- January 8, 2022
केंद्रीय सुरक्षा बल ‘पैरामिलिट्री’ को ‘सिविलियन’ फोर्स ——
81 हजार से ज्यादा जवानों ने पिछले सात वर्ष में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की नौकरी छोड़ दी है।
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प्रधानमंत्री मिलने से इंकार
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नई दिल्ली—- केंद्रीय सुरक्षा बल के पूर्व कर्मियों ने ‘पैरामिलिट्री’ को ‘सिविलियन’ फोर्स बताने पर नाराजगी जाहिर की है। कई तरह की दिक्कतों का सामना कर रहे 81 हजार से ज्यादा जवानों ने पिछले सात वर्ष में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की नौकरी छोड़ दी है।
सीएपीएफ से जुड़ी मांगों पर चर्चा करने के लिए बल के पूर्व कर्मियों ने प्रधानमंत्री मोदी से 20 मिनट का समय देने का आग्रह किया है।
पूर्व कर्मियों द्वारा अपनी मांगों के समर्थन में राजघाट पर 14 फरवरी को विशाल धरना-प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा। इसमें देश के विभिन्न हिस्सों से केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के रिटायर्ड कर्मी शामिल होंगे।
इन बलों में पुरानी पेंशन व्यवस्था खत्म कर दी गई है
सीएपीएफ के पूर्व एडीजी एचआर सिंह व सीआरपीएफ से सेवानिवृत्त हुए रणबीर सिंह ने गुरुवार को एक्स-पैरामिलिट्री जवानों द्वारा झुंझुनू में आयोजित एक सम्मेलन में कहा, केंद्र सरकार सीएपीएफ कार्मिकों की मांगों के प्रति ध्यान नहीं दे रही है।
इन बलों में पुरानी पेंशन व्यवस्था खत्म कर दी गई है।
इस व्यवस्था को दोबारा से शुरू कराने के लिए केंद्रीय मंत्रियों को अनेक ज्ञापन दिए हैं, लेकिन अभी तक उस पर गौर नहीं किया गया है।
सरकार ने इन बलों को वन रैंक-वन पेंशन का लाभ भी नहीं दिया। अपनी मांगों के समर्थन में पैरामिलिट्री परिवारों द्वारा 14 फरवरी को राजघाट पर पुलवामा शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन किया जाएगा।
ऑर्गेनाइज्ड सर्विस को संवैधानिक दर्जा नहीं
पूर्व एडीजी एचआर सिंह व आईजी छज्जू राम ने कहा, सरहदी चौकीदारों को हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने एक आदेश में सिविलियन फोर्स बताया है। वह पैरामिलिट्री फोर्स, जो बॉर्डर के अलावा देश में आतंकवाद, नक्सल, उत्तर-पूर्व के उग्रवाद प्रभावित इलाके और आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालती है, उसे सिविलियन फोर्स बता दिया गया है।
अगर देश में कहीं पर प्राकृतिक आपदा आती है तो वहां भी अर्धसैनिक बलों के जवान लोगों की सहायता करते हैं। सभी पूर्व कार्मिकों ने केंद्र सरकार के उक्त निर्णय की कड़ी भर्त्सना की है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ऑर्गेनाइज्ड सर्विस को संवैधानिक दर्जा नहीं दिए जाने से फोर्सेस के हजारों कैडर ऑफिसर्स नाराज हैं।
इसका सीधा असर फोर्स की कार्यप्रणाली, कमांड कंट्रोल पर देखने को मिल रहा है। पिछले सात सालों से आपसी शूटआऊट व आत्महत्याओं के मामलों में वृद्धि हुई है।
लगभग 81 हजार जवान नौकरी छोड़कर चले गए। इसके बावजूद केंद्र सरकार के कानों पर कोई जूं तक नहीं रेंग रही।
जवानों को 100 दिन की छुट्टी देने की घोषणा पर अमल नहीं
रणबीर सिंह ने कहा, देश में अचानक आने वाली प्राकृतिक विपदाएं, विभिन्न आंदोलनों और समय-समय पर होने वाले चुनावों की वजह से लंबे समय तक सीएपीएफ जवानों को अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है।
समय पर अवकाश नहीं मिलने के कारण जवान, मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। पैरामिलिट्री जवानों को 100 दिन छुट्टी देने वाला गृह मंत्रालय का फॉर्मूला फेल हो गया लगता है।
दो साल बाद भी यह योजना किसी बल में लागू नहीं हो सकी। निचले पदों पर कार्यरत कर्मियों, कंपनी कमांडर, कमांडेंट, डीआईजी व आईजी लेवल के कैडर वर्ग में सुविधाओं और प्रमोशन प्रणाली को लेकर घोर निराशा व्याप्त है। इन सुरक्षा बलों की कमान कैडर आफिसर्स को सौंप देनी चाहिए। कैडर अधिकारी, कंपनी और बटालियन स्तर पर जवानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर अभियान में शामिल होते हैं।
अलग से पैरामिलिट्री मंत्रालय का गठन किया जाए
पदाधिकारी जयेंद्र सिंह राणा ने कहा, पैरामिलिट्री परिवारों की भलाई के लिए अर्धसेना झंडा दिवस कोष, राज्यों में अर्धसैनिक कल्याण बोर्डों की स्थापना, पैरामिलिट्री बहुल जिलों में सीजीएचएस डिस्पेंसरियों का विस्तार व पैरामिलिट्री हेल्प डेस्क की स्थापना करना बहुत जरूरी है। इसके लिए किसी बड़े बजट की जरूरत नहीं है। यहां पर केंद्रीय गृह मंत्रालय की इच्छाशक्ति की कमी साफ नजर आती है।
सुरक्षा बलों की भलाई के लिए अलग से पैरामिलिट्री मंत्रालय का गठन किया जाए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वित मंत्री निर्मला सीतारमण, गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय व केंद्रीय गृह सचिव के अलावा राष्ट्रपति से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा गया।
अब दोबारा से प्रधानमंत्री मोदी से मिलने का समय मांगा है। यह बात अलग है कि पिछले सात सालों में प्रधानमंत्री से मिलने के लिए प्रतिनिधिमंडल ने कई बार गुहार लगाई थी, लेकिन अभी तक बुलावा नहीं आया।