कृषि ऋण माफी –किसानों का संकट दूर करने में बिल्कुल भी कारगर साबित नहीं-

कृषि ऋण माफी –किसानों का संकट दूर करने में बिल्कुल भी कारगर साबित नहीं-

नई दिल्ली ——— सत्ता हासिल करने लिए कृषि ऋण माफी राजनीतिक दलों के लिए एक औजार बन गई है। पिछले दिनों आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी साफ किया कि राजनीतिक पार्टियों को इस तरह के वादे करने से बाज आना होगा, क्योंकि अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल प्रभाव देखा जा रहा है।

1. कृषि ऋण माफी से राज्यों पर दबाव

कृषि ऋण माफी की राज्य को भारी कीमत चुकानी पड़ती है।

2. खेती से मुश्किल हो रहा जीवन-यापन

3. हर किसी को समान फायदा नहीं

किसानों द्वारा बैंकों से लिया गया लोन तो माफ हो जाता है, लेकिन जो किसान अनौपचारिक क्षेत्र से ऋण लेते हैं, वे जस के तस रहते हैं। इसे इस ग्राफ से आसानी से समझा जा सकता है।

4. अमीरों को सर्वाधिक फायदा — इसके तीन प्रमुख कारण हैं।

1. उन्हें बैंकों से आसानी से ऋण मिल जाता है।
2. सिस्टम तक उनकी पहुंच बेहतर होती है।
3. उनमें वित्तीय साक्षरता और जागरूकता अधिक होती है।

5. ऋण माफी से क्रेडिट कल्चर पर असर और नैतिक खतरा

वैसे किसान जो ऋण का भुगतान करने में सक्षम हैं, वे भी ऋण भुगतान से पीछे हट सकते हैं। वित्त वर्ष 2015-16 में कृषि क्षेत्र का एनपीए 5.44 फीसदी, वित्त वर्ष 2016-17 में 5.61 फीसदी, जबकि वित्त वर्ष 2017-18 में यह 7.18 फीसदी रहा। हम एक ग्राफ से इसे दर्शा रहे हैं।

5. किसानों के लिए बैंकों से लोन लेना मुश्किल

चूंकि बैंक समझ गया है कि उसके द्वारा किसानों को दिया गया ऋण चुनाव में माफ कर दिया जाएगा और इस तरह उसका कर्ज डूब जाएगा। इसलिए बैंक भी अब किसानों को कर्ज देने से ऐहतियात बरतने लगे हैं।

7. विकास को झटका

कृषि ऋण माफी से विकास को गहरा आघात पहुंचता है, क्योंकि सरकार को हर क्षेत्र में खर्च में कटौती करनी पड़ती है। इससे सिंचाई और इंफ्रास्ट्रक्चर की योजनाओं पर खर्च में कमी लानी पड़ती है। कृषि ऋण माफी (जीएसडीपी का प्रतिशत) का राजकोषीय घाटे में योगदान सर्वाधिक उत्तर प्रदेश में रहा है। हम इसे एक ग्राफ के जरिये समझते हैं।

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