• April 23, 2016

ऊर्जा का क्षरण रोकें – डॉ. दीपक आचार्य

ऊर्जा का क्षरण रोकें  – डॉ. दीपक आचार्य

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ऊर्जा अपने आप में सृष्टि का मूलाधार है। वह कभी न पैदा होती है न नष्ट होती है। यह ऊर्जा संयोग और विखण्डन के अनुसार अपना प्रभाव दर्शाती है तब ऐसा आभास होता है कि ऊर्जा या तो पैदा हो रही है अथवा नष्ट हो रही है। ऊर्जा कणों का पारस्परिक संयोग या विखण्डन होने पर ऊर्जा के बहुआयामी परिणाम सामने आते हैं।

       यह ऊर्जा मानसिक और शारीरिक से लेकर प्रकृति और तत्वों, मिश्रण या किसी भी प्रकार के मिलन-बिखराव की हो सकती है। हर प्रकार की क्रिया-प्रतिक्रिया में ऊर्जा का अहम योगदान रहता है।

जीवन्त देह में ऊर्जा की ही बात करें तो हर प्राणी की अपनी ऊर्जा होती है जो परम ऊर्जा से अदृश्य रूप में जुड़ी रहकर परस्पर पुनर्भरण करती रहती है।

       हर मनुष्य अपने आप में मौलिक ऊर्जा का अपार भण्डार है वहीं नियति ने हमें ज्ञान और विवक भी दिया है कि इस ऊर्जा का इस्तेमाल कर हम किस प्रकार अपने जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाकर दिव्यता के सहारे देवत्व का मार्ग अपना सकते हैं।

       यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने जीवन को अधोगामी बनाने की ओर ले जाएं अथवा ऊर्ध्वगामी बनाने के लिए प्रयास करें। इसके लिए सर्वाधिक प्रभावी और अन्यतम कारक है ऊर्जा।

इस ऊर्जा को अपने लिए उपयोगी बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें आत्मसंयम की आराधना पर ध्यान देना जरूरी है। जीवन में क्या अच्छा और क्या बुरा तथा कौनसा कर्म हितकारी या नुकसानप्रद है, इसका विवेक रखते हुए जीवन निर्वाह की आवश्यकता है।

       हम सभी लोग चाहते हैं कि हम अधिक से अधिक जीयें, कम से कम शतायु तो हो हीं। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। इसका कारण स्पष्ट है कि हमें जो ऊर्जा सौ साल तक के लिए संभाल कर रखनी चाहिए उसे हम नासमझी, क्षणिक और नश्वर आनंद तथा प्रमादी वृत्ति के कारण इससे बहुत पहले ही खर्च कर डालते हैं।

और तब हम ऊर्जा के मामले में दरिद्रता के कारण अपने आपको खत्म कर डालते हैं और अन्त में इतने अधिक भिखारी हो  जाते हैं कि हमारे पास रखा अकूत धन-वैभव, संसाधन एवं सभी कुछ कोई काम नहीं  आ पाता और एक दिन हवा खिसक जाती है।

       सब कुछ यहीं रह जाता है। ऊर्जाहीनता न किसी अमीर को देखती है, न गरीब को, न नेताओं को देखती है, न बड़े लाटसाहबों को, और न ही दुनिया के सर्वाधिक प्रभुत्वशाली लोगों को। प्रकृति प्रदत्त मौलिक ऊर्जा की भावभूमि क्षीण हो जाने पर कुछ भी काम नहीं आता।

       इस ऊर्जा को रोकें कैसे? यह बहुत बड़ा प्रश्न है। इसके लिए आवश्यक है हमारी ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों का समुचित और मितव्ययी उपयोग। जीवन भर इस बात का ध्यान रखें कि उन्हीं विचारों और विषयों पर ध्यान दें जो हमारे लिए नितान्त उपयोगी और अपरिहार्य हों।

       इनके बिना हमारा काम चल ही नहीं सकता हो। अपने शरीर की शक्तियों का जरूरी उपयोग ही करें तथा यथासंभव यही प्रयास करें कि शक्तियों को बचाए रखने पर विशेष तौर पर गंभीर रहें। यह शक्तियां शरीर की क्षमताओं को बहुगुणित करती हैं और विशेष प्रकार की योग्यताओं को और अधिक पैनापन देती हैं।

यही शक्तियाँ संचित होकर शरीर को हल्कापन देती हैं और वर्तमान भू लोक से ऊपर तक की ऊर्ध्वदैहिक यात्रा की शुरूआत करती हैं।

       यह हम पर निर्भर है कि हम भूर्लोक से ऊपर उठकर भुव, स्व, मह, जन, तप और सत्यम् लोक तक की यात्रा में कितनी अधिक सफलता प्राप्त कर पाते हैं। जीवन में ऊर्जा क्षरण के जो-जो भी छिद्र और द्वार हैं उन पर अपना सख्त पहरा रखें। सब कुछ हम पर ही निर्भर है।

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