- December 27, 2022
एडटेक की दुनिया तक एक समान पहुँच बनाना ज़रूरी है — माला कुमारी
दिल्ली ——– आजकल जीवन के हर क्षेत्र में डिजिटल तकनीक को बढ़ावा दिया जा रहा है. वैश्विक महामारी के कारण शिक्षा के क्षेत्र में भी डिजिटल तकनीक का प्रयोग बढ़ा है. शिक्षा का स्वरूप कितना बदल गया है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हम डिजिटल उपकरणों की मदद से बहुत ही सुलभ तरीके से सीख रहे हैं. लेकिन ऐसे छात्र जिन्हें शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करने का जज्बा है, परंतु डिजिटल पहुंच नहीं होने के कारण शिक्षा व्यवस्था में उन्हें व्यवस्थित रूप से यदि शिक्षा नहीं मिल पा रही है तो आप ऐसी शिक्षा व्यवस्था के बारे में क्या कहेंगे? पहले शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटल उपकरणों का उपयोग नाममात्र का होता था, लेकिन कोरोना काल और उसके बाद यह महसूस किया गया कि अब हमारा अधिकांश काम इन डिजिटल उपकरणों में उपयोग होने वाले सॉफ्टवेयर पर निर्भर हो गया है. आज हमारे पास ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली के बहुत सारे प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं, चाहे वह गूगल के माध्यम से हो या क्लासरूम अथवा जूम आदि से. ऐसे सॉफ्टवेयर के प्रयोग से सीखने के उद्देश्यों को आसानी से प्राप्त किया जा रहा है.
शिक्षा की इसी प्रणाली से एड-टेक शब्द अस्तित्व में आया है. जिसमें शिक्षा और तकनीक को मिला दिया गया और इसे शैक्षिक प्रौद्योगिकी का नाम दिया गया है. लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि अभी भी इसका समाज के सभी वर्गों तक आसानी से पहुंच संभव नहीं हो पाया है. सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समाज के बच्चे हैं जो आज भी शैक्षिक प्रौद्योगिकी की पहुंच से वंचित हैं. जबकि यह वह बच्चे हैं, जो शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने परिवार की पहली पीढ़ी हैं. ऐसे में उन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है. लेकिन इस तकनीक तक उसकी पहुंच संभव नहीं होने के कारण हमारे समाज का यह वर्ग शैक्षिक प्रौद्योगिकी के से न केवल प्रभावित हुआ है बल्कि इसमें पिछड़ता नज़र आ रहा है. विशेषज्ञों को आशंका है कि भविष्य में लगभग जब पूरा पाठ्यक्रम सॉफ्टवेयर द्वारा प्रबंधित किया जायेगा, ऐसे में यह वर्ग इस शिक्षा प्रणाली में पीछे छूट सकता है. ध्यान रहे कि हम दूर-दराज के इलाकों की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि दिल्ली जैसे महानगरों के स्थिति की चर्चा कर रहे हैं. ऐसे में आप स्वयं अंदाज़ा लगा सकते हैं कि देश के दूर दराज़ ग्रामीण क्षेत्रों में एड-टेक यानि शैक्षिक प्रौद्योगिकी का क्या प्रभाव हो पाएगा?
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत की राजधानी दिल्ली की किशोरियों का इस सिलसिले में कहना है कि लॉकडाउन के दौरान जब ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम आया तो हमें इसका इस्तेमाल करना तक नहीं आता था. ऐसे में आप कल्पना कर सकते हैं कि हमारा ऑनलाइन क्लास किस तरह हुआ होगा? ज्ञात रहे कि इस संबंध में कई ख़बरें आ चुकी हैं जिसमें कई छात्र/छात्राओं द्वारा ऑनलाइन सिस्टम का उपयोग अथवा उस तक पहुंच संभव नहीं हो पाने के कारण वह इससे वंचित रह गए थे. जैसा कि 11 वीं में पढ़ने वाली ज्योति बताती है कि हम चार भाई-बहन हैं और अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ रहे हैं. लेकिन हमारे पास एक ही मोबाइल है और हम सभी के लिए एक ही समय में ऑनलाइन कक्षाएं करना बहुत मुश्किल था. वहीं 12वीं कक्षा के छात्र मोहन का कहना था कि ‘जब मैं 12वीं कक्षा में था, तब मुझे लॉकडाउन के कारण काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था.’ मेरी 12वीं कक्षा की पढ़ाई अधूरी रह गई थी क्योंकि मेरे पास डिजिटल उपकरणों तक पहुंच नहीं थी. मेरे घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, घर में भूखे मरने की नौबत थी, तो मैं अपने माता-पिता से डिजिटल डिवाइस कैसे मांग सकता था? इसलिए मैं अब 12वीं कक्षा की अधूरी पढ़ाई पूरी कर रहा हूं.
स्कूल की शिक्षिका आकांक्षा जैन ऑनलाइन शिक्षा को बहुत अधिक प्रभावी नहीं मानती हैं. उनका कहना है कि इससे बच्चों का सामाजिक और व्यवहारिक विकास पूरी तरह से विकसित नहीं हो सकता है. शैक्षणिक तकनीक छात्र-छात्राओं के विकास को प्रभावित करती है. सभी बच्चों तक इसकी एक समान पहुंच नहीं होने के कारण उनमें एक बड़ा अंतर आ जाता है. ऐसे में जब तक सभी छात्र छात्राओं तक इसकी आसान पहुंच संभव नहीं हो जाती है, इसे बहुत अधिक प्रभावी नहीं कह सकते हैं. वह कहती हैं कि इस असमानता के कारण केवल समाज में ही असमानता नहीं आती है बल्कि छात्र छात्राओं को भी सामाजिक, आर्थिक और मानसिक रूप से कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. दुर्भाग्य से आज भी बच्चों को उनके स्कूल का अधिकांश काम ऑनलाइन दिया जा रहा है. ऐसे में आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार पर बच्चों को ऑनलाइन क्लास से जोड़ने के लिए अतिरिक्त फोन खरीदने का भार पड़ता है. इस संबंध में एक छात्र की मां उमा ने कहा कि मैं एक कारखाने में काम करने वाली मामूली कर्मचारी हूं. मैं चाहती थी कि मेरे बच्चे मेरी तरह अनपढ़ न हों, इसलिए जब ऑनलाइन शिक्षा शुरू हुई, तो मैंने अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए क़र्ज़ लेकर मोबाइल फोन ख़रीदा ताकि वह मेरी तरह अपनी पढ़ाई से न चूके.
बहरहाल, बच्चों की शिक्षा के संबंध में यह अपेक्षा की जाती है कि एड-टेक (शिक्षा+प्रौद्योगिकी) का ढाँचा ऐसा बनाया जाए कि इस तक तक हर छात्र की पहुंच आसान हो जाए. विशेष रूप से आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों के लिए. इस प्रकार के पाठ्यक्रम को विकसित करते समय शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को ध्यान में रखना आवश्यक है. साथ ही, बच्चों के समग्र विकास को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. सीखने के लिए उपयोग किए जाने वाले ऐप्स को इस तरह से उपलब्ध कराया जाना चाहिए कि इसे किसी भी भाषा में आसानी से समझा जा सके. साथ ही, इंटरनेट, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और ऐप्स की उपलब्धता सभी दूरस्थ क्षेत्रों और समाज के सभी वर्गों को उपलब्ध कराने की आवश्यकता है. इसके लिए इसे बेहतर और योजनाबद्ध तरीके से लागू करने की आवश्यकता है. यह सरकार के साथ-साथ सभी जिम्मेदार व्यक्तियों और संस्थाओं की जिम्मेदारी है क्योंकि अच्छी शिक्षा ही भविष्य में एक अच्छा नागरिक दे सकती है.
यह लेख संजय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के तहत लिखा गया है.
(चरखा फीचर)