किसानों का खून बहाने की परंपरा है ?- एम०एच० बाबू

किसानों का खून बहाने की परंपरा है ?-  एम०एच० बाबू

क्या मध्य प्रदेश की धरती पर किसानों का खून बहाने की परंपरा है जो कि कुछ अंतराल के बाद अपना रूप सामने लाती रहती है, इसे बड़ी गंभीरता से सोचना पडेगा क्योकि देश का अन्नदाता और बन्दूकों की गोलियां इसे तो समझना ही पड़ेगा|

क्या गुनाह है उन किसानों का यह सोचना पडेगा किस गुनाह की सजा उन्हें दी रही है| यह एक बड़ा प्रश्न है इसका समाधान किस तरह से किया जा रहा है इसे और गंभीरता से समझने की आवश्यकता है| download

मात्र कुछ दिनों के लिए चारों तरफ हो हल्ला होना और बाद में चार पैसे देकर मामले को ठन्डे बस्ते में डाल देना यह सही उपाय है? क्या इससे समस्या का निदान हो जाएगा| क्या इससे यह समस्या सदैव के लिए समाप्त हो जाऐगी| क्या इसके लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता नहीं है| क्या इस समस्या के निस्तारण के लिए मूल-भूत ढांचे पर कार्य करने की आवश्यकता नहीं है| जिससे यह समस्या सदैव के लिए समाप्त हो सके|

याद करिए कुछ समय पहले भी इसी तरह की बड़ी शर्मनाक घटना घट चुकी है| यदि वह समय पुन: याद करिएगा तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगें वह समय था सन् 1998 का जब दिग्विजय सिंह की मध्य प्रदेश में सरकार थी तब सोयाबीन की खेती के लिए सही मुआवजे की मांग कर रहे किसानों पर अधाधुन्ध गोलियां बरसाई गई थीं| वही इतिहास पुनः फिर से दोहराया गया है, फर्क बस इतना है कि तब दिग्विजय सरकार थी अब शिवराज सरकार है|

समझिए और सोचिए, इस धरती माँ के पूत होने के नाते यह सोचिए कि धरती के सबसे बड़े सेवक के रूप में किसान का नाम आता है जो कि शहरों की चकाचौंध से दूर ग्रामीण क्षेत्रों में धरती माता से पूरी तरह से लिपटा हुआ रहता है, दिन के पूरा समय खेतों में व्यतीत करता है और रात के समय में भी आवश्यकता होने पर पूरी रात खेतो पर ही गुजारता है| इस पर मंथन कीजिए, सोचिए ,समझिए|

किसानों की छाती पर दोनों सरकारों ने अपनी बन्दूकें तानी किसानों की छातियों को बन्दूकों की गोलियों से छलनी कर दिया गया, सरकारी गुंडों ने मानवता को एक बार फिर शर्मसार कर दिया, जय जवान जय किसान का नारा आज एक ऐसी गुत्थी बनकर उलझ गया जिसको समझ पाना अत्यन्त मुश्किल हो गया है ।

सरकारी गुंडे को लोक लाज है न ही इन्हें तनिक दया भी, हम क्या कर रहे हैं यह बन्दूकें किस पर तान रहे हैं। यह एक अत्यन्त गम्भीर प्रश्न है कि क्या अब भारत में भी तानाशाही की मानसिकताओं ने जन्म लेना शुरू कर दिया है, इसे गम्भीरता से सोचना पडेगा। ऐसे दुखद दृश्य से तो मष्तिष्क के अन्दर नए सवालों ने जन्म लेना शुरू कर दिया है क्योकि ऐसी दुखद घटना ने तो अब देश की जनता का ध्यान नई दिशा की ओर मोड़ना शुरू कर दिया है।

बता दें कि जब किसानों पर पहले गोलियां चली थी तो विपक्ष में बैठी पार्टी ने शासन को ‘जलियांवाला बाग कांड’ बताया था, और आज उसी मार्ग पर स्वयं आज की सरकार खुद चल पड़ी है क्योंकि किसान खुद ही मर रहा है, आत्म हत्याएं कर रहा है और उस पर मध्य प्रदेश पुलिस ने गोलियां बरसा दीं, यह क्या कहती है, अब देशभर के विभिन्न किसान संगठनों के नेताओं नें मंदसौर गोलीकांड में पुलिस गोलीबारी में मारे गए किसानों को श्रद्धांजलि देते हुए अपने आक्रोश को जाहिर कर दिया है, ऐसी दुखद घटना जिससे देश शर्मसार हो गया, पुलिस की इतनी हिम्मत कि किसानों के ऊपर गोलियां बरसा दें !!

ज्ञात हो कि 19 साल पहले मध्यप्रदेश के ही बैतूल जिले में मुलताई तहसील में एक और गोलीकांड हुआ था। दिनांक 12 जनवरी सन् 1998 को हुए इस गोलीकांड में कई किसान मारे गए। मुलताई में हुए किसान आंदोलन की देश हिला देने वाली घटना ने देश के अन्दर और देश के बाहर भी बड़ी चर्चा का केंद्र बन गयी।

अतीत और वर्तमान की घटना में कितनी समानता है और कितनी भिन्न्ता यह रिकार्ड स्वयं दर्पण की भांति उभरकर सामने आ जाते हैं यदि अतीत पर प्रकाश डालें तो 1997 में शुरू हुई मुलताई कि घटना में मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में सोयाबीन की फसलें लगातार तीन साल से खराब हो रही थीं। बैतूल जिले की मुलताई तहसील में किसानों ने लगातार फसलें खराब होने के कारण मुआवजे की मांग को लेकर एक सभा का आयोजन किया था। उस सभा में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक स्वर्गीय कांशीराम भी सभा में मौजूद थे।

बैतूल के एसपी की मौजूदगी में पुलिस बल ने गरीब किसानों पर गोली चलाना शुरू कर दिया जिसमें 24 किसान शहीद हुए थे और 150 किसानों को गोली लगी थी जिसमें सरकार ने 250 किसानों पर 67 फर्जी मुकदमे दर्ज किए थे। हत्या, हत्या के प्रयास, लूट, आगजनी, सरकारी काम मे बाधा सहित तमाम अपराधों को लेकर दर्ज किए गए थे, जिसको अब किसान संघर्ष समिति के द्वारा हर वर्ष 12 जनवरी को शहीद किसान स्मृति सम्मेलन के रूप में मुलताई में मनाया जाता है। जिसमें किसान कर्ज माफी, बिजली बिल माफी, किसानों की न्यूनतम आय सुनिश्चत करने, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने, पैदावार एवं फसल बीमा तय करने की इकाई बनाने की मांग करा रहे थे।

अहंकार में डूबी हुई शिवराज सरकार ने मुलताई कांड से तनिक भी सबक नहीं लिया। यह घटना इस बात का अडिग प्रमाण है अन्यथा ऐसी घटना फिर भविष्य में दोबारा न घटित होती, उस समय सरकार ने न्यायिक आयोग का गठन किया था, जिसमें यह निष्कर्ष निकला था कि गोलीकांड प्रशासनिक, पुलिस अधिकारियों और किसान आंदोलन के नेताओं के बीच संवादहीनता का परिणाम था।

ऐसी दुखद घटनाएं अपने आपमें क्या कहती हैं ! इसे कौन सोचेगा! इस पर कौन विचार करेगा! यह गंभीर प्रश्न है!!

क्या किसान अब देश में कुर्सी बैठे हुए व्यक्तियों के हाथों का खिलौना बन गया है! क्या अब किसानों की आवाजों को दबाया जा रहा है, यदि किसानों की आवाजें नहीं दबती तो उन्हें बन्दूकों का निशाना बनाया जाएगा !!!

mh.babu1986@gmail.com

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