- March 11, 2015
करगिल युद्ध : परमवीर चक्र: कैप्टन विक्रम बत्रा परिवार के पुश्तैनी जमीन माफिया के चंगुल में
नई दिल्ली (आई०बी०ऐन० खबर) –कैप्टन विक्रम बत्रा ने देश की जमीन दुश्मन के चंगुल से वापस पाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी लेकिन अब उनका खुद का परिवार अपनी पुश्तैनी जमीन माफिया के चंगुल से बचाने के लिए जूझ रहा है। दुख की बात ये है कि उसके इस संघर्ष में न तो सरकार और न ही प्रशासन का कोई सहयोग मिल रहा है।
छह महीने से ज्यादा वक्त से चिट्ठियों पर चिट्ठियां लिखी जा रही हैं, तहसीलदार से लेकर गुहार राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री तक पहुंच गई है लेकिन कार्रवाई के नाम पर नतीजा सिफर ही है। इसमें सबसे चौंकाने वाला रवैया दिखाया है मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने जो पिछले दो महीने से राष्ट्रपति सचिवालय से लेकर रक्षामंत्री तक की चिट्ठियां दबाकर बैठी है लेकिन कैप्टन बत्रा के परिवार को राहत नहीं दिला पाई है।
दरअसल, कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता जीएल बत्रा ने अपने भाई अशोक बत्रा के नाम मध्य प्रदेश के जबलपुर में लगभग 6.34 एकड़ कृषि योग्य भूमि खरीदी थी।
ये जमीन पिछले लगभग 40 साल से उनके पास ही है। आज उसकी कीमत करोड़ों में पहुंच गई है और यहीं से बत्रा के लिए परेशानी खड़ी होना शुरू हो गईं। कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता जीएल बत्रा बताते हैं कि जमीन के दाम बढ़ने के साथ ही उनकी परेशानियां भी बढ़ने लगीं।
2010 में उन्हें स्थानीय भूमाफिया ने धमकियां मिलने का जो सिलसिला शुरू किया, वो अब भी जारी है। उन्होंने अपनी जमीन बचाने के लिए हर जगह गुहार लगाई लेकिन उनकी कहीं नहीं सुनी गई। बत्रा ने कहा कि इलाके का भू-माफिया इतना ताकतवर है कि वो कमजोर लोगों को फंसा लेता है। उनकी संपत्ति के पीछे विवाद खड़ा करता है। लोग परेशान होकर हार मान लेते हैं, और जमीन उसके हवाले कर देते हैं।
जीएल बत्रा सिस्टम से नाराज तो हैं लेकिन उन्होंने अभी तक उम्मीद नहीं खोई है। आईबीएनखबर से बातचीत में वे कहते हैं कि इस लड़ाई में अंतत: उनकी ही विजय होगी और हर हाल में होगी। हम इस लड़ाई को आखिरी सांस तक लड़ेंगे। 70 वर्षीय जीएल बत्रा ने 29 सितंबर 2014 को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री को चिट्ठियां भेजीं। उन्होंने लिखा कि ‘मेरे बेटे ने देश के लिए अपनी कुर्बानी दे दी। मैं एक वरिष्ठ नागरिक, स्कूल का सेवानिवृत्त शिक्षक हूं, जो भू-माफिया के चलते एक गंभीर परेशानी में है। मैं हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में रहता हूं लेकिन कुछ लोग मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित मेरी पारिवारिक संपत्ति को हड़पने का प्रयास कर रहे हैं।
बत्रा ने कहा कि वे पिछले चार वर्ष से ये लड़ाई लड़ रहे हैं और इस दौरान उन्होंने अपनी क्षमतानुसार न्याय का हर दरवाजा खटखटाया लेकिन विरोधी बहुत शक्तिशाली हैं और उन्हें स्थानीय प्रशासन का समर्थन हासिल है। अंतिम उम्मीद के साथ वे लिखते हैं मुझे आपकी मदद की आवश्यकता है ताकि भू-माफिया मेरी पारिवारिक संपत्ति को छीन न सकें।
बत्रा के इस पत्र के बाद राष्ट्रपति सचिवालय ने मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव को 22 अक्टूबर 2014 को पत्र लिखकर पीड़ित की याचिका पर उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया। पत्र में यह भी लिखा गया है कि याचिका स्वत: ही पूरी कहानी बयान करती है। राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक को पत्र, मगर सुनवाई नहीं
बत्रा ने प्रधानमंत्री को भी एक पत्र भेजा। इसके बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने खुद 31 जनवरी 2015 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस सिलसिले में कार्रवाई के लिए एक पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने इस मामले में उनसे हुई बातचीत का भी हवाला दिया है। पर्रिकर ने चौहानजी के संबोधन के साथ मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि वे इस मामले की जांच कराएं और जल्द से जल्द उसका निपटारा कराएं।
इससे पहले 24 दिसंबर 2014 को अंडर सेक्रेटरी (मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस, एक्स सर्विसमैन वेलफेयर डिपार्टमेंट) ने भी मध्यप्रदेश के चीफ सेक्रेटरी को पत्र लिखा और कार्रवाई की बात कही। लेकिन हैरानी की बात ये है कि तकरीबन 2 महीने बीत जाने के बाद ही मध्यप्रदेश सरकार इस चिट्ठियों को लेकर हाथ पर हाथ धरे बैठी है। इस सिलसिले में आईबीएनखबर ने जब मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव एंटनी डिसा से संपर्क किया तो उन्होंने मामले की जानकारी होने से ही इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि वे जल्द ही पूरे मामले की जानकारी लेंगे।