- November 24, 2020
कला विविधताओं का प्रदर्शन ‘गमक’
भोपाल : ——— संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आज उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा डॉ. मयूरा पण्डित खटावकर, भोपाल द्वारा ‘व्याख्यान एवं कथक नृत्य’ की प्रस्तुति दी गई।
प्रस्तुति की शुरुआत डॉ. मयूरा ने अपने व्याख्यान से की- उन्होंने कहा की कथक का जन्म कथा कहने से हुआ है, कथा कहने वाले मंदिरों में ईश्वर की गाथाओं को गाकर सुनाते थे, धीरे-धीरे उसमे वाद्यों यंत्रों का समावेश होने लगा और वह प्रक्षकों को अधिक आकर्षित करने लगा, फिर धीरे-धीरे उसमे नृत्य का समावेश हुआ और वहीं से कथक की उत्पत्ति हुई। रायगढ़ शैली की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें ताल पक्ष और भाव पक्ष दोनों को सामान महत्व दिया जाता है |
डॉ. मयूरा ने नृत्य की शुरुआत आदि जगत जननी शक्ति स्वरुप माँ दुर्गा की स्तुति से की, पश्चात् वरिष्ठ गुरु पण्डित रामलाल द्वारा कोरिओग्राफ की हुई रायगढ़ शैली में त्रिताल शुद्ध कथक की प्रस्तुति दी, सांवरे आजैयो- एक गोपिका का कृष्ण की प्रति प्रेम समर्पण भाव, तराना और ठुमरी – अभिसारिका नायिका से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया।
डॉ. मयूरा ने रायगढ़ घराने के नृत्य गुरु पण्डित रामलालजी से आठ वर्ष की आयु से कथक नृत्य की शिक्षा लेना आरम्भ कर दिया था। आपने इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से कथक में पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आपने देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति दी है। वर्तमान में मुंबई में आप लगभग नब्बे से अधिक छात्रों को कथक की शिक्षा दे रही हैं।