तव में “दुर्भाग्यपूर्ण है कि जेल अधिकारियों ने अदालतों द्वारा पारित आदेशों को अनसुना कर दिया है और आवेदनों को खारिज करके अपनी व्यवस्था को जारी रखा है”।
नासिक जेल अधीक्षक ने गुंटुका के पैरोल आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह फरलो छुट्टी के बाद जेल लौटने के 21 दिनों के भीतर प्रस्तुत किया गया था।
उच्च न्यायालय ने कहा, “हम याचिकाकर्ता के अधिकारों को पराजित करने में नासिक जेलर द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण की कड़ी निंदा करते हैं। प्रतिवादी संख्या 4 (जेलर) ने इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून का अनादर किया है।”