एनसीईआरटी द्वारा पर्यावरण पाठ्यक्रम में बदलाव कितना सही?

एनसीईआरटी द्वारा पर्यावरण पाठ्यक्रम में बदलाव कितना सही?

लखनऊ (निशांत कुमार) संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों पर नज़र डालें पता चलता है कि दुनिया भर में करीब 100 करोड़ बच्चों पर जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के बढ़ते प्रभावों का खतरा है। इस आंकड़ें में भारत की भी योगदान है और भारत समेत 33 देशों के बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा पर यह जलवायु संकट मंडरा रहा है।

तो जब जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के चलते दुनियाभर में बच्चे जलवायु परिवर्तन के किसी ने किसी प्रभाव से जूझ रहे हैं, ऐसे में बच्चों में इस विषय के प्रति समझ और जागरूकता बढ़ाना बेहद ज़रूरी है। खास तौर से इसलिए भी क्योंकि भारत, नाइजीरिया, फिलीपींस और अफ्रीका समेत 33 देशों के बच्चे एक साथ हीटवेव, बाढ़, चक्रवात, बीमारी, सूखा और वायु प्रदूषण जैसे जलवायु प्रभावों का सामना कर रहे हैं। मगर इस सब के बावजूद, भारत में, बच्चों को दी जाने वाली जानकारी उतनी नहीं जितनी संभवतः आवश्यक है। और मानो इतना काफ़ी न हो, एनसीईआरटी ने हाल ही में इस संदर्भ में अपने स्कूल पाठ्यक्रम में जो बदलाव कर दिये हैं वो हैरान करने वाले हैं।

जो बातें सीधे तौर पर जलवायु चिंताओं से संबंधित हैं, उनमें कक्षा 11 के भूगोल पाठ्यक्रम से ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव पर आधारित एक संपूर्ण अध्याय को हटाना, कक्षा 7 के पाठ्यक्रम से जलवायु मौसम प्रणाली और पानी पर एक संपूर्ण अध्याय और कक्षा 9 के पाठ्यक्रम से भारतीय मानसून के बारे में सूचनाओं को हटाना शामिल है।

ध्यान रहे कि कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप पूरे देश में पढ़ाई के नियमित कार्यक्रम पर व्यापक असर पड़ा है। अपने शिक्षकों और अपने स्कूल पर निर्भर स्कूली बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। शिक्षक और छात्र पिछले दो वर्षों से अधिक समय से नहीं मिल पाए हैं और विभिन्न सामाजिक स्तरों के छात्रों के लिए इंटरनेट तथा अन्य तकनीकी सेवाएं रुक-रुक कर और असमान रूप से उपलब्ध होने के कारण छात्रों को अधिकांश सामग्री को अपने ही माध्यमों से खोजने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसे में बच्चों पर पढ़ाई के ज़ोर को कम करने के संदर्भ में यह तो समझ आता है कि एनसीईआरटी छात्रों के पढ़ाई के बोझ को कम करने की कोशिश कर रहा है और तर्क के तौर पर कहता है कि एक जैसी सामग्री जो एक दूसरे को ओवरलैप करती है उसका पाठ्यक्रम में रहना अप्रासंगिक है।

बात में दम है। मगर टीचर्स अगेन्स्ट द क्लाइमेट क्राइसिस नाम की संस्था एक खुले पत्र के माध्यम से कुछ और कहती है। “एनसीईआरटी की तरह टीएसीसी में भी हम मानते हैं कि छात्रों को पुरानी और दोहराव वाली सूचनाओं पर मेहनत जाया नहीं करनी चाहिए। हालाँकि इनमें से कोई भी चिंता बुनियादी मुद्दों जैसे कि जलवायु परिवर्तन विज्ञान, भारतीय मानसून और अन्य अध्यायों पर लागू नहीं होती है, जिन्हें पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। ध्यान रहे कि प्रासंगिक जलवायु परिवर्तन विज्ञान को हर साल प्रकाशित हजारों सहकर्मी-समीक्षा पत्रों के माध्यम से लगातार अपडेट किया जा रहा है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पूरे भारत में वरिष्ठ स्कूली छात्रों को इस तरह की अद्यतन जानकारी के सार को सुलभ, समझने में आसान तरीके से बताया जाए। भारत सहित, छात्रों को पर्यावरण के क्षरण से होने वाले उन तल्ख परिवर्तनों से गहराई से जोड़ा व गया है, जिसका एक उदाहरण जलवायु परिवर्तन है। इस सबसे बुनियादी चुनौती का सामना करने के लिए युवाओं के कार्य और हस्तक्षेप महत्वपूर्ण हैं।”

इस बात में कोई दो राय नहीं छात्रों को जलवायु संकट की जटिलता को समझने की जरूरत है। इसलिए यह जरूरी है कि स्कूल छात्रों को जलवायु परिवर्तन और संबंधित मुद्दों के बारे में जानकारी देते रहें जो सटीक, तर्कसंगत और प्रासंगिक हों। जलवायु परिवर्तन अब व्यापक रूप से वैश्विक, आर्थिक और औद्योगिक तौर-तरीकों का नतीजा माना जाता है, जिसने जीवन के लिए आवश्यक ग्रहीय प्रणालियों को खतरे में डाल दिया है। इस मुद्दे को अब केवल “पर्यावरण विज्ञान” के चश्मे से नहीं समझा जा सकता है। इसके बजाय इसमें स्कूली पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों को शामिल किया गया है, जिसमें भौतिकी, समकालीन भारत, इतिहास और लोकतांत्रिक राजनीति शामिल हैं।

टीचर्स अगेन्स्ट द क्लाइमेट क्राइसिस आगे अपने इस खुले पत्र में कहता है, “हम एनसीईआरटी से इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह करते हैं और हटाए गए पाठ्यक्रम को बहाल करने की मांग करते हैं। हम यह भी आग्रह करते हैं कि जलवायु संकट के विभिन्न पहलुओं को सभी वरिष्ठ स्कूली छात्रों को कई भाषाओं में और विभिन्न विषयों में पढ़ाया जाए क्योंकि यह बहुत सारे लोगों के लिए सरोकार रखता है।”

अंत में टीचर्स अगेन्स्ट द क्लाइमेट क्राइसिस के संस्थापक सदस्य, नागराज अडवे, कहते हैं, “युवाओं में जलवायु के मुद्दों के बारे में चिंता बढ़ रही है। वे भारत और दुनिया भर में जलवायु संकट के विभिन्न पहलुओं से जूझ रहे हैं। यह एक ऐसी वास्तविकता है जिसका सामना हमारी आपकी पीढ़ी को नहीं करना पड़ा। बदलते मौसम प्रणाली, मानसून पैटर्न और जल प्रवाह में बदलाव के साथ साथ जलवायु परिवर्तन हमारे पर्यावरण और समाज के साथ विभिन्न तरीकों से कैसे बातचीत कर रहा है, यह जानना बेहद महत्वपूर्ण है। स्कूल ही वह जगह है जहां युवा लोगों को सबसे पहले इन मुद्दों की समझ विकसित होती है। ऐसे में यह विचित्र है कि एनसीईआरटी ने स्कूलों में पाठ्यक्रम से इस विषय से संबंधित पाठ और जानकारी को हटाने का फैसला किया है।”

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